विकास, चिट्ठी-पत्री, सच या झूठ

समाजवादी पार्टी से राज्यसभा सदस्य प्रो. रामगोपाल यादव ने फिरोजाबाद में चल रहे विकास कार्यों की गुणवत्ता पर सवाल उठाया है। उन्होंने पूरे मामले की जाँच के लिए अफसरों को लिखा भी है। अब वहां तैनात लोक निर्माण विभाग के अवर अभियंताओं ने सामूहिक तबादले मांगे हैं। उनका कहना है कि ठेकेदार इतने प्रभावशाली हैं कि वे विकास कार्यों की गुणवत्ता पर टोकाटाकी करने पर निपट लेने की धमकी देते हैं। कई ठेकेदारों ने तो बदसलूकी भी की है।
इस लिखा-पढ़ी का जो होगा, वह तो बाद में पता चलेगा। पर सर्वविदित है कि यह फिरोजाबाद की अकेली कहानी नहीं है। हाल तो पूरे राज्य का कुछ ऐसा ही है। यह मामला इसलिए अहम् हो चला कि सत्ताधारी दल के कर्ता-धर्ताओं में से एक प्रोफ़ेसर साहब ने पत्र लिख दिया। वह भी शायद इसलिए क्योंकि उनका बेटा वहीँ से सांसद है। अभी उसकी जमीन तैयार होनी शेष है। और इसमें कोई बुरी बात भी नहीं। आखिर पिता बेटे की मदद नहीं करेंगे तो भला कौन करेगा। फिरोजाबाद के मतदाताओं ने उन्हें शायद जिताया भी इसलिए होगा कि वे सैफई का विकास देख रहे हैं। और यह एक ऐसी जगह है, जिसे देख किसी का मन ललचा जाये। स्वाभाविक है कि फिरोजाबाद का मतदाता सैफई जैसा न सही, मिलता-जुलता विकास तो चाहता ही है। उसके लिए ठेकेदारों से लेकर अफसरों तक को कुछ त्याग करना होगा। खैर, अब प्रोफ़ेसर साहब के पत्र की जाँच तो होनी ही है। संभव है कि अभियंताओं ने पेशबंदी के तहत सामूहिक तबादले मांगे हों। क्योंकि ठेकेदार कितने भी बेईमान हो जाएँ, वे अभियंताओं का हक़ कभी नहीं मारते। या यूं कहें कि दोनों मिल-बाँट कर खाते हैं। ऐसा जानकार बताते हैं। फिर भी दोनों ओर से ऐसी लिखा-पढ़ी ऊपर से निकल जाती है।
इस मसले को समझने का प्रयास करते हुए मेरे मन में कई सवाल उमड़-घुमड़ रहे हैं। क्या फिरोजाबाद के ठेकेदार सत्ता-प्रतिष्ठान पर भारी पड़ गए हैं? अगर इसमे जरा सी भी सच्चाई है तो इन्हें किसका वरदहस्त हासिल है? फिरोजाबाद में आखिर सत्ताधारी कुनबे से ज्यादा प्रभावशाली कौन पैदा हो गया? इलाकाई सांसद की अफसर क्यों नहीं सुन रहे हैं? अगर सुन रहे होते तो प्रोफ़ेसर साहब को पत्र नहीं लिखना पड़ता। या फिर यह सत्ताधारी दल की ओर से चल रही कोई चुनावी चाल है? इन सवालों के जवाब जो भी हों लेकिन इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता कि प्रोफ़ेसर साहब के एक फोन पर जिलाधिकारी ही सारे ठेकेदारों को ठीक कर देते। उनका विभागीय मंत्री और अपने भाई को भी एक फोन पर्याप्त होता। प्रोफ़ेसर साहब मुख्यमंत्री को तो वैसे भी आदेश देने की स्थिति में हैं, भतीजे जो ठहरे मुख्यमंत्री जी। ऐसे में ये चिट्ठी-पत्री बेमानी लगती है। राज्य सरकार के प्रभावशाली मंत्री, मुख्यमंत्री जी के चाचा शिवपाल यादव भी भ्रष्टाचारियों से खफा हैं। जब-तब सार्वजनिक मंचों से कहते रहते कि कमीशनखोरों को बख्शेंगे नहीं, पर कार्रवाई किसी पर नहीं करते। हाल ही में उन्होंने अपने गृह जनपद में इसी तरह का बयान दिया है। वे परिवार की अगली पीढ़ी को जिला पंचायत प्रमुख बनाने के लिए आयोजित समारोह में शिरकत कर रहे थे।

विकास और आम आदमी

ये हालात आम आदमी को कंफ्यूज करते हैं। लोग-बाग समझना चाहते हैं कि ये लोग वाकई चिंता कर रहे हैं देश-समाज की या कोई और बात है। सच जो भी हो, मैं तो जान नहीं सकता। पर, देश-प्रदेश की तरक्की सभी चाहते हैं। वह तभी होगी जब विकास के काम में ईमानदारी बरती जाएगी। इसकी पहली जिम्मेदारी ऊपर वालों पर ही आयत है। और यह तय है कि इनमें से ज्यादातर अपने दायित्व के प्रति ईमानदार नहीं है। अगर होते, तो न ही नौकरशाही इतनी ख़राब दौर से गुजरती और न ही अभियंताओं का समूह। विभाग कोई हो, बिना कमीशन कोई काम नहीं होता दिखाई दे रहा है। अब थाने में शिकायत न दर्ज हो, कचेहरी में न्याय न मिले, सरकारी राशन की दुकान पर अन्न न मिले, बिजली दफ्तर में फरियादी की सुनवाई न हो, फिर भी सरकारें कहे कि वह बहुत बढ़िया काम कर रही हैं, तो इस पर कोई क्या कर और कह सकता है। जनता तो होती ही है, तड़पने के लिए। और वह तड़प रही है। कहीं से कोई राहत मिलती नहीं दिखाई दे रही। अफसर अपनी चाल और नेता अपनी। ऐसे में जनता की सुने कौन। फ़िलहाल कोई नहीं है सुनने वाला। अगर आप का कोई जरूरी काम किसी महकमे में फंस गया है तो रिश्वत देकर करा लें, वह भी अपने जोखिम पर। क्योंकि रिश्वत देना भी जुर्म है कानून की नजर में। बच-बचा के रिश्वत दीजिएगा। अन्यथा काम तो होगा नहीं, अलबत्ता जेल जरूर जाना पड़ेगा।
आज ही हुई कैबिनेट की बैठक में गाँव, किसान और युवा पर पूरा फोकस रहा। हकीकत बाद में ही सामने आएगी। अभी-अभी हुई बैठक और उसमें लिए गए फैसलों पर सवाल उठाना व्यवस्था के साथ नाइंसाफी होगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि अभी तक न सही, आगे कुछ बेहतर जरूर होगा।

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