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Showing posts from March, 2016

गणेश शंकर विद्यार्थी लेख 41 / युद्ध की हलचल

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गणेश शंकर विद्यार्थी  योरप के इस महायुद्ध ने हमारे देश के एक कोने से दूसरे कोने तक हलचल मचा दी है. युद्ध की क्या, किसी भी संहारिणी घटना से हलचल मच जाना स्वाभाविक है. परन्तु, हलचल और हलचल में अंतर है, और इसी अंतर का कुछ हास्यास्पद और कुछ रुला देने वाला दृश्य हम अपने देश में इस समय देख रहे हैं. बेल्जियम की भूमि रक्त से रंगी जा रही है, पेरिस के दरवाजे तक शत्रुओं की तोपें जा पहुंची थी, फ्रांस के पश्चिमी खण्ड में शत्रु भर गए थे, परन्तु हमने यह कभी न सुना कि बेल्जियम और फ्रांस के निवासियों के हाथ-पैर फूल उठे हों, जैसे रण-क्षेत्र से तीन हजार मील से अधिक दूर बैठे हुए हमारे देश के निवासियों के फूल रहे हैं. अंग्रेजी सेना रणभूमि में कटती जा रही है और इंगलैंड के वीर सपूतों के माथे पर बल तक नहीं आता, हजारों की संख्या में वे प्रतिदिन फ़ौज में भर्ती होकर देश की मान रक्षा के लिए प्राण देने की तैयारी कर रहे हैं. हौल-दिल पैदा करते हैं, और एक-एक के चार-चार होकर स्वप्न तक में अपनी भयानकता से चौंका-चौंका देते हैं. हमें अपने देश के अधिकांश लोगों के इस बोदेपन, इस बुजदिली पर तनिक भी आश्चर्य नहीं. उस जाति

गणेश शंकर विद्यार्थी लेख 40 / कौंसिल में युद्ध की चर्चा

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गणेश शंकर विद्यार्थी  सम्राट जार्ज का सन्देश -आठ तारीख को देहली में बड़ी कौंसिल की बैठक हुई थी. श्रीमान वायसराय ने एक बड़ी लम्बी वक्तृता दी. वक्तृता के आरम्भ ही में उन्होंने मेम्बरों को वह सन्देश सुनाया, जिसे श्रीमान सम्राट जार्ज ने इस समय भारत को भेजने की कृपा की है. निःसंदेह सम्राट के शब्द बड़े ही मीठे और बहुत ही उत्साहवर्द्धक हैं. ऐसे भयंकर समय में भारत के गरीब और अमीर-सभी श्रेणी के आदमियों की एक स्वर से प्रकट होने वाली साम्राज्य की हितैषिता ने सम्राट के हृदय पर बड़ा ही गहरा प्रभाव डाला है.  वे अपने सन्देश में कहते हैं-"इस विपत्ति में सबसे आगे बढ़कर आने वाली भारतीय पुकार ने मेरे ह्रदय को हिला दिया है और उस प्रेम और भक्ति को सर्वोच्च दर्जे तक पहुंचा दिया, जो-मैं अच्छी तरह जानता हूँ-मुझे और मेरी भारतीय प्रजा को एक साथ बांधती है. 1912 की फरवरी में इंगलैंड लौटने पर अंग्रेज जाति के नाम पर भारत की हितैषिता और सौहार्द का जो कृपा पूर्ण सन्देश मुझे मिला था, उसी का फल मैं आप देख रहा हूँ और आप के दिए हुए इस विश्वास को भी पूरा उतरता हुआ देखता हूँ कि ग्रेट-ब्रिटेन और भारत अविच्छन्नीय सम्

