वफ़ा जो तुमने नेता जी से निभाई होती

पंडित जी का एक चेला मेवालाल सुबह-सुबह उनके घर पहुंचा. पूरे गुस्से में था. बोला-गुरु जी, मेरी समझ में नहीं आ रहा मेरे नेता जी को क्या हो गया. पूरे 25 साल से पार्टी का झंडा लिए घूम रहा हूँ. आज तक केवल एक बार जिला पंचायत अध्यक्ष बनाया. लोकसभा चुनाव का टिकट पहले दिया. मैंने तैयारी में खासा पैसा बहा दिया. एक दिन रात में खबर आई कि टिकट कट गया. इलाके की पब्लिक कहती है कि मैं उनका बहुत खास हूँ. इसका मुझे क्या फायदा. अब तो लेखपाल और थाने का मुंशी भी मेरी नहीं सुनता. नतीजा मैं अब अपने कार्यकर्ताओं की मदद नहीं कर पा रहा. जबकि एक आवाज पर मेरे पीछे झंडा लेकर चलने वालों की भारी भीड़ है. अब आप ही मार्गदर्शन करो गुरु जी-क्या करूँ. कौन सी पार्टी ज्वाइन करूँ. अब यहाँ मन नहीं लग रहा.
सोचा था और कोशिश भी की थी कि इस बार अपनी सरकार है. विधान परिषद सदस्य की सीट पक्की कर लेंगे. पार्टी ने आश्वस्त भी किया. सूची आई तो नाम नदारद. अब विधान सभा चुनाव के पहले कोई अवसर नहीं आने वाला. पंडित जी बोले-तुम हो पूरे के पूरे लल्लू. जरूर तुम्हारे सेवाभाव में कोई कमी होगी. पार्टी के प्रति तुम्हारी निष्ठा ठीक नहीं होगी. नहीं तो तुम्हारे साथ ऐसा नहीं होता. नेता जी तो बहुत ख्याल करते हैं अपने कार्यकर्ताओं का. तुम तो सजातीय भी हो. मैंने बहुत बार देखा है उन्हें लोगों की मदद करते हुए. वे तो इतने मददगार हैं कि कई बार अपने पुराने साथियों के साथ खड़े दिखते हैं, जिनका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है. यह उनकी चाहत ही है कि जिसे एक बार गले लगा लिया, उसे लगा लिया. उसकी मदद में वे हरदम खड़े दिखते हैं. यही कारण है कि वे अपराधियों को भी टिकट दे देते हैं. बस उसकी निष्ठा उनके प्रति होनी चाहिए. कोई बता रहा था इस सूची में भी तो उन्होंने कुछ अपराधियों को विधान परिषद भेजने का फैसला किया है. 
तुम्हारी सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि तुमने केवल झंडा उठाया. अब चुनाव लड़ने के लिए केवल झंडा उठाना पर्याप्त नहीं है. तुम्हारे पास बड़ी-बड़ी गाड़ियाँ होनी चाहिए. करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाने के लिए होना चाहिए. लूट, डकैती, बलात्कार के कुछ मुकदमे भी अनिवार्य शर्त है बड़ा नेता होने की या कहें कि टिकट पाने की. नेता जी, मुस्लिम और यादव को निराश नहीं करते, यह बात बिलकुल ठीक है. लेकिन उनके साथ नाम के लिए ही सही, सभी बिरादरी के लोग हैं. पंडित, ठाकुर, दलित सब. इस सूबे में उनके सजातीय केवल सैफई, मैनपुरी, इटावा में ही बसते हैं. बाकी लोग तो फर्जी ही नाम लगाये घूमते हैं. आज का सच यही है कि नेता जी ही यादवों के असली प्रतिनिधि हैं. वे कहें तो तुम यादव नहीं तो लिखते रहो, कोई नहीं पूछने वाला. टिकट तो भूल ही जाओ. नेताजी का इतना बड़ा परिवार है. भाई, भतीजे, भतीजी, भांजे-भांजी, बहू से कुछ बचेगा तब तो तुम्हारे खाते में आएगा. अभी वैसे भी परिवार में कई बच्चे लाइन में हैं. इस सूची में भी उन्हें जगह नहीं मिली. वैसे भी तुममे नेता बनने के गुण नहीं है. धोखेबाजी करोगे नहीं, दगाबाजी तुम्हारे खून में नहीं, फिर नेताजी को दोषी नहीं ठहरा सकते. बाकी तुम्हारी मर्जी. चाहे जिस दल में जाओ. शर्त तो सबकी ऐसी ही है. कही टिकट पाने के लिए भारी पैसा देना होगा तो कहीं पैनल में शामिल होने में ही मारामारी है. एक पार्टी जरूर है, जहाँ टिकट के लिए ज्यादा संघर्ष नहीं करना पड़ेगा. कांग्रेस से टिकट पाने की सम्भावना देखो. बात करो. समय देख शामिल हो जाओ. विधायक बनो न बनो. पैसा कम डूबेगा. कुछ दिन का खर्चा तुम बचा सकते हो. सुना है वहां जद्दोजहद कम करनी पड़ेगी. क्योंकि उनके पास प्रत्याशी नहीं हैं सभी सीटों के लिए. बाकी मेरी मानो, लगे रहो इसी दल में. लेकिन निष्ठा बढ़ाओ और नई पीढ़ी के करीब आओ. देखो जिन्हें पहले निकाला, वे अब विधान परिषद में देखे जाएंगे. यह है नई पीढ़ी की ताकत. यही तो समाजवाद है भाई. 

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