इस ऑनलाइन सिस्टम से तो ऑफ लाइन ही बेहतर

स्टार्ट अप इंडिया के शोर के बीच मैं पूरी विनम्रता से अपने एक मित्र की भोगी हुई कहानी बयाँ कर रहा हूँ. इस कहानी का सच 24 कैरट सोने जैसा है. उन्हें सेल्स टैक्स विभाग में अपने व्यापारिक प्रतिष्ठान का पंजीकरण कराना था. वे अपने दोस्त के जरिये विभाग के एक बड़े अधिकारी के पास पहुंचे. अधिकारी ने दो मातहत अफसरों को बुलाया और पंजीकरण के लिए जरूरी सभी कागजात की जानकारी देने को कहा. मातहतों ने अपने हाथ से लिखकर कागज का एक टुकड़ा दिया. तय समय पर वे सारे कागज लेकर पहुँच गए उन्हीं अधिकारी के पास जिन्होंने कागज की सूची सौंपी थी.
उन्होंने पूंछा-सारे कागज लाये हैं. हाँ में सर हिलाने के बाद इस अफसर ने कहा लेकिन चालान नहीं लाये होंगे. मित्र ने जोर देकर कहा कि आप का कहा सारा कागज है. फिर इस अफसर ने किसी दूसरे कर्मचारी के पास भेजा. उसे ही सारे कागजात ऑनलाइन अपलोड करने थे. व्यवहार से बेहद विनम्र वे सज्जन बोले-सर, बिना चालान तो कंप्यूटर आगे ही नहीं बढ़ेगा. चालान कहाँ मिलेगा? पूछने पर उन्होंने बताया कि विभाग में तो फार्म ख़त्म हो गया है लेकिन आप को बाहर किसी भी दुकान पर मिल जाएगा. उसे भर कर बैंक में जमा कर दीजिए. वहाँ से रसीद लेकर आइये. तब अपलोड कर देते हैं. शाम के 4 बजे थे. उनके कहे मुताबिक जो फार्म दफ्तर में नहीं था, बाहर वाकई थोकभाव में उपलब्ध मिला. बैंक पहुंचे तो कुछ लोग लाइन में लगे थे. दो लोग बचे थे तभी बैंक वाले बाबू उठकर चल दिए. बोले अब कल आइएगा. इस तरह पूरे दिन की मेहनत बेकार हो गई और लौट के बुद्धू घर को आये. अगली सुबह जैसे-तैसे उनका फार्म अपलोड हो पाया.
कहानी सुनते हुए मेरे मन में कई सवाल घुमड़ने लगे. जब सब कुछ ऑनलाइन है तो फार्म ऑफ लाइन क्यों भरा जाना चाहिए ? जब सब कुछ ऑनलाइन है तो पैसा विभाग में उसी कम्प्यूटर के जरिये क्यों नहीं जमा होना चाहिए? कंप्यूटर लिट्रेसी इतनी तेजी से बढ़ रही है तो विभाग ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं करता कि लोग फॉर्म भरने का काम खुद ही करें. इसके लिए हिंदी और अंग्रेजी भाषा में साफ-साफ निर्देश होने चाहिए, वह भी कंप्यूटर में ही. जिसकी मर्जी हो वह पढ़े और आगे की कार्यवाही करे. विभाग के पास कोई चेक लिस्ट क्यों नहीं है, जिससे कोई भी आम आदमी या फिर अफसर, मातहत देखकर किसी आम आदमी को गाइड कर सके. जैसा कि इस मामले में एक वरिष्ठ अधिकारी के चाहने के बावजूद दो अधिकारी मिलकर भी पूरे कागजात एक बार में नहीं बता सके. मन यह मानने को तैयार नहीं कि इन अफसरों को जानकारी नहीं, असल में शायद उन्हें गुस्सा आ गया हो कि ये नामाकूल इंसान हमारे साहब के पास सीधे कैसे पहुँच गया. इसे मेरे पास आना चाहिए था. अब अगर सरकार की मंशा साफ है और वह वाकई राजस्व को बढ़ाने में रूचि रखती है तो ऑनलाइन व्यवस्था को और जिम्मेदारी से लागू करती. भ्रष्टाचार पर काफी हद तक रोक लगती और लोगों को राहत. पर, इस ऑनलाइन व्यवस्था में तो इतनी खामियां हैं कि यह व्यापारियों के हित में कम और विभागीय लोगों के हित में ज्यादा दिखता है. इस तरह तो हमारे नीति-नियंता ऑनलाइन सिस्टम को इतना बदनाम कर देंगे कि लोगों का भरोसा उठ जाएगा. मौजूदा ऑनलाइन सिस्टम तो व्यापारियों को और उलझाने वाला दिखाई दे रहा. राज्य सरकारों के ज्यादातर ऑनलाइन कामकाज का दावा करने वाले महकमों का यही हाल है. यहाँ अभी भी ऑफ लाइन की ही तर्ज पर काम होता है और जनता परेशान घूमती हुई दिखाई देती है. विभागों ने कम्प्यूटर लगा देने मात्र को ऑनलाइन सेवा देना मान लिया है. इसीलिए दिक्कत है. और कोई चाहता भी नहीं कि असल में विभागों में ऑनलाइन सिस्टम वाकई लागू हो. अन्यथा कोई कारण नहीं, कि ये हो नहीं पाता.
उद्योगपति, बड़े व्यापारी पहले से ही सिंगल विंडो की मांग करते आ रहे हैं. एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी ने स्टार्ट अप इंडिया के शुभारम्भ अवसर पर साफ किया है कि यह व्यवस्था व्यापार के अनुरूप होगी. क्योंकि अभी तो एक व्यापार शुरू करने में अड़चने ही अड़चने हैं.