गणेश शंकर विद्यार्थी लेख 39 / युद्ध की वर्तमान गति

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गणेश शंकर विद्यार्थी  उन थोड़े समाचारों की तह में जाने पर, जो हमें मिलते हैं, अब साफ-साफ पता चलता है, कि बातें ठीक वैसी ही नहीं हैं, जैसी हम अभी तक जानते आ रहे हैं. स्थिति दिन पर दिन भयंकर होती जा रही है. समाचारों से हमें मालूम पड़ता है कि हर स्थान पर जर्मनी हार रहा है, परन्तु समाचारों के भीतर की बात हमें इस चक्कर में डालती है कि फिर यह क्या बात है कि हार पर हार खाते रहने पर भी जर्मन सेना पीछे हटने के बजाय फ्रांस में घुसती ही जाती है, और सरकार युद्ध समाचार के कथनानुसार अंग्रेजी और फ्रांसीसी सेना को 23 अगस्त से लेकर 27 अगस्त तक अपने स्थान से 40 मील पीछे हटना पड़ा? पहिली सितम्बर का समाचार हमसे कहता है कि मित्र-सेना को फिर पीछे हटना पड़ा. कितना? यह पता नहीं. लारें-अलसास प्रान्त में फ्रांसीसी सेना डटी हुई है, और मित्र सेना के उतने अधिक आदमी नहीं मारे गए, जितने कि जर्मन सेना के. अंग्रेजी सेना के ज्यादा से ज्यादा छह हजार ही सिपाही मरे हैं, ये सब बातें ऐसी हैं, जो मित्र सेना की वीरता और धीरता को प्रकट करती हैं, परन्तु इसके होते हुए भी, इस नीति से कैसे आँखें मूंदी जा सकती हैं, कि चारों ओर से

गणेश शंकर विद्यार्थी लेख 38 / भारतीय व्यापार पर युद्ध का प्रभाव

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गणेश शंकर विद्यार्थी  युद्ध से व्यापार को बड़ा धक्का लगता है. योरप के वर्तमान महायुद्ध ने संसार भर के व्यापार पर अपना प्रभाव डाला है, कहीं कम और कहीं ज्यादा. वैज्ञानिक उन्नति से आमदरफ्त की अनेक सुविधाओं के हो जाने के कारण हमारा देश रण-भूमि से हजारों मील दूरी पर होते हुए भी इस प्रभाव से नहीं बचा है. युद्ध आरम्भ होते ही देश भर के बाजारों में बड़ी ही सनसनी फ़ैल गई. उस घबराहट के समय 15 रुपये की गिनी साढ़े पंद्रह रुपये तक बिकी. अब घबराहट कम हो गई है. लोग अपनी अवस्था समझ रहे हैं. अब हम देख रहे हैं कि इस युद्ध का प्रत्यक्ष प्रभाव हमारे व्यापार पर यह पड़ा है कि न तो हम जर्मनी और आस्ट्रिया का माल मंगा सकते हैं, और न अपना माल उन दोनों देशों को भेज सकते हैं. इन दोनों देशों से हमें रासायनिक पदार्थ, रूई और ऊन के वस्त्र, लोहे की चीजें, पीतल, फौलाद, कागज, नमक, चीनी, औजार, शीशे की चीजें इत्यादि मिला करती थी और इनके बदले में हम उन्हें चावल, चमड़ा, रुई, टाट, अन्न इत्यादि कच्ची चीजें भेजते थे. कौन चीज कितनी आती थी और कितनी जाती थी, इसका पता उस नक़्शे से लग सकता है जो अन्यत्र कहीं दिया गया है. जर्मनी और आस

गणेश शंकर विद्यार्थी लेख 37 / युद्ध

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गणेश शंकर विद्यार्थी  युद्ध की गति की भयंकरता बढती जा रही है. अभी तक लीज के किले सुरक्षित हैं, परन्तु बेल्जियम भर में जर्मन सैनिक भरे हुए हैं. अभी तक वह भयंकर लड़ाई नहीं हुई है, जिनके होने की आशंका पल-पल पर की जा रही है. अंग्रेजी सेना फ्रांस में पहुँच गई है, वहाँ उसका और उसके जनरल फ्रेंच का ऐसी धूम-धाम से स्वागत हुआ कि क्या किसी राजा का होता. इंगलैंड में फौजी तैयारी जोर-शोर के साथ हो रही है. 50 हजार से अधिक नए आदमी फ़ौज में भर्ती हो चुके हैं. अभी तक तो इधर-उधर से युद्ध के कुछ समाचार मिल भी जाते थे, पर अब यह बात जाती रहेगी. सेनाओं के साथ जो संवाददाता थे, वे हटा दिए गए हैं और अब सभी समाचार सरकार द्वारा ही मिल सकेंगे. खबर फ़ैल गई थी कि जर्मनी में खाद्य पदार्थों का बे-तरह टोटा पड़ने वाला है, किन्तु एक सरकारी तार ही से पता चलता है कि जर्मनी की फसलें बहुत अच्छी हैं और उसके पास इस समय एक वर्ष तक के लिए भोजन है. पेरिस का एक समाचार कहता है कि किसी लड़ाई में जर्मनी के युवराज बे-तरह जख्मी हुए हैं. वे अस्पताल में पड़े हैं और उनके पिता कैसर उन्हें देखने गए थे. हम समझते हैं कि कोई भी यां न चाहेगा कि

