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Showing posts from September, 2018

...तो बंद हो जाएंगे वृद्धाश्रम, आजमा के देख लो

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दिनेश पाठक, वरिष्ठ पत्रकार, काउंसलर सास-बहू के झगड़े , माँ-बेटी का प्यार घर-घर की कहानी है। आदि काल से ऐसा ही होता आ रहा है। लोगों ने मान लिया है कि इसका कोई तोड़ नहीं है। जबकि तोड़ है। बस , हम सबका मन इस बात के लिए तैयार हो जाए। कुछ परिवार तो इसे आजमा रहे हैं और खुश भी हैं। लेकिन अगर इसे सब या ज्यादातर अपनाने लगें तो तस्वीर बेहद खूबसूरत बनेगी। बच्चों को उनका हक मिल जाएगा और बुजुर्गों को उनका। बड़ों को मिलेगा प्यार का बोनस। देश के ही नहीं दुनिया के सभी वृद्धाश्रम देखते ही देखते बंद हो जाएंगे। मासूम बच्चों को नौकरों की मार-पिटाई , उपेक्षा , झिड़की की जगह जगह दादा-दादी का प्यार मिलेगा। बहुओं को माँ का प्यार मिलेगा। माँ-बेटी के रिश्ते यथावत रहेंगे। घर खुशहाल दिखेंगे। यह सब करने या होने का तरीका सिर्फ यह है कि सास , बहू को बेटी की तरह प्यार करे और बहू , सास को माँ की तरह मान दे। यह सर्वविदित है कि बेटियाँ माँ-पापा की तकलीफ में सबसे पहले पहुँचती हैं। उनके दुःख को बाँटने में उनका कोई सानी नहीं है। यह और आसान हो जाएगा जब देश की हर बेटी यह मान ले कि उसके दो माँ-पापा हैं। एक मायके में और द

अगर आप भी हैं इस रोग के शिकार तो सावधान हो जाएँ

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दिनेश पाठक आज एक ऐसी बीमारी की बात, जिससे ज्यादातर नवधनाड्य पैरेंट्स पीड़ित तो हैं लेकिन खुश भी हैं| यह अकेला रोग है, जो लोगों को खुशियाँ दे रहा है| जिसके होने के बावजूद कोई स्वीकार करने तक को तैयार नहीं है| उल्टा अगर कोई अड़ोसी-पदोई, रिश्तेदार ध्यान दिलाये तो उसे पागल करार देने में ऐसे रोगी पीछे नहीं रहते| उन्हें रोग के गंभीर होने का पता तब चलता है जब भैंस पानी में जा चुकी होती है| यह बीमारी है, बच्चों के लालन-पालन में हो रही चूक की| पैसों के दिखावे के चक्कर में अनजाने में ही सही, ऐसी गलतियाँ कर रहे हैं, जिसका दुष्प्रभाव उनके जीवन पर गहरे तक पड़ रहा है लेकिन जब तक वे जागते हैं, देर चुकी होती है| हमारे आसपास अनेक ऐसी कहानियाँ बिखरी पड़ी हैं| आप आसानी से उनसे बावास्ता हो सकते हैं| जी हाँ, मैं बात कर रहा हूँ ऐसे पैरेंट्स की जो बच्चों की जरूरत और इच्छाओं के बीच फर्क नहीं करना चाहते क्योंकि उनकी जेब में अकूत पैसा है| जरूरत हर हाल में पूरी होनी चाहिए लेकिन क्या इच्छा पूरी होना भी उतना ही जरुरी है| मेरा जवाब है-नहीं| इच्छा का पूरा होना कतई जरुरी नहीं है| चाहे आपके पास कितना भी पैसा हो|

प्यार और तकरार के बीच से निकलता है ख़ुदकुशी से बचने का रास्ता

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दिनेश पाठक यूपी कैडर के आईपीएस अधिकारी रहे हैं सुरेन्द्र कुमार दास| 2014 बैच का यह नौजवान इन दिनों कानपुर में एसपी के पद पर तैनात था लेकिन अचानक एक दिन कोई जहरीला पदार्थ खा लिया और अस्पताल पहुँच गए| तीन-चार दिन इलाज के बाद उन्होंने दुनिया छोड़ दी और हमेशा के लिए अनंत यात्रा पर निकल पड़े| बलिया निवासी सुरेन्द्र दास की पत्नी कानपुर में ही डॉक्टर हैं| वे इन दिनों मास्टर्स कर रही हैं| सामान्य परिवार से आते हैं सुरेन्द्र| स्वाभाविक है पढने-लिखने में तेज थे तभी तो भारतीय पुलिस सेवा से जुड़ सके| बड़ी मेहनत और अरमानों से पाई होगी यह कामयाबी सुरेन्द्र ने लेकिन अब अचानक सब कुछ ख़त्म हो गया| जरा, सोचिए कि इस परिवार पर अब क्या गुजर रही होगी| कितने सपने संजो लिए होंगे परिवार के लोगों और रिश्तेदारों ने लेकिन आज सब ख़त्म| यह भी बहुत सामान्य बात है| जब घर का कोई नौजवान कामयाब होता है तो सपने देखना आम है| लेकिन यही नौजवान जब ख़ुदकुशी जैसा कदम उठा ले, जीवन से हार मान ले तो क्या कहा जाए? यह तो तय है कि फिलवक्त इनके जीवन में कोई ऐसी दुनियावी परेशानी तो नहीं आई होगी, जिसका ये आसानी से सामना न कर पाते| य

इस ज्योति का आत्मविश्वास तो देखिए, आप का नजरिया बदल जाएगा

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दिनेश पाठक मेरे मित्र हैं हास्य कवि सर्वेश अस्थाना| वे बेहतरीन इंसान भी हैं| वे बच्चों की भलाई के लिए काम करते रहते हैं, इसलिए मुझे कुछ ज्यादा ही प्रिय है| हालाँकि, यह सम्मान एकतरफा नहीं है| वे भी मुझे लौटाते ज्यादा हैं| वे प्रति वर्ष की तरह इस इस साल भी बाल उत्सव का आयोजन कर रहे हैं| इस उत्सव में बच्चों की भांति-भांति की प्रतियोगिताएं होती हैं| उन्हें पुरस्कार दिए जाते हैं| लगभग दस दिनी यह आयोजन लखनऊ में ठीक से जाना भी जाता है| इस आयोजन में मेरा भी जाना हुआ| जो मैंने देखा, महसूस किया, उसे ही आपके सामने परोस रहा हूँ| बड़ा गौरव महसूस हुआ| 29 अगस्त , 2018 की बात है| बाल उत्सव में दृष्टि बाधित बच्चों का कार्यक्रम तय था| शहर के तमाम बच्चों की प्रस्तुति होनी थी। बच्चे अपने अभिभावकों के साथ एक-एक कर चले आ रहे थे। इसी क्रम में 10- वर्ष की एक ख़ास बच्ची आती हुई दिखी| यह बहादुर राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह के बाहर सीढियां चढ़ने का प्रयास कर रही थी| उनका आंकलन कर रही थी| तभी सर्वेश जी उस बच्ची की मदद के इरादे से पहुँच गए| उन्होंने आवाज दी, बेटा मैं तुम्हारा हाथ पकड़ लूँ। इस मासूम ने कहा-न