पठानकोट – आखिर कब तक चलेगा हमलों का सिलसिला?

पठानकोट एयर बेस का एक छोटा सा इलाका, ढेरों तकनीक, भारी-भरकम उपकरण, बड़ी संख्या में सशस्त्र हमारे जांबाज, फिर भी चंद आतंकी 50-55 घंटे से लगातार हमें छका रहे हैं| अभी भी तय नहीं हो पा रहा है कि पठानकोट ऑपरेशन सफल हुआ या नहीं| पठानकोट हमले का लब्बो-लुआब यही है| सेना, एनएसजी और पंजाब पुलिस के जांबाजों पर देश को शक नहीं, पर इन नीतिनिर्धारकों का क्या करें| किसी ने हमले के दिन ही पठानकोट ऑपरेशन ख़त्म करने की घोषणा कर दी तो किसी ने अपनी पीठ खुद ही ठोंक ली| पर, देश के सामने कुछ सवाल बरबस अभी भी मुंह बाये खड़े हैं| और इसका जवाब देश जानना ही चाहता है|
हमारे प्रधानमंत्री विदेशी धरती पर नवाज शरीफ से मिलते हैं| फिर एनएसए अजित डोवल भी अपने समकक्ष से मुलाकात को विदेशी धरती चुनते हैं| विदेश मंत्री सुषमा स्वराज पाकिस्तान पहुँच जाती हैं| रही-सही कसर प्रधानमंत्री का अचानक पाकिस्तान दौरा पूरा कर देता है| यह सारे तथ्य यह बताने-जताने को काफी हैं कि भारत ने अपनी ओर से दोस्ती करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और बदले में मिला फिर एक और हमला वह भी एयर बेस पर| मतलब हमारे सर्वाधिक सुरक्षित माने जाने वाले ठिकाने पर| इसका मतलब यह भी हुआ कि दुश्मन हमें लगातार यह बताने का प्रयास कर रहा है कि वह न तो कमजोर है और न ही दबने वाला है| वह शायद यह भी बताने-जताने में कोई कसर नहीं रखना चाहता कि भारत सरकार चाहे जितने जतन कर ले, पाकिस्तान में फिलहाल सेना का शासन चलता है और कई बार तो यह भी लगता है कि पाकिस्तान की धरती पर आतंकियों की ही चलती है, पाकिस्तानी सेना भी कई बार इनके सामने घुटने टेकती नजर आती है| पाकिस्तान में लोकतंत्र महज दिखावा लगता है| इसे तस्दीक करने के लिए दर्जनों आतंकी संगठनों की वहां मौजूदगी, बार-बार पाक सेना को मिल रही चुनौतियाँ भी काफी हैं|
इस सूरत में भारत को तय करना होगा कि वह किसके साथ बातचीत बढ़ाए| सामान्य तरीके से तो निश्चित तौर पर हमें जनता द्वारा चुनी गई सरकार के साथ ही बात करनी चाहिए और यही हम कर भी रहे हैं| पर, बदले में अगर हमें हमले झेलने पड़ें तो तय करना होगा कि इस बातचीत का मतलब क्या है| उधर से घोषित-अघोषित हमले जारी हैं| तब भी जब हमारी बातचीत बंद थी और तब भी जब हमारे प्रधानमंत्री जी पाक वजीर-ए-आला को जन्मदिन की मुबारकबाद देने कुछ यूं चले जाते हैं जैसे कोई अपने मोहल्ले के साथी को शुभकामनाएं देने झटपट चल देता है| अब सवाल यह है कि हमारी सेना के जवान कब तक शहीद होते रहेंगे| और हम कब तक शांति बहाली की दिशा में खुद को दिलासा देते रहेंगे| यह बात ठीक है कि हम धर्मनिरपेक्ष देश हैं| पर क्या हमें अमेरिका, रूस से सीख नहीं लेनी चाहिए| वे अपने दुश्मन को दुश्मन ही मानते हैं| अनेक उदाहरण बीते वर्षों में सामने आ चुके हैं जब उन्होंने दुश्मन की धरती पर ही जाकर उन्हें परास्त किया| इसके लिए कई बार दुनिया में उनकी आलोचना भी हुई, पर उन्होंने किसी की परवाह नहीं की| बल्कि दुनिया की नजर में वे और ताकतवर बनकर उभरे| यह बात सर्वविदित है कि लड़ाई में देश बहुत कुछ खोता है| पर शायद वह आन-बान-शान से ज्यादा कीमती नहीं|

आखिर कब तक पठानकोट?

देश की सवा सौ करोड़ की आबादी में शायद एक-दो फीसद लोग ही ऐसे हैं, जो नियम-कानून को बेहतर तरीके से समझते हैं| उनकी नजर में संभव है कि पाकिस्तान के साथ बातचीत बंद करना या फिर ईंट का जवाब पत्थर से देने को ख़राब माना जाये, पर बाकी देशवासी तो पाकिस्तान की ओर से चल रही इस नापाक हरकत को नहीं पसंद करते| जब ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान के एक घर में ढूढ़ कर अमेरिका ने मारा तो पूरी दुनिया में बराक ओबामा की तारीफ हुई| यह टास्क उनके लिए छोटा नहीं था| इसके लिए न तो अमेरिकी सेना ने किसी से बात की न ही भरोसे में लिया न ही किसी से मदद मांगी| अपने दुश्मन को खोजने में जो वक्त लगा, बस उतना ही लगा| अमेरिका ओसामा से कितना खफा था कि इस बात से भी पता चलता है कि शव तक ले जाकर समुद्र में फेंक दिया| यह सिर्फ एक हमले का बदला था| भारत सरकार, हमारी ख़ुफ़िया एजेंसियां, सेना की मानें तो हमारे पास ढेरों प्रमाण हैं, जिसके आधार पर हम पाकिस्तान और वहां मौजूद अनेक आतंकियों को भारत में बार-बार हमले का दोषी मानते हैं, पर कार्रवाई के नाम पर मौन रहते हैं| इस मामले में मौजूदा सरकार हो या फिर पुरानी वाली| सब एक समान है|
शायद अब समय आ गया है कि भारत सरकार को देश की मनोभावनाओं का सम्मान करते हुए आगे बढ़ना चाहिए| आखिर कब तक देशवासी और हमारे जवान शहीद होते रहेंगे| माँ की कोख सूनी होती रहेगी| बहन-बेटियां विधवा होती रहेंगी| अब यह सिलसिला रुकना चाहिए| अगर नहीं रुका तो संभव है कि भारत को शांति के किसी बहुत बड़े पुरस्कार से सम्मानित कर दिया जाये पर, देश में आतंकी गतिविधियाँ बंद नहीं होंगी| देशवासी और हमारे बहादुर जवान यूं ही शहीद होते रहेंगे| नियम-कानून हमारे ही हैं| उन्हें हमने ही बनाया है| हमें उसमें सुधार करने से भी कोई रोक नहीं सकता| फिर आये दिन ऐसे हमले भारत क्यों झेले ? क्यों शहीद होते रहें हमारे जवान? और कब तक? किसी के पास है कोई जवाब? शायद केवल सरकार के पास…


Comments

Popular posts from this blog

खतरे में ढेंका, चकिया, जांता, ओखरी

सावधान! कहीं आपका बच्चा तो गुमशुम नहीं रहता?

गूलर की पुकार-कोई मेरी बात राजा तक पहुंचा दो