गणेश शंकर विद्यार्थी लेख 36 / योरप का महायुद्ध

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गणेश शंकर विद्यार्थी  युद्ध की आग आगे ही बढ़ती जाती है, परन्तु उसके समाचार हमें ठीक-ठीक नहीं मिलते, समाचार लन्दन और बम्बई से बहुत छन कर आते हैं, और प्रायः ऐसा होता है कि दूसरे ही दिन उनमें कुछ का प्रतिवाद हो जाता है. समाचार आया कि जर्मनी के 19 क्रूजर नष्ट कर या डुबा दिए गए, पर इधर इंगलैंड के नव सचिव मिस्टर चर्चिल ने दूसरे ही दिन कहा कि अभी कोई ऐसी जहाजी लड़ाई ही नहीं हुई. गत रविवार को वायसराय के पास तार आया कि डागर बैंक के समीप अंग्रेजी बेड़े ने जर्मन बेड़े को भागा दिया. इस समाचार पर ख़ुशी मनाई गई. शिमला के एक स्कूल में छुट्टी तक कर दी गई. पीछे से पता चला कि डागर बैंक वाला समाचार वैसा ही असत्य है, जैसा दो और एक मिलाकर चार होना. भारत सरकार ने घोषणा की है कि फौजी समाचार उस समय तक प्रकाशित न किये जाएँ, जब तक वह स्वयं उन्हें प्रकट न करें. युद्ध के समाचार लन्दन से आते हैं. लन्दन में इन समाचारों की जाँच के लिए एक विभाग नियत हो गया है. यदि अपने लाभ के लिए सरकार इतना कड़ा बंदोबस्त करती है, तो कोई बुरी बात नहीं, किन्तु इस बात को हम किसी प्रकार अच्छा भी नहीं कह सकते कि इस छान-बीन के बाद भी जो सम

गणेश शंकर विद्यार्थी लेख 35 / भयंकर महायुद्ध

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गणेश शंकर विद्यार्थी  ज्वालामुखी पर्वत अंत में ज्वालामुखी पर्वत ही है. उसकी शांति धोखे में डालने वाली है. पेट की आग कब तक मुंह से न निकलेगी? योरप किसी ज्वालामुखी से कम तो था ही नहीं, उसके पेट में आग भारी थी और दिन-ब-दिन उसकी वृद्धि ही होती जाती थी. योरप के देश अपने-अपने सैनिक-वैभव के बढ़ाने में सरपट दौड़ लगते जाते थे. उन्हें पता न था कि वे जाते कहाँ हैं और अपनी इस सारी चमक-दमक से सरकारी खजाने में रूपये भरने वालों की क्या हालत हो रही है? हाँ, उन्हें यदि किसी बात का ख्याल था तो वह यही, कि बस आगे बढ़े चलो, पीछे फिर कर भी मत देखो. अंत में, जैसा कि हम देख रहे हैं, उन्होंने एक-दूसरे से ठोकरें खाई. आस्ट्रिया और सर्विया में लड़ाई हो रही थी. रूस अपने स्वजातीय सर्विया को दबाये जाते हुए न देख सका. उसने खट से आस्ट्रिया पर आक्रमण कर दिया. सर्विया का दोस्त रूस है तो आस्ट्रिया का दोस्त जर्मनी है. योरप की शक्तियों के दो दल हैं. पहिले दल में आस्ट्रिया, जर्मनी और इटली हैं, और दूसरे दल में इंगलैंड, फ्रांस और रूस. कोई भी शक्ति अपने दल की किसी शक्ति का बल कम होते हुए नहीं देख सकती, क्योंकि इससे उसका दल द