किसी भी व्यापारी, उद्योगपति से बात कर लो, बंद कमरे में सरकारी तंत्र से वह ठगा हुआ पाता है. सेल्स टैक्स, इनकम टैक्स, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, जिला प्रशासन, उद्योग महकमा, कारपोरेट मिनिस्ट्री आदि-आदि टाइप के दर्जन भर से जयादा महकमे केवल काम को उलझाने का काम करने में लगे हैं. यद्यपि, ऑनलाइन सिस्टम एक बेहतरीन व्यवस्था है, पर यह हो पूरी तरह ऑनलाइन. इस मामले में कोई भी विभाग गूगल, फेसबुक जैसी संस्थाओं से बहुत कुछ सीख सकता है. ये दोनों संस्थाएं अमरीका में बैठकर ऑनलाइन ही पूरी दुनिया पर राज कर रही हैं. पैसा जमा करना हो या फिर अपने ग्राहकों को सेवा देना, इन्हें किसी भी सूरत में किसी की जरूरत नहीं. इनकी ऑनलाइन व्यवस्था इतनी जबरदस्त है कि कोई भी संस्था इनका एक रूपया मार ही नहीं सकती. लेकिन ये खुद के प्रति, अपनी कम्पनी के प्रति, अपनी संस्था के प्रति ईमानदार हैं. हमारी संस्थाओं की तरह इनके यहाँ लूपहोल्स नहीं हैं. इसीलिए ये सेवा देने में तो अग्रणी हैं ही, कोई भी आदमी इनके यहाँ काम करना चाहता है. अपने देश में ही टीसीएस की सेवा लेने के बाद अत्यधिक बदनाम पासपोर्ट सेवाओं में जबरदस्त सुधार दर्ज किया गया है. अब अगर सारे कागजात के साथ कोई आदमी पासपोर्ट के लिए आवेदन करता है, तो वहां उसे बहुत समय नहीं लगता, बशर्ते, राज्य की पुलिस उसकी सही रिपोर्ट समय से दाखिल कर दे. उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकारें और उनके अधिकारी इन अंतर्राष्ट्रीय और देशी संस्थाओं से कुछ सीखेंगे. अगर ऐसा हुआ तो देश तो तरक्की करेगा ही, भ्रष्टाचार पर भी काफी हद तक अंकुश लगेगा. पर, लाख टके का सवाल है कि इस तरह की ऑनलाइन व्यवस्था को लागू करने की हिम्मत जुटाएगा कौन?   

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