बजट बिगाड़ने की धमकी क्यों दे रहे हैं मंत्री जी
आदरणीय
वित्त मंत्री जी
सादर
नमस्कार
दो
दिन पहले बजट को लेकर आप का बयान पढ़ा. बिल्कुल पेश करिए सख्त बजट. लोकलुभावन
बजट का मैं भी कभी कायल नहीं रहा. हमेशा से मेरी भी मंशा वैसी ही रही, जैसी आज आप
की है. पर, ये 125 करोड़ की आबादी वाला देश अपनी सरकार से बड़ी उम्मीदें हरदम पाले
रहता है. और क्यों न पाले? आखिर वो वोट देता है. उसी के वोट से आप राजा बन जाते हो
और वह पूरे पांच साल तक आप की प्रजा. फिर चुनाव आएगा तो चंद महीनों के लिए वो राजा
होगा और आप सेवक. आइस-पाइस के खेल की तरह यह परम्परा सी चली आ रही है. ऐसे ही चलेगी भी. क्योंकि हमने तो
दुनिया भर में बेहतरीन लोकतंत्र का ढिंढोरा जो पीट रखा है. आप भी डेढ़ साल से आंकड़े
ही दिखा रहे हो. इनके मुताबिक सब कुछ बहुत बढ़िया चल रहा है. देश बुलेट ट्रेन की
रफ़्तार से भाग रहा है. पर सच, सच में वही नहीं है, जिन्हें आप आंकड़ों के माध्यम से
दिखा रहे हो.
सच
जानने के लिए गाँव तक जाना होगा. बाजारों, कस्बों तक पहुँचना होगा. अब उतना समय तो
आप के पास भी नहीं है. कोई बता रहा था कि आप और प्रधानमंत्री जी ने सांसदों,
मंत्रियों को बजट पर जनता की राय एकत्र करने को कहा है. हो सकता है कि ये लोग राय
लें. मेरी सांसद जी से तो मुलाकात ही मुश्किल से हो पाती है तो सुझाव कब वे मांगेंगे
और हम कब देंगे. मैंने तो बस इंटरनेट से कुछ आंकड़े लिए और उसी के सहारे बड़ी
उम्मीदों से यह ख़त आप को लिख रहा हूँ. ध्यान दीजिएगा क्योंकि ये आंकड़े भी सरकारी
विभागों की वेबसाइट से ही निकाले हैं मैंने. 125 करोड़ की आबादी में केवल 3.5 करोड़
ही आयकर देते हैं. नौ करोड़ के पास ही पैन है. इस देश में एक करोड़ से ज्यादा कमाने
वालों की संख्या 50 हजार नहीं है. ऐसे में आप की सारी सख्ती बेमतलब लगती है. किसान
आजादी के बाद और गरीब हुआ है. देश की तरक्की में उसका योगदान कम हो गया. खाने-पीने
की ढेरों वस्तुएं उसकी पहुँच से दूर हो गई हैं. महंगाई चरम पर है. आप को जो
संपन्नता सड़कों पर कारों के रूप में दिख रही है, वे बैंकों से कर्ज के आधार पर
हैं. मेरे गाँव का एक नौजवान दिल्ली में इंजीनियर है. उसे 90 हजार महीने में मिलता
है. किराया देकर उसकी कमर टेढ़ी हो गई थी. दो साल पहले उसने सुदूर कहीं एक फ्लैट ले
रखा है. कह रहा था-50 हजार रुपया हर महीने किश्तें दे देता हूँ. टैक्स, पीएफ, बीमा
जैसी जरूरतें पूरी करने में लगभग 20 हजार और चले जा रहे हैं. 20 हजार में महीना
चलाना मुश्किल हो रहा है. इससे बेहतरीन जीवन तो तब था, जब मैं पढ़ रहा था.
मेरे
कस्बे में एक छोटा सा व्यापारी है. घर में दो लम्बी वाली कारें रखता है. कोठी भी
है. घर के तीन बच्चे शहर में रहकर पढ़ते हैं. मकान, गाड़ी, नौकर वहां भी हैं. आयकर
वह अपनी मर्जी से देता है. सेल्स टैक्स की भी कमोवेश ऐसी ही स्थिति है. बिल कस्बों
में न कोई मांगता है और न ही वो बनाता है. अगर किसी ने बिल मांगने की गुस्ताखी कर
ली तो उसे टैक्स का भय दिखाकर चुप करा देता है. यही हाल पूरे बाजार का है. वकील,
डॉक्टर, सीए खुद ही अपनी आय तय करते हैं. मुझे तो सिर्फ इतना कहना है कि अगर आप
वाकई देश के सामने सख्त बजट पेश करना चाहते हैं तो किसानों, गांवों की तरक्की की
बात करिए. वेतनभोगियों के बारे में सोचिये. जो लोग समय से आयकर दे देते हैं,
उन्हें कुछ अतिरिक्त सुविधा दीजिये. उन्हें लगना चाहिए कि वे इस देश की इतनी बड़ी
आबादी के चार फ़ीसदी में आते हैं. आप के इस बजट से देश को कागज में चाहे जितनी
तरक्की मिल जाये, अगर किसान नहीं होगा, तो अन्न कहाँ से और कब तक आएगा. इसमें
आत्मनिर्भर रहने के लिए हमें किसानों के लिए कुछ ऐसा सोचना होगा कि उन्हें लगे कि
सरकार उनके बारे में सोचती है. खाद, बीज, सिंचाई के साधन, बिजली मिले बगैर किसानों
का भला नहीं होने वाला. गाँव तक सड़कें नहीं होंगी. स्कूल नहीं होंगे. अस्पताल नहीं
होंगे तो कोई कैसे और क्यों गाँव में रहे. आप से कुछ छिपा नहीं है. पहाड़ी राज्यों
में गाँव के गाँव खाली हो गए हैं. क्योंकि रोजगार के साधन नहीं हैं. खेतों में
इतना अनाज होता नहीं कि वे बच्चों का पेट भर सकें. मैदानी राज्यों के गाँव भी रोज
खाली हो रहे हैं. आप किसी भी समय लखनऊ, गोरखपुर, इलाहाबाद, बिहार आदि से मुंबई,
दिल्ली जाने वाली गाड़ियों को देख लीजिये. पता चल जाएगा असल हाल क्या है. अभी दो
दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को फटकारा है. जानते हैं क्यों,
बेरोजगारी के लिए. लेकिन बेरोजगारी केवल उत्तर प्रदेश में ही नहीं है. हर राज्य का
हाल यही है.
संभव
है कि आप की सरकार का मेक इन इंडिया का नारा कुछ असर दिखाए, लेकिन हाल-फिलहाल तो
सबके हाथ खाली हैं. प्रधानमंत्री जी कुछ भी कहें, अभी उनकी योजनाओं को जमीन पर आने
तथा उनका असर गाँव, कस्बों तक पहुँचाने में समय लगेगा. हो सकता है कि आप की सरकार
का पूरा कार्यकाल ख़त्म हो जाये और हम जैसे गरीब और गरीब हो जाएँ, फिर चुनाव में आप
लोग कहो कि अधूरी परियोजनाओं को पूरा करने के लिए मोदी जी के हाथों को मजबूत
कीजिये. अंत में सिर्फ इतना कि सख्ती बजट में चाहे जितनी रखिये लेकिन गाँव, गरीब,
किसान, नौजवान पर खास नजरें होंगी तो सख्ती निभ जाएगी. अभी तक आप की सरकार ने जनता
की जेब से निकाला ज्यादा है, दिया कम है. आमजन चिल्ला रहे हैं.
आदर
सहित
पंडित
जी
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