शहीद दिवस पर विशेष / गांधी, नेहरु भी जिनके फैन थे

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गणेश शंकर विद्यार्थी बनना या उनके जैसा बनने के लिए सोचना भी आज बहुत कठिन है. वे पत्रकार, लेखक, राजनेता के रूप में एक ऐसे व्यक्तित्व के स्वामी थे, जिससे मोहन दास करम चंद गांधी जैसे लोग भी ईर्ष्या करते थे.  गणेश शंकर विद्यार्थी  उनके शहीद होने का समाचार पाने के बाद गांधी जी ने कहा-हमें तो गणेश शंकर विद्यार्थी बनना चाहिए. गणेश शंकर की तरह आप एक-एक आदमी अपना-अपना अलग शांति-दल बना सकते हैं. लेकिन सवाल है कि विद्यार्थी की तरह कितने आदमी हैं? गणेश शंकर ने अहिंसा की सेना का एक बहुत ऊँचा आदर्श हमारे सामने रख दिया. वह भले ही मर गया लेकिन उसकी आत्माहुति व्यर्थ नहीं गई है. उसकी आत्मा मेरे दिल पर काम करती रहती है. मुझे जब उसकी याद आती है तो उससे ईर्ष्या होती है. इस देश में दूसरा गणेश शंकर क्यों नहीं पैदा होता है? हम थोड़ी देर के लिए मान सकते हैं कि उसकी परम्परा समाप्त हो गई, लेकिन वह इतिहास में अमर हो गया. उसकी अहिंसा सिद्ध अहिंसा थी. विद्यार्थी जी के शहीद होने के समाचार पर जवाहर लाल नेहरु ने कहा-गणेश जी जैसे जिए, वैसे  ही मरे और अगर हममें से कोई आरजू करे और अपने दिल की सबसे प्यारी इच्छा प

शहीद दिवस पर विशेष / गणेश शंकर विद्यार्थी को याद करने का समय

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निर्भीक नेता, निडर पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी, लेखक, शिक्षक, प्रखर वक्ता, कुशल राजनीतिज्ञ, पद और पैसे के प्रलोभन से कोसों दूर. ये सारे गुण एक आदमी में हो सकते हैं, सहसा भरोसा नहीं होता. लेकिन यह भारत भूमि है, इस धरती पर अनेक लाल पैदा हुए हैं. उन्हीं में से एक अहम् नाम है   गणेश शंकर विद्यार्थी, जो हिन्दू-मुस्लिम दंगे में झुलस रहे कानपुर नगर को शांत कराने के प्रयास में शहीद हो गए. तारीख थी 25 मार्च 1931. उनमें उपरोक्त सारे गुण थे. गणेश शंकर विद्यार्थी  न्याय के लिए संघर्ष में ही सुख तलाशने वाले विद्यार्थी जी आज भी समीचीन हैं, हमारे देश, समाज के लिए, पत्रकारिता के लिए और पत्रकारों के लिए भी. लगभग 40 वर्ष की उम्र में ही देश के लिए शहीद हो जाने वाले विद्यार्थी जी को जब भी मैं पढ़ता हूँ, तो लगता है कि वे हमारे आसपास कहीं बैठकर सब कुछ देख रहे हैं. उनके लेखों को पढ़कर यही महसूस होता है. क्योंकि, देश में हालात कोई खास नहीं बदले हैं, अलावा इसके कि हम आजाद हो गए हैं. निश्चित ही कुछ तरक्की भी हुई है. पर, विद्यार्थी जी जीते थे, समाज के लिए, गरीबों के लिए, मजदूरों के लिए, किसान के लिए और आज

