बंद करो यह जाहीलियत, हमें जाने दो
पैसा
चाहिए, लक्ष्मी जी के पास जाते हो. विद्या चाहिए तो मुंह उठाये सरस्वती जी के आगे
हाथ जोड़े खड़े दिखते हो. ताकत के लिए माँ दुर्गा के आगे नतमस्तक होते हो. प्यार
चाहिए, अपनी माँ-बहन के आगे बेशर्म की तरह खड़े हो जाते हो. औलाद चाहिए हो तो बीवी
से समझौता करते हो. शादी के बाद जरा सी देर हो जाए तो पूरा का पूरा खानदान लग जाता
है तुम्हारी बीवी के पीछे. और जब किसी मंदिर में जाने की बारी आये तब जाहिलों की
तरह व्यवहार करते हो.
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प्रतीकात्मक
फोटो साभार
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शनि
शिंगणापुर मंदिर में एक महिला ने कदम क्या रख दिया बवाल मचाकर रखा है. दो महीने
होने को है, विवाद ख़त्म करने को तैयार नहीं हो. क्यों भूल जाते हो कि तुम होते ही
नहीं, अगर माँ के रूप में के नारी न होती. राखी के दिन तुम्हारी कलाई सूनी रहती
अगर माँ ने तुम्हारी बहन को जन्म नहीं दिया होता. इस गली से उस गली कुत्तों की तरह
भटकते, अगर एक अदद बीवी तुम्हारे पास न होती. ध्यान रहे कि न तो तुम विवेकानंद हो
और न ही जगद्गुरु. और रही बात ढेरों बाबाओं की, तो उत्तर भारत से लेकर दक्षिण तक
कई बाबा नारी प्रेम में जेल की हवा खा रहे हैं. नाम गिनाने की जरूरत शायद नहीं है.
क्योंकि सब जानते हैं. हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि आदि काल से नारी पुरुषों से
ज्यादा ईमानदार रही है. भगवान राम के प्रति अगाध प्रेम और खुद पर विश्वास के चलते
ही सीता माँ ने एक इशारे पर ख़ुशी-ख़ुशी खुद को आग के हवाले कर दिया और साफ-साफ
सुरक्षित बाहर आ गई थी. राम चाहते तो उस तथाकथित धोबी की बात अनसुना कर देते. वे
राजा थे. कौन विरोध करता उनका. नारी कल भी ईमानदार थी, आज भी है और पूरी उम्मीद है
कि वह आगे भी रहने वाली है. जरा याद करो जब हमारी माँ-बहनें मासिक धर्म की वजह से
पांच दिन खुद को ही घर की सामान्य दिनचर्या से बाहर कर लेतीं. यह सिलसिला आज भी
है. किसे पता होता है कि अमुक महिला का मासिक धर्म का समय आ गया है. यह उसकी
ईमानदारी ही है कि वह खुद को अलग कर लेती है मंदिर जाने से. अलग कर लेती है घर में
होने वाले किसी भी पूजा-पाठ से. अलग कर लेती है घर की रसोई से.
फिर
जब वो मंदिर जाना ही चाहती है तो उसकी श्रध्दा-विश्वास पर शक करने का हक किसने
दिया तुम्हें. दबे मन से ही सही, यह तो तुम भी मानोगे कि वह तुमसे ज्यादा ईमानदारी
से सारे काम करती है. तुम्हारी तरह नहीं कि मंदिर में दर्शन के लिए लाइन में लगे
हो और दूसरी महिला को बुरी नज़रों से देखे. उसके समर्पण पर कोई सवाल उठ ही नहीं
सकता क्योंकि शादी के बंधन में बंधने मात्र से वह अपना सर्वस्व तुम पर न्योछावर कर
देती है. तब, जब वह तुम्हें ठीक से जानती भी नहीं है. इसलिए शनि शिंगणापुर मंदिर
के कर्ता-धर्ताओं महिलाओं को मंदिर में घुसने की इजाजत दो. अगर कहीं और भी पाबंदी लगाकर रखी है तो वहां खुस पहल करके
उन्हें आने का न्योता दो, इससे पहले कि वे आन्दोलन करके अपना हक छीन लें, उन्हें
जाने दो. क्योंकि तुमसे ज्यादा भक्ति, श्रध्दा, समर्पण उनमें हमेशा से रहा है.
तुम्हारी पूजा में वह ताकत नहीं, जो उनकी पूजा में है. ध्यान रखना, अब तक तुम्हारे
बनाये नियम इसलिए चल रहे हैं क्योंकि उन्होंने चाहा. अब वो नहीं चाहती तो तुम्हारे
नियम नहीं चलेंगे. ऐसे में संभालों खुद को, इससे पहले आधी आबादी दुर्गा के रूप में
तुम्हारे सामने आकर खड़ी हो जाए. सोच बदलने का वक्त आ गया है. जिस तरह तुम बेटियों
को पढ़ाने को तैयार होते दिख रहे हो. आगे बढ़ाते दिख रहे हो और वो तुम्हें हरपल
बेहतरीन परिणाम दे रही हैं. ठीक उसी तरह उन्हें मंदिरों में जाने से मत रोको.
तुमने रोका तो वो अपना हक छीनना जानती है. मैं तो कहूँगा सरकारों से भी, वे भी चेतें, जहाँ
कहीं ऐसी स्थिति बन रही हो, तत्काल दखल दें. क्योंकि अब इस तरह की हरकतों को रोकने
का वक्त आ गया है. हमें समय और उसकी रफ़्तार को समझना होगा.
अब आप सुनिए एक देवी भजन लता जी की आवाज में-जगमग ज्योति...
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