एक हैं इंजीनियर यादव सिंह और एक ही सीबीआई
पहुँच
हो तो यादव सिंह जैसी| नहीं तो न हो| कमाल के आदमी और इंजीनियर भी हैं यादव सिंह| काबिल इतने कि बड़े-बड़े इंजीनियर इनके सामने पानी मांगते
रहे| जितनी पहुँच इस सरकार में उससे तनिक भी
कम पहुँच नहीं थी इनकी इससे पहले वाली सरकार में| लोग
मानते और जानते हैं कि सत्ता परिवर्तन होने पर अहम पदों पर बैठे लोग हटा दिए जाते
हैं| उनकी जगह नए चहरे या यूं कहिये कि खास
अफसर लगाये जाते हैं| पर यादव सिंह की सेहत पर राज्य में सत्ता
परिवर्तन का भी कोई फर्क नहीं| वे बदस्तूर अपनी जगह पर बने
रहे| हाँ, कुछ और ताकतवर भी हो गए| एक ही साथ नोएडा, ग्रेटर नोएडा, यमुना एक्सप्रेस वे जैसी
कई महत्वपूर्ण योजनाओं के मुख्य अभियंता का पद इन्हीं के पास रहा|
इनसे
योग्य इंजीनियर चाहकर भी आवाज नहीं उठा पाते क्योंकि समय इनके अनुकूल था| शरीर में ताकत इतनी कि एक साथ तीन-तीन प्रमुख प्राधिकरण
सँभालने के बावजूद हरदम ऊर्जा से लबरेज दिखते| उनकी इसी
ऊर्जा का ताप है या कहें था कि नवम्बर 2014 में उनके कई ठिकानों पर सीबीआई ने छापे
मारे| कहा गया कि करोड़ों की अवैध संपत्ति मिली| पर सीबीआई जैसी ताकतवर एजेंसी उन्हें गिरफ्तार नहीं कर पाई|
उस समय, उत्तर प्रदेश सरकार ने भी फौरी कोई कार्रवाई नहीं की| बल्कि इस मसले पर लगभग एक मौन था चारों ओर| सीबीआई छापे के बाद सामान्य तौर पर किसी अफसर को निलंबित
कर विभागीय जाँच के आदेश की एक परम्परा सी है| लेकिन इस
मामले में यह भी नहीं निभाई गई| अगले साल फरवरी 2015 में
राज्य सरकार ने न्यायिक जाँच के आदेश दिए| इस मामले
में सामाजिक कार्यकर्ता नूतन ठाकुर ने सीबीआई जाँच की मांग लेकर हाईकोर्ट पहुँच गई| जुलाई 15 में हाईकोर्ट ने सीबीआई जाँच के आदेश दिए| तब इसके खिलाफ राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई और अनुरोध
किया कि सीबीआई जाँच का हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दे| राज्य सरकार इस मामले की जाँच करा रही है| सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर मुहर लगा दी| तब जाकर अगस्त 2015 में सीबीआई ने इंजीनियर यादव के खिलाफ
केस दर्ज किया| और अब आज 3 फरवरी 2016 को अंतिम रूप से
गिरफ्तार करने में कामयाबी हासिल की|
संभवतः
देश का यह पहला मामला होगा जिसमें सीबीआई को ढेरों सबूत के बाद गिरफ्तार करने में
15 महीने लग गए| यह भी तब हुआ जब यादव के खिलाफ जाँच करने
के लिए हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का आदेश उसके पास था| अब कुछ सवाल बरबस उठते हैं कि तमाम अवैध, अकूत संपत्ति की
बरामदगी के बाद सीबीआई ने किन मजबूरियों की वजह से यादव सिंह को गिरफ्तार नहीं
किया? क्या राज्य की मौजूदा और पूर्ववर्ती सरकार की तरह यादव सिंह का केंद्र सरकार
से भी गहरा रिश्ता है? अगर हाँ तो किससे? अगर नहीं तो गिरफ़्तारी में बाधा कौन बना?
अगर सीबीआई अपनी तोता छवि से बाहर निकलना चाहती थी तो उसने क्यों नहीं उसी समय
गिरफ्तार किया? अब जब अदालती आदेश के बाद जांच हो ही रही है, रिपोर्ट दर्ज करने के
कई महीने बाद सीबीआई ने यादव सिंह को गिरफ्तार कर ही लिया है तो क्या सीबीआई की
जाँच के दायरे में केंद्र और राज्य सरकार में बैठे उनके आका लोग भी आयेंगे| हालाँकि, जानकारों को इसमें शक है| फिर भी लोगों का मानना है कि अगर सीबीआई इस मामले में जाँच
ठीक से कर ले तो काफी चहरे बेनकाब होंगे| संभव है
कि भ्रष्टाचारियों का मनोबल कुछ ही सही कम हो जाए| यह तभी
हो पायेगा जब सीबीआई अपनी तोता छवि से बाहर निकलेगी| अन्यथा
सीबीआई के लाख चाहने के बावजूद यादव सिंह कानून के शिकंजे से बच निकलेंगे और यह
गिरफ़्तारी केवल कुछ दिनों की बात होगी| बहरहाल
मैं तो यही कहूँगा कि सीबीआई इस मामले में सही, सटीक जाँच करले तो संभव है कि वह अपनी
तोता छवि से कुछ हद तक निजात पा ले. आमीन|
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