गणेश शंकर विद्यार्थी लेख 34 / हिन्दू विश्वविद्यालय

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गणेश शंकर विद्यार्थी  सरकार पहिले 'हिन्दू विश्वविद्यालय' का नाम 'बनारस विश्वविद्यालय' रखना चाहती थी, किन्तु अंत में, हिन्दुओं की प्रार्थना पर उसने 'बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय' रखा जाना स्वीकार कर लिया. इसके लिए उसे धन्यवाद. सब बातों के तय हो जाने पर सरकार विश्वविद्यालय को कुछ आर्थिक सहायता भी दिया करेगी. इसके लिए भी उसे धन्यवाद. परन्तु, इन दोनों बातों को रियायत के नाम से पुकारने में हम बिल्कुल असमर्थ हैं.  यदि एक-दो लाख रुपये से सरकार द्वारा किसी संस्था को खड़ी करने पर साधारण लोगों तक को यह अधिकार मिल जाता है कि वे उस संस्था का नाम अपने या अपने बाप-दादों के नाम रखें, तो हम नहीं जानते कि देश भर के करोड़ों हिन्दुओं ने कौन सा ऐसा महा-पाप किया था कि उनके लाखों रुपये की नींव पर खड़े होने वाले विश्वविद्यालय का नाम उनकी इच्छा के अनुसार न रखा जाय? हिन्दुओं की मूर्खता और निर्जीवता की मिसाल ढूढ़े से भी नहीं मिलती, यदि वे नाम पर भी अड़ जाने का नाम न लेते. आर्थिक सहायता भी कोई रियायत नहीं, क्योंकि हम अच्छी तरह देख रहे हैं कि यह हमें सस्ते दामों में नहीं मिल रही. बड़े गहरे दा

गणेश शंकर विद्यार्थी लेख 33 / घोर जातीय अपमान

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गणेश शंकर विद्यार्थी  जातीय अपमान से जाति के शरीर का रक्त खौल उठता है. ऐसी अवस्था में अपमान का बदला लेने की इच्छा अपनी उग्र प्रबलता के कारण रोके से भी नहीं रुकती. मेक्सिकन समुद्र तट पर अमेरिका के मल्लाह पकडे गए. अमेरिका के झंडे का अपमान हुआ, और संसार ने देखा कि अमेरिका की तलवार इसका बदला लेने के लिए म्यान से बाहर निकल पड़ी. ग्रीस के निवासी टर्की में सताए गए और ग्रीस ने टर्की पर आँखें नीली-पीली कर डाली. मंगोलिया में रुसी प्रतिनिधि की उपेक्षा हुई और उस उपेक्षा के कारण मंगोल सेना को रूसी झंडे के सामने सिर झुका कर क्षमा मांगनी पड़ी. परन्तु जातियों और जातियों में अंतर है, और इसी लिए हम देखते हैं-जातीयता के पवित्र भावों की देवी हमारे ह्रदय में उदय होकर अपने हाथ के संकेत से हमारी दृष्टि एक ओर फेरती है, और उसी ओर अहम्मन्यता से पूर्ण संसार की स्वेच्छाचारिता हमारी दीन-हीन दशा पर अट्टहास द्वारा आकाश को गुंजाती हुई अपनी घृणा की उंगली से हमें दिखाती है कि देखो, कनाडा के समुद्र-तट पर जातीय मर्यादा का पक्ष लेकर जाने वाले तुम्हारे हत-भाग्य भाइयों की क्या दुर्गति हो रही है! वे अपनी शेखी में तट से हट

गणेश शंकर विद्यार्थी लेख 32 / जातीय अपमान का इलाज

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गणेश शंकर विद्यार्थी  'गुरुनानक' के यात्री कनाडा की पवित्र भूमि पर पैर नहीं रखने पाए, इसलिए कलकत्ता की एक सभा ने प्रस्ताव किया कि कनाडा के गोरों का भारत वर्ष में आना रोक दिया जाए. पर, कौन रोके, और कैसे रोके-इन प्रश्नों पर अधिक विचार करने का कष्ट नहीं उठाया गया. स्वाधीनता की भूमि संयुक्त राज्य (अमेरिका) में कानून बन रहा है, जिससे आशंका की जाती है कि उसका भी दरवाजा भारतीयों के लिए शीघ्र ही बंद हो जाएगा. देश के एक कोने से आवाज उठती है कि यदि अमेरिका वाले ऐसा करें, तो उनकी बनाई चीजों का बायकाट कर दो. बहुत ठीक, किन्तु जरा बतलाइए तो सही कि आप का यह बायकाट निभेगा कब तक? हम स्वीकार करते हैं कि जातीय भावों की शक्ति बड़ी चीज है, किन्तु वर्षों से पराधीनता के वायुमंडल में चलने-फिरने वाली जाति के जातीय भावों की शक्ति पर विश्वास कर बैठना अपने को धोखे में डालना है. जोश में भर जाना एक बात है, और दृढ़ता के साथ उस पर अड़े रहना बिलकुल दूसरी. हम जातीय अपमान का बदला बायकाट या अन्य रीतियों से लेने के खिलाफ नहीं, किन्तु हम इस बात को नहीं भूल सकते, जो बदला लेने के लिए आगे बढ़ते हैं, उनमें यथेष्ट बल

