मास्टर जी की क्लीनचिट

इन्द्राणी मुखर्जी. आज देश का चर्चित चेहरा. नहीं-नहीं माफ़ी चाहूँगा. सबसे चर्चित चेहरा. फिर भी कई लोग परेशान हैं. समाचार माध्यमों (ख़ास तौर से टीवी) पर गुस्से का इजहार कर रहे हैं. कोई फेसबुक, ट्विटर तो कोई कहीं और. कुछ लोग नुक्कड़ पर ही बहस में जुटे दिख रहे हैं. सबका तर्क है कि क्या इस देश में मुद्दों की कमी है जो ये इन्द्राणी का पीछा नहीं छोड़ रहे. उसी को दिखाए जा रहे हैं. मास्टर राम भरोसे भी इन खबरों को चटखारे लेकर देख और पढ़ रहे थे. लेकिन उनकी चिंता तब बढ़ी जब देश के डिफेन्स मिनिस्टर ने सार्वजनिक तौर पर समाचार माध्यमों की निंदा की. परिकर साहब की इस चिंता से मास्टर जी भी अनमने भाव से ही सही, सहमत हो गए. उन्होंने पूरे मामले की पड़ताल का फैसला किया.
शहर आने के साथ ही पोते से इन्टरनेट ज्ञान लेने वाले मास्टर जी बैठे कम्प्यूटर पर. गूगल खोला और आईएनडी ही टाइप कर पाए, तब तक ढेरों परिणाम इंद्राणी मुख़र्जी के रूप में दिखे. मास्टर जी ने कुछ समय तक इंद्राणी मुख़र्जी के बारे में पढ़ा. फिर मार्केटिंग गुरु की तरह लगे बोलने. अरे भाई जो दिखता है वो बिकता है.
घनश्याम दास बिरला की किसी किताब के हवाले से बोले-पचासों साल पहले बिरला जी ने लिखा था कि प्रचार के लिए हर व्यापारी को कुछ पैसा रखना ही चाहिए. क्योंकि व्यापार बढ़ाने के लिए बाजार में दिखना बहुत जरूरी है. मास्टर जी इस नतीजे पर पहुंचे कि विरोध बेमानी है. अरे भाई तुम देख रहे हो तभी तो वो दिखा रहे हैं. टीआरपी का मतलब भी उन्होंने पहले समझा और फिर समझाया. फिर बोले-न जाने लोग समझते क्यों नहीं. आधुनिक युग में ऐसी कहानियों में तो लोग चटखारे लेंगे ही. आखिर लोगों का ज्ञानवर्धन भी तो हो रहा है. कैसे एक महिला, कई पति, कई बच्चे, कौन किसका बाप..जैसे ढेरों सवाल लोगों को परेशान कर रहे हैं. नित नए खुलासे. उस पर टीवी वाले भी रोज नई-नई कहानी खोजकर ला रहे हैं इसलिए उन्हें लोग देख रहे हैं.
मास्टर जी ने जोड़ा-मेरे गाँव की गुटैया ने भी चार या पांच शादियाँ की थी. कोई दर्जन भर बच्चे थे लेकिन कोई चर्चा तक नहीं करता था उसकी. क्योंकि उसका सच सब जानते थे. इंद्राणी का रिश्ता गुवाहाटी, कोलकाता होते हुए मुंबई तक से जुड़ा है. रोज नए खुलासे हो रहे हैं. लोगों की रूचि इसीलिए बढ़ रही है. विरोध बेवजह है. देख भी रहे हैं और विरोध भी कर रहे. दोनों तो नहीं चलेगा भाई. टीवी वालों ने कोई दानखाता तो खोल नहीं रखा है. अरे भाई, उन्हें लोगों की सैलरी देनी है. और भी ढेरों खर्चे हैं. दिखेंगे नहीं तो बिकेंगे नहीं . यह नहीं होगा तो पैसे भी नहीं आयेंगे और एक दिन हो जायेगा डिब्बा बंद.

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