गणेश शंकर विद्यार्थी लेख 20 / युद्ध की घटा
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गणेश शंकर विद्यार्थी |
प्राचीन मेक्सिको का इतिहास बड़ा ही कौतूहल पूर्ण है. उसके प्राचीन निवासी सभ्य थे. बड़ी-बड़ी इमारतें, सड़क, पुराने मंदिर और अन्य बहुत सी चीजें इस समय भी उन प्राचीन मेक्सिको निवासियों की सभ्यता और उन्नति का पता दे रही हैं, जिन पर 16 वीं शताब्दी में स्पेन वालों ने हमला किया और बड़ी वीरता के साथ लड़ने पर भी स्पेन वालों द्वारा बड़ी ही निर्दयता के साथ मारे और नेस्तनाबूद किये गए. प्राचीन मेक्सिको निवासियों में बर्बरता थी, वे नर बलिदान करते थे, उनमें और भी कितनी निर्दयता की बातें थीं, लेकिन इतिहास साक्षी है कि अपनी सारी सभ्यता, निर्दयता, और कुटिलता के साथ भी वे अपने से अधिक सभ्य स्पेन वालों से कहीं अधिक उदार, ईमानदार और दयालु थे. विजयी स्पेन वालों ने मेक्सिको पर अपना झंडा गाड़ा और 1810 तक उनका उस पर राज्य रहा. उसके बाद मेक्सिको स्वतंत्र हो गया. स्वतंत्र प्राचीन निवासियों ने नहीं किया, मेक्सिको को स्वतंत्र करने वाले थे, विजयी स्पेन वाले, और विजित मेक्सिको वालों को मिली हुई संतानें. यही आजकल मेक्सिको निवासी हैं.
स्वतंत्रता हो गई लेकिन देश में मारकाट जारी रही. प्रजातंत्र राज्य था, और एक प्रेसिडेंट से दूसरा प्रेसिडेंट बदलता था. 1815 के बाद किसी समय मेक्सिको फिर स्पेन वालों के हाथ पद जाता, लेकिन एक बात ऐसी हो गई कि फिर यूरोप की हिम्मत नहीं पड़ी कि वह अमेरका की ओर लोभ भारी नजर डाले. उस समय संयुक्त राज्य के सभापति थे प्रेसिडेंट मानरो. उनके नाम से मानरो सिद्धांत विश्व प्रसिद्ध है. इस सिद्धांत का मतलब यह है, कि अमेरिका (नई दुनिया) के जितने राज्य हैं, वे यूरोप, एशिया आदि पुरानी दुनिया के राज्यों पर नजर न डालेंगे, और साथ ही, यूरोप आदि की मजाल न होगी कि वे अमेरिका के किसी भी राज्य पर ललचौही दृष्टि डालें. यदि यूरोप इस बात के विरुद्ध कुछ भी काम करेगा, तो वह स्वाधीनता का शत्रु समझा जाएगा, और संयुक्त राज्य (अमेरिका) उसका खुल्लम-खुल्ला शत्रु हो जाएगा. बस, इस सिद्धांत की घोषणा ने यूरोक के होश ठिकाने कर दिए, और अपने दोस्तों के पीठ ठोंकने पर तैयार होने वाले स्पेन का ह्रदय बैठ गया. तब से लेकर अब तक मेक्सिको पर अधिकार ज़माने की कोई बाहरी चेष्टा तो नहीं हुई, लेकिन साथ में मेक्सिको में शांति भी कभी नहीं रही. प्रजातंत्र को उखाड़कर दो बार वहाँ साम्राज्य की साथ्पना हो चुकी और फिर साम्राज्य को नष्ट करके प्रजातंत्र स्थापित हुआ, जो अभी तक है. गत शताब्दी के मध्यकाल में संयुक्त राज्य अमेरिका से भी दो बार मुठभेड़ हो चुकी है, जिसमें उसी को नीचा देखना पड़ा. 1876 से लेकर 1911 डायज नाम का आदमी मेक्सिको का प्रेसिडेंट था. इतने दिनों तक एक ही आदमी का प्रजातंत्र राज्य का स्वामी बने रहना मेक्सिको की बुरी हालत का पता देता है. 1911 में डायज देश से निकाल दिया गया. मैडीरो नाम का एक आदमी देश का प्रेसिडेंट बन बैठा, लेकिन थोड़े ही दिनों बाद जनरल हुएर्ता ने मैडीरो को कैद कर लिया, उसे मार डाला और स्वयं प्रेसिडेंट बन गया. लेकिन उस पद के कुछ और दावेदार भी रहे, और इसी कारण से आ मेक्सिको के भीतर बहुधा मारकाट होती रहती है. देश भर में शांति का नाम नहीं है, व्यापर व्यवसाय ठीक नहीं है, और विदेशियों के जान-माल की खैर नहीं है.