जाने क्या मैंने कही जाने क्या तूने सुनी

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पंडित जी शाम की सैर पर थे. तभी सामने से एक जुलूस आता दिखा. सब मोदी के समर्थन में नारे लगा रहे थे. मोदी जिंदाबाद, जो आरक्षण ख़त्म करेगा, वह खुद ख़त्म हो जाएगा, जैसे नारे लिखी तख्तियां लगभग सभी हाथों में थीं. उत्सुकतावश पंडित जी ने एक नौजवान को रोका और पूछ लिया, कौन हो भाई तुम लोग और किस बात का जुलूस निकल रहे हो? मोदी जिंदाबाद, नारे का रहस्य क्या है? कब तक चलेगा ये आरक्षण-आरक्षण का खेल. (साभार)  नौजवान ने कहा-बाबा, असल में मोदी जी ने आरक्षण कभी भी न ख़त्म करने की बात आज कही है. हमारे लिए यह बेहद अहम बात है. अगर प्रधानमंत्री जी हमारे साथ हैं, तो हमें आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता. अब हमारा हक़ हमें हर हाल में मिलेगा. कोई रोक नहीं पाएगा. पंडित जी ने पूछा-देखने से तुम भले घर के लग रहे हो. जींस, महंगे जूते, ब्रांडेड कमीज और हाथ में आई-फोन बताता है कि तुम्हें किसी आरक्षण की जरूरत नहीं है. नौजवान ने कहा-यह हमारा खानदानी हक है. मेरे बाबा के बाबा अपनी काबिलियत के बूते अंग्रेजी राज में कोतवाल थे. पापा के बाबा आजाद भारत में तहसीलदार बने. मेरे बाबा भी आरक्षण का लाभ पाकर नायब तहसीलदार भर्ती हुए औ

गणेश शंकर विद्यार्थी लेख 31 / ढाक के वही तीन पात

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गणेश शंकर विद्यार्थी  विलायत में बैठी, भारत के शासन की डोर हिलाने वाली इंडिया कौंसिल के सुधार का बहुत कटुता और थोड़ी मिष्ट्ता मिश्रित प्रस्ताव पार्लियामेंट के हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स के सामने पेश हुआ, उस पर कुछ काल के लिए खूब ले-दे रही, और अंत में गत 7 तारीख को उसकी अंत्येष्टि क्रिया कर डाली गई. जिस दिन देश में यह समाचार आया कि उक्त कौंसिल का सुधार होना निश्चित हो गया है, उसी दिन से लोगों ने इस सुधार के स्वप्न पर बड़ी-बड़ी आशाओं के महल खड़े करने आरम्भ कर दिए. यह होना चाहिए, वह होना चाहिए, आदि प्रस्तावों के ढेर के ढेर भी मुफ्त ही भेंट किये जाने लगे. गिनते-गिनते दिन पूरे हुए, और अंत में रियूटर के तारों ने बहुतों के आशा पर पानी फेर दिया. आशा की हत्या भी बड़े मजे से की गई. आँखे तरसती थी कि अब सारा हाल पढ़ने को मिलता है, और तब मिलता है, किन्तु धीरे-धीरे पूरे आराम के साथ ही इन समाचारों ने उत्कंठित लोगों के पास आने की कृपा की. अब, जाँच-पड़ताल होने लगी. शायद उस भूसे में भी कुछ दाने निकल ही आवें. मन समझौते के लिए दाने निकले, और संतोष ढूढ़ने वालों ने उन्हीं दानों को बहुमूल्य समझकर ह्रदय से लगाया. उक्त बिल

