ह्रदय काँप उठता है, और रोंये खड़े हो जाते हैं, जब हम उस भयंकर अत्याचार के समाचारों को सुनते हैं, जो हमारे भाइयों पर दक्षिण अफ्रीका में इस समय हो रहा है. दक्षिण अफ्रीका की सरकार ने सभ्यता, और मनुष्यता से नमस्कार कर लिया है. संसार के सभ्य राष्ट्रों के उन सारे साधारण भावों से, जिनसे एक सभ्य राष्ट्र, सभ्य कहला सकता है, अब उसे कोई सरोकार नहीं. उदारता, सज्जनता और सत्यता से उसने आँखे फेर ली हैं. अत्यंत नीचता और पशुता पर वह उतर आई है. अनाथों की बेबसी और स्त्रियों की लाचारी उसके ह्रदय को जरा भी नहीं हिलाती. मनुष्य-और वे भी इतने सदाचारी, वीर, और सत्यप्रतिज्ञ, कि जिनके ऊपर संसार का कोई सभ्य से सभ्य देश गर्व कर सकता, और जिनके पैरों की धूल तक माथे पर चढ़ने के योग्य दक्षिण अफ्रीका के मनुष्य-शरीर पाने वाले, लेकिन पशु ह्रदय रखने वाले आदमी नहीं है, कैदखाने में ठूंसे जाते हैं. उन पर बेहिसाब कोड़े लगाये जाते हैं. गणेश शंकर विद्यार्थी जी आज्ञा है कि गोली तक मार दो. और यह किस लिए? इसलिए नहीं, कि इन भले आदमियों ने कोई जुर्म किया है, इसलिए नहीं, कि उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के गोर निवासियों की गठरी काट...
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