ये जिंदगी ऐसी ही है रूबी

प्रिय रूबी
आज मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ. अपने रिश्ते के बारे में. तुम समझने का प्रयास जरूर करना. वक्त से ज्यादा और समय से पहले कुछ नहीं मिलता. हमारे बुजुर्गों ने काफी तजुर्बे के बाद ये लाइन कही होगी जो आज कहावत सी हो चली है. असल में तुम्हारी नाराजगी, गुस्सा इसलिए कि तुम इस बात से इत्तेफाक नहीं रखती हो. तुम मुझ पर भरोसा भी नहीं करती हो. तुम्हारे पास जो है, उससे ख़ुशी तुम्हें मिलती नहीं जो नहीं है उसके पीछे भागती दिखती हो. बेहतर हो कि जो तुम्हारे पास है उससे खुश रहो. मुझे भरोसा है कि वह भी मिल जाएगा जो तुम चाहती हो.
तुम एक बेहतरीन इंसान हो. पत्नी हो. दोस्त हो. माँ हो. मुझे लगता है कि तुम्हारे बिना हमारा जीवन चलेगा ही नहीं. तुमने हमें लाचार बना दिया है अपने प्यार से. खाने के स्वाद से. अपने प्रबंधन से. तुम इस बात पर तो भरोसा करोगी ही कि पंचतारा की पार्टियों में परोसे जाने वाले भोजन भी मुझे इसलिए पसंद नहीं आते क्योंकि तुम्हारे हाथों से बने खाने में जो स्वाद है, वह कहीं है ही नहीं. घर को जैसा तुम सहेज लेती हो, ऐसी मुझे कोई नारी दिखी ही नहीं. जब भी मैं संकट में आया, तुम समाधान बनकर सामने आ गई. इसीलिए मैं तुम्हारा फैन हूँ. तुम कहो मैं स्वार्थी हूँ, हाँ हूँ. पर, अब हम जीवन के जिस मोड़ पर खड़े हैं, हमें अपने सोचने-समझने का नजरिया बदलना होगा.
तुम्हें याद है जब हम दिल्ली आये थे. क्या था हमारे पास. किराये का घर. एक मोटर साइकिल. दो महीने का सगीर. कुछ सौ रुपये. आज हमारे पास साउथ दिल्ली में एक बड़ा फ्लैट है. गाड़ी है. सगीर भी कमाने लगा है. तुम्हें उसकी नौकरी से भले ख़ुशी न मिले पर बीटेक पास ढेरों बच्चों से वह बेहतर है. बिटिया रिजवाना भी तो होनहार है. उसे तुम हर वक्त कोसती रहती हो, पर भरोसा करो, बहुत बढ़िया करेगी वह अपने जीवन में. और सबसे बेहतरीन बात यह है कि यह सब हमने मेहनत और ईमानदारी से जुटाया है. छोटी-छोटी खुशियों से जब तक तुम खुश नहीं रहोगी, तब तक बड़ी मिलने वाली नहीं. ध्यान दो, तुम पति को, बच्चों को, माता-पिता को ख़ारिज करती रहती हो जबकि वो सब तुम्हें चाहते हैं. तुम्हारा कोई आदर्श अब तक नहीं है या मुझे दिखा नहीं है. तुम अपनी बात को ही ऊपर रखने से बाज आओ. कभी सामने वाले की भी सुनो. यह गलतफहमी मत पालो कि तुम हमेशा सही हो.  क्योंकि ऐसा कोई बना ही नहीं है धरा पर, फिर तुम धरा से ऊपर तो नहीं. और हाँ, जब कभी कुछ बेहतर दिखे तो उसे सराहो जरूर. चाहे घर में, समाज में या फिर कहीं और. यह इंसानी फितरत है कि जब सराहो उसे बेहतरीन लगता है. तुम्हें ध्यान होगा, जब हमने पहली बार कार ली थी, तुम्हें कोई ख़ुशी नहीं मिली थी. जब हमने दूसरी कार ली तब भी तुम्हें गर्व नहीं हुआ था. जब हमारा फ्लैट मिलने की सूचना मैंने तुम्हें फोन पर दी थी, उसने भी तुम्हें ख़ुशी नहीं दी थी. बल्कि तुमने नाराजगी जताई थी.
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम साधारण परिवार से हैं. विरासत में हमें कुछ भी नहीं मिला. जो कुछ भी आज हमारे पास है यह सब हमारी मेहनत से ही है. तुमने या मैंने अपने किसी रिश्तेदार का बैंक खाता नहीं देखा है. हमारा भी किसी ने नहीं देखा है. पर, हमारी साख समाज में, रिश्तेदारों में बेहतरीन है. इसमें तुम्हारी बहुत बड़ी भूमिका है. हमारे पास खुश होने के एक हजार कारण है और दुखी होने के एक लाख बहाने. अब तय हमें करना है कि हमें दुखी होना है या खुश. तुम्हें गर्व होना चाहिए कि तुम्हारा शौहर शराब नहीं पीता. बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू की भी उसे लत नहीं है. जब तुम पूछती हो क्या बना दूं, झट से बोलता है-एक मोती रोटी, चटनी और घी दे दो. तुम्हें याद भी नहीं होगा कि खाने के लिए कभी हमारी लड़ाई हुई हो. हमारे बच्चों में भी कम से कम अब तक ऐसी कोई बुराई नहीं है. फिर हम दुखी क्यों रहें. इसलिए कि हमारे पास लम्बी वाली कार क्यों नहीं. इसलिए कि हमारे घर में होटल जैसी साज-सज्जा क्यों नहीं या फिर इसलिए कि हमारे बच्चे हमारी मंशा के अनुरूप काम क्यों नहीं कर रहे. जब तुम अपने करियर के लिए मुझे दोषी ठहराती हो तो तुम भूल जाती हो कि अब तक इस दिशा में तुम्हारे हाथ कोई कामयाबी नहीं लगी है. हाँ, सगीर और रिजवाना तुम्हारी पूँजी हैं. तुम्हारा करियर हैं. ये आज जो कुछ भी हैं सिर्फ तुम्हारी वजह से. इनके लालन-पालन में मेरी तो कोई भूमिका है ही नहीं. न जाने कितनी रातें तुमने काटी हैं इनके साथ, जब मैं तुम्हारे साथ नहीं था. शायद इसीलिए दोनों तुम्हें तहेदिल से प्यार भी करते हैं. छेड़ते भी हैं तुम्हें. मैं तो खैर हूँ ही तुम्हारा गुलाम.   
आओ जीवन के इस मोड़ पर हम खुद को तैयार करें कि अब से हम छोटी-छोटी खुशियों के साथ मस्ती करेंगे. बड़ी नहीं मिलती तो कोई गम नहीं. जो है उसमें खुश रहने का प्रयास करेंगे. हमेशा अपने से नीचे देखेंगे क्योंकि ऐसा करने से हमें पता चलता है कि लाखों-करोड़ों से हम बेहतरीन है. ध्यान रखना पूरी दुनिया की आधी दौलत सिर्फ 62 लोगों के पास है. और बची आधी में पूरी दुनिया. आमीन.
तुम्हारा अपना
मुख़्तार


Comments

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  2. बहुत अच्छा लिखा हैं! दो शब्द मुख्तार साहब क लिए.....
    यूँ तो हज़ार दफा ये बात सुनी हैं मैंने, पर इस बार अंदाज़ कुछ अनोखा हैं! पढ़ कर बात कुछ लग सी गई! खुशी और एक मुकम्मल जहान की उम्मीद, जिंदगी को बंधने का सहारा! आमीन मुख़्तार साहब! आमीन!

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