गणेश शंकर विद्यार्थी लेख 30 / भौगोलिक समाचार का आडम्बर

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गणेश शंकर विद्यार्थी  संसार में आजकल हितैषिता की धूम है. कमजोरों की ओर देखते ही बलवानों का ह्रदय पसीज उठता है. गहरी 'हितैषिता' की प्रेरणा से वे अपना हाथ आगे बढ़ाते हैं. मेल-जोल बड़ा समझा गया, कि प्राण बचे परन्तु एक प्रातः काल संसार ने आँख मीजते हुए देखा कि सच्चे प्राण निकल गए-अब असली चीज के स्थान पर नकली चीज रखी है और खिलाड़ी पीछे बैठा हुआ कठपुतली की तरह उस मुर्दा वस्तु के हाथ-पैर हिला रहा है. कमजोर कोरिया की ओर अशक्त जापान ने हितैषिता का हाथ बढ़ाया. भोले लोग समझे कि पडोसी है-अच्छी निभेगी. परन्तु समझने वाले समझ गए कि कोरिया के सिर पर मौत अपना खेल खेल रही है. अंत में, अंतिम घड़ी आ पहुंची, और बे-खबर लोग तक उस दिन चौंक पड़े, जिस दिन कोरिया की स्वाधीनता के चन्द्र को काले बादलों ने ढक लिया, और उसके नौजवान बच्चे संसार में शांति स्थापिनी हेग कांफ्रेंस के दरवाजे से उसी तरह दुरदुरा दिए जाएँ, जिस तरह हमारे यहाँ एक श्रेष्ठ जाति का आदमी किसी नाम-शूद्र को दुरदुराता है. जो चक्र कोरिया पर घूम रहा था, वही एशिया के एक प्राचीन देश पर उस समय से अब तक मडरा रहा है. 'हितैषिता' की प्रबल प्रेर

गणेश शंकर विद्यार्थी लेख 29 / माननीय बाबू गंगा प्रसाद वर्मा

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गणेश शंकर विद्यार्थी  गत 23 जून की रात को देश का एक चमकता हुआ सितारा डूब गया-एक स्वार्थ त्यागी, दृढव्रत, सुचरित्र, देश भक्त प्रांतीय नेता की जीवन लीला समाप्त हो गई. 22 मई को राय बहादुर बाबू गंगा प्रसाद स्वास्थ्य कांफ्रेंस में योग देने के लिए नैनीताल गए. आप अपने स्वास्थ्य की ओर सदा उचित ध्यान देते थे और फलतः सदा हृष्ट-पुष्ट रहते थे. इस बात की किसी को भी आशा न थी कि कराल काल इतनी जल्दी आप को ग्रस लेगा. आप की अवस्था अभी पुरे 51 वर्ष की भी नहीं थी. नैनीताल में ठंडे पानी सा स्नान करने से आप की तबीयत ख़राब हो गई. डॉक्टर लोग ठीक-ठाक निदान न कर सके. अवस्था बिगडती गई. हाल ही में डॉक्टरों ने कहा था कि अब कुछ डर नहीं है. फिर बुखार 104 या 105 डिग्री तक पहुँच गया. 24 जून के लीडर ने समाचार दिया कि वर्मा जी की अवस्था बहुत ख़राब है और वह सन्निपात से पीड़ित हैं. 24 जून को ही यह ह्रदय विदारक समाचार मिला कि रात को 11.30 बजे वर्मा जी का देहांत हो गया. बाबू गंगा प्रसाद उन लोगों में से थे जो हीनावस्था में उत्पन्न होकर भी अपने चरित्रबल से उच्च पद प्राप्त कर लेते हैं, और जो सारे व्यक्तिगत लाभों को तिलांजलि

मुमताज मार्केट में आग और झूठ-मूठ का बवाल

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लखनऊ के घनी आबादी वाले अमीनाबाद बाजार में बने मुमताज मार्केट में लगी आग के बाद सरकारी सिस्टम में बवाल मचा हुआ है. चारों ओर हटो-बचो का खेल जारी है. मानो ऐसी आग पहली दफा लगी हो. अरे भाई किसे नहीं पता है कि अमीनाबाद में ढेरों अवैध निर्माण हैं. सबकी देखरेख सरकारी तंत्र ही करता है. कुछ बच गया तो नेतानगरी जिंदाबाद. बाकी अपने व्यापारी भाई तो हैं ही बवाल काटने के लिए. जरा सा उनकी ओर कोई आँख उठाकर देख भर ले. फिर दिखावा क्यों कर रहे हैं व्यापारी, अधिकारी, नेता और जो कोई भी अमीनाबाद का शुभचिंतक हो. कुछ यूँ ही दिखता है अमीनाबाद बाजार-साभार  पंडित जी पिछले तीन-चार दिन से ऐसी खबरें पढ़-पढ़ कर आज सुबह-सुबह चिढ गए. बोले-सब जान-बूझ कर पहले गड़बड़ करते हैं फिर धरे जाने पर बवाल करते हैं, आखिर क्यों हालत पैदा होती है ऐसी? विचार इस बात पर होना चाहिए. और केवल हादसे के सप्ताह भर बाद तक नहीं, समस्या के समाधान तक. मसलन, अतिक्रमण देखना हो तो अमीनाबाद बेहतरीन उदहारण हो सकता है. बिजली का जंजाल देखना हो तो उसका भी सर्वोत्तम नमूना इस बाजार में दिखना आम है. इतनी पुरानी बाजार होने के बावजूद आज बड़े-बड़े सूरमा वहां त