मेक्सिको की भीतरी हालत यह है, अब बाहरी दशा सुनिए, जिससे युद्ध होने का डर है. उसके पड़ोसी संयुक्त राज्य के उड़रो विलस जो बड़े ही न्यायप्रिय व्यक्ति हैं, उन्होंने हुएर्ता को कभी डाकू से अधिक अन्हीं समझा. वे चाहते हैं कि मेक्सिको में शांति की स्थापना हो, और मेक्सिको निवासी अपना सारा काम स्वयं ही करें. वे हुएर्ता को पक्का बदमाश समझते हैं, और इसलिए उन्होंने उसे मेक्सिको का प्रेसिडेंट स्वीकार नहीं किया. जर्मनी और इंगलैंड उसे प्रेसिडेंट स्वीकार कर चुके हैं, और कुछ व्यापारी बातों में हुएर्ता को इंगलैंड की ओर झुके होने के कारण यह बात फ़ैल गई थी कि प्रेसिडेंट विल्सन इसी ईर्ष्या से हुएर्ता को प्रेसिडेंट नहीं मानते. लेकिन अंत में यह बात गलत सिद्ध हुई. उधर मेक्सिको में खून-खराबा बढ़ता ही गया. मेक्सिको में विदेश्यों की भी अच्छी संख्या है, और संयुक्त राज्य वालों का व्यापार भी वहाँ बहुत है, इसलिए विल्सन ने हुएर्ता को मेक्सिको में शीघ्र ही शांति स्थापित करने के लिए लिखा. हुएर्ता के कहने पर विल्सन ने मेक्सिको में हथियार जाना भी बंद कर दिया, और इससे भी कोई फल न देखकर उसके विपक्षियों के कहने पर उन्होंने मेक्सिको में हथियार जाने भी दिए. लेकिन मेक्सिको में उधम न रुका. एक अंग्रेज और कई अमेरिकन मारे गए. विल्सन बड़े चक्कर में पड़े कि किस तरह अपने पड़ोस की इस अशांति को दूर किया जाय. इस बीच में एक बात हो गई-मेक्सिको के उद्दंड शासकों ने संयुक्त राज्य की एक जंगी नाव सुर उसके कुछ मल्लाहों को गिरफ्तार कर लिया. संयुक्त राज्य का इस बात से अपमान हो गया. उसके जंगी जहाज मेक्सिको के समुद्र तट पर जा पहुंचे, और मेक्सिको से कहा गया, कि 21 तोपों से उनकी सलामी उतारो. पाहिले तो हुएर्ता हीला-हवाला करता रहा, लेकिन विल्सन के सख्त पड़ने पर, उसने देशभिमान के नाम पर कि इतना हो सकता है कि एक तोप मेक्सिको दागे तो उसके उत्तर में संयुक्त राज्य के जहाजों से भी एक तोप दगे. लेकिन विल्सन इस पर राजी न हुए. उधर हुएर्ता भी नहीं झुकना चाहता. 21 तारीख के अंतिम तार से पता चलता है कि संयुक्त राज्य की सेना ने मेक्सिको वेराक्रूज नाम के स्थान पर कब्ज़ा कर लिया है, जिसमें उसके चार आदमी मारे गए और 20 घायल हुए. यदि बात बढ़ी तो अमेरिका की भूमि शीघ्र ही रक्त से रंग जाएगी.
नोट-गणेश शंकर विद्यार्थी जी का यह लेख 26 अप्रैल 1914 को प्रताप में प्रकाशित हुआ था. (साभार)
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