गूलर की पुकार-कोई मेरी बात राजा तक पहुंचा दो

गूलर का पेड़: सांकेतिक फोटो साभार

गूलर, पाकड़, आम, पीपल, बरगद. सब एक साथ बैठे थे. आपस में बातें चल रही थी. पर, गूलर एक चुप-हजार चुप. एक शब्द बोलने को तैयार नहीं. पाकड़ ने आम से कहा-आजकल तो तुम्हारे ही जलवे हैं. जिसे न देखो, वही तुम्हें ललचाई नजरों से देखे जा रहा है. आम ने कहा, अरे नहीं रे. तुम तो कुछ भी बोले जा रहे हो. कुछ ही दिन की बात है. फिर तो कोई नहीं देखता.
पाकड़ ने कहा-अरे तुम्हें कुछ ही दिन सही, लोग देखते तो हैं. यहाँ तो सालों-साल कोई पूछता तक नहीं. जब लोग मेरे नीचे बैठकर आराम करते हैं और निकल जाते हैं. लेकिन नजरें उठाकर देखते भी नहीं. वो तो भला हो, धर्म-शास्त्रों का, जिन्होंने हमें नवग्रह, पञ्चपल्लव का हिस्सा बना दिया. यदा-कदा लोग मेरे इर्द-गिर्द भी चक्कर लगा लेते हैं. फिर सबने एक स्वर में गूलर से कहा-तुम इतने क्यों चुपचाप हो ? गूलर ने बोला-कुछ ख़ास नहीं. पूरे देश के लोगों के अच्छे दिन आ गए लेकिन मेरे खराब दिन की शुरुआत अभी अभी हुई है.
राजा साहब के एक ताल्लुकदार ने अपने दरबारियों के बीच मुझे अशुभ बताया और तमाम भली-बुरी बातें कहीं. तब से अब तक उनके कारिंदे भेड़ियों की तरह टूट पड़े हैं. जिसे न देखो, वही, पूरी की पूरी जमात को नेस्तनाबूंद करने पर तुला हुआ है. ऐसे ही चला तो ज़माना भूल जाएगा कि गूलर नाम की कोई प्रजाति इस दुनिया में पाई भी जाती थी.
मुझे अपने मरने की चिंता भी नहीं है. मुझे पता है कि जो आया है, उसे जाना ही है. पर, गूलर के जाने का मतलब यह हुआ कि इतिहास का खो जाना. युग का अवसान. एक कहावत कही जाती है- तुम तो गूलर के फूल हो गए हो. गेरुआ वस्त्रधारी इन ताल्लुकेदार साहब को खुद भी पता है मेरा महत्व. फिर भी न जाने क्या खता हुई मुझसे कि अचानक वे खफा हो गए. वेद की समझ इन्हें. पुराण ये खुद पढ़ते आये हैं. बड़ा नाम सुना था इनका. लोग कहते नहीं थकते कि बड़े धार्मिक हैं. किसी का अनभला नहीं चाहते. पर, अब मुझे अशुभ बताते हुए शिवभक्तों के रास्ते से हटाने का फरमान सुना दिया.
ये वही शिवभक्त हैं, जो खुद सड़कों पर कैसे चलते हैं. जग-जाहिर है. इनका संगीत किसी से छिपा नहीं. ये समाज को कुछ देते हैं, इसकी ठीक-ठीक जानकारी मुझे नहीं है, पर, मुझसे समाज को क्या मिलता है, यह किसी से नहीं छिपा है. क्या राजा, क्या, प्रजा. सब जानते हैं कि मैं फल के अलावा इंसान को जीवन देने के लिए जरुरी आक्सीजन भी दे ही रहा. फिर इस नामुराद ताल्लुकेदार को कोई समझाता क्यों नहीं कि उसके कारिंदे जब हमें काट फेंकेंगे तो वो जियेगा कैसे? कहाँ से लाएंगे आक्सीजन? मेरी अपनी उम्र 50 साल से भी ज्यादा है. मेरे सजातीय लोगो भी कोई सौ साल तो कोई पचीस का है. सबके सब बिना किसी स्वार्थ के तुम इंसानों को कुछ न कुछ देते ही हैं. फिर हमारे ही साथ यह नाइंसाफी क्यों? कोई है जो राजा तक मेरी बात पहुंचाएगा.

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