गणेश शंकर विद्यार्थी लेख 28 / महात्मा तिलक का छुटकारा

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गणेश शंकर विद्यार्थी  ज्यूरी ने यद्यपि मुझको अपराधी ठहराया है, तो भी मुझको मेरे मन ने निर्दोषी बतलाया है. मानव शक्ति, जिसके आगे कोई भी है चीज नहीं, ऐसी ऊँची शक्ति सदा संसार चक्र है चला रही. ईश्वर का संकेत मनोगत दिखलाई यह मुझे पड़े, मेरे दुःख सहने से ही इस हलचल का तेज बढे. मिनट बीते, और घंटे बीते, दिन और मास बीते, और अंत में लम्बे छह साल भी बीत गए. पूरे छह वर्ष हुए. देश में एक सिरे से दूसरे सिरे तक आग लगी हुई थी. बुझाने वाले उस पर पानी नहीं छिड़कते थे. उन्होंने उस पर घी छोड़ना अपना कर्तव्य समझ रखा था. ह्रदय के वेगों का प्रेम से आलिंगन नहीं किया जाता था. लोहे के हाथों से उनका गला घोंटा जाता था. उसे सख्ती का जमाना कहें, चाहे परीक्षा का समय, उसमें कितने ही अच्छे अच्छे रत्न भेंट हुए, और उन सब रत्नों में शायद ही कोई इतना उज्जवल, मूल्यवान और प्रभापूर्ण हो, जितना वह नर-रत्न जिसके छुटकारे का समाचार आज देश के हर व्यक्ति की जिह्वा की नोक पर है. आज से छह साल पहले भयंकर कड़ी नीति का आश्रय लेने वाली सरकार की शनि-दृष्टि देश के देशी समाचार पत्रों पर पड़ी थी. एक के बाद दूसरा इस दृष्टि का शिकार हु

गणेश शंकर विद्यार्थी लेख 27 / दूसरा संग्राम

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गणेश शंकर विद्यार्थी  यह कम आश्चर्य की बात नहीं कि संसार की एक पराधीन जाति को छह मास के भीतर ही अपने प्रारंभिक स्वत्वों की रक्षा के लिए संसार में अपने व्यक्तियों को पशु नहीं, किन्तु साधारण मनुष्य कहलवाने के लिए अपने से कहीं जबर्दस्त शक्तियों के साथ असमान लड़ाई लड़नी पड़ी. दक्षिण अफ्रीका के संग्राम को हुए अधिक दिन नहीं गुजरे कि पराधीन भारतीयों को दूसरे घोर संग्राम के लिए तैयार होना पड़ा है. कनाडा के पश्चिमीय समुद्र-तट पर गुरुनानक नाम का एक जहाज खड़ा हुआ है. उसमें लगभग छह सौ भारतीय हैं. वे कनाडा की भूमि पर उतरना चाहते हैं, पर कोलंबिया प्रदेश के लोग, जिनके तट पर जहाज खड़ा है, उन्हें किसी तरह भी नहीं उतरने देते. भारतीयों ने प्रार्थना की कि हमें उतरने का स्वत्व प्राप्त है, यदि तुम नहीं मानते, तो एक राजकीय कमीशन नियत करो, जो हमारे स्वत्वों की जाँच करे. यह प्रार्थना अस्वीकार की गई. उधर भारतीय भी किसी तरह पीछे नहीं हटना चाहते. उनके नेता सरदार गुरुदत्त सिंह सर्वोच्च अदालत तक अपने इस स्वत्व के लिए लड़ने को तैयार हैं. कनाडा के हिन्दुओं ने मिलकर वहां के अधिकारियों से प्रार्थना की, कि हम लोग डेढ़ लाख