कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना...

मेरे पड़ोस में चचा भगवान दास रहते हैं. बचपन से मैं देख रहा हूँ उनको. सुबह-सुबह हाफ पैंट, सफ़ेद कमीज पहने निकल लेते हैं घर से. जब मिलेंगे, देश की तरक्की की ही बातें करेंगे लेकिन केवल अपनी विचारधारा से. उन्हें दूसरी विचारधारा विजातीय सी लगती है. हम बच्चों को भी कई बार वे अपने साथ ले जाते थे. बाद में हम उन्हें देखते ही रास्ता बदलने लगे. पर, आज लाख चाहने के बावजूद वे हमें पकड़ने में कामयाब हो गए. बोले-आज तू नहीं बच पाएगा. तुम्हें मेरे सवालों का जवाब देना होगा. मेरे मन में खलबली मची हुई है. सुना है कि मेरे संगठन ने अब से ड्रेस कोड बदलने का फैसला किया है. इस बुढ़ापे में एक बार फिर से मेरी दुर्गति हो जाएगी.
जल्दी ही खाकी का रंग बदल जाएगा-साभार  

मैंने पूछा क्यों चचा...बोले-तुम नहीं समझोगे. पैदा ही हुए हो कोट-पैंट वाले समाज में. मैंने जब इस दुनिया में कदम रखा तो देश आजाद हो रहा था. चारों ओर ख़ुशी का माहौल था. तब विदेशी कपड़ों को उतना महत्व नहीं मिलता था. हम लोग बचपन से लेकर जवानी तक तो कुर्ता-पायजामा, बुशर्ट-पायजामा पहने. जब थोड़ा और बड़े हुए तो कुर्ता-धोती पहनने लगे. इस बीच मैंने एक दोस्त के प्रभाव में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ज्वाइन कर लिया. कोई 40 साल पुरानी बात होगी. अटल जी राजनीतिक क्षितिज पर उभर रहे थे. हमें उनका भाषण बहुत बढ़िया लगता था. सुबह-सुबह जब शाखा में जाना होता, तो तुम्हारी चची से लेकर बेटे-बहू तक मुझ पर हँसते. क्योंकि किसी ने उसके पहले मुझे पैंट-कमीज में देखा नहीं था. शाखा में जाने की वजह से हमें सफ़ेद बुशर्ट-खाकी पैंट रोज पहननी पड़ती. कुछ दिन तक तो मैं सुबह घर से जल्दी जाता और जल्दी से लौट भी आता. कई बार तो कोई देख भी नहीं पाता था घर में. पर, बाद में धीरे-धीरे सामान्य हो गया. हाल के वर्षों में घर के अन्दर कोई हम पर नहीं हंसा. शायद देखते हुए सब के सब आदती हो गए होंगे. अब नया संकट फिर सामने आ खड़ा हुआ है. कुर्ता-धोती वाले को अब पूरी पैंट-सफ़ेद बुशर्ट पहननी पड़ेगी. ऐसी खबर अभी टेलीविजन में देखी है. अब इस उम्र में भूरे रंग की पैंट पहनना अजीब सा लगेगा.
मैंने कहा-क्यों अजीब लगेगा. आखिर आप 40 सालों से हाफ पैंट पहन रहे हो न, अब पूरी पहन लेना. कोई क्या कहेगा? यही न, कि आप सठिया गए हो. बुढ़ापे में जवानी का रंग चढ़ गया है..कहने दो. आप तो पुराना फार्मूला फिर से अपना लेना. जल्दी उठना और जल्दी लौट आना. घर के बाहर तो कोई टोकेगा नहीं. और शाखा में सब आप की ही तरह के लोग रहेंगे. घर वाले भी थोड़ा सा हंस लेंगे तो आप की और उनकी, दोनों की सेहत ठीक रहेगी. अब मत परवाह किया करो चचा. देखो-दिलीप कुमार, अमिताभ बच्चन जैसे लोग भी तो बुढ़ापे में रंग-बिरंगे कपड़े पहन कर घूमते हैं न, तो आप भला क्यों नहीं. अरे नहीं रे बाबा, अब इस उम्र में इतनी तेज बदलाव नहीं कर पाता दिमाग. इतने सालों की मेहनत के बाद तो सरकार बनी. लगा कि मेहनत रंग लाई. अब फिर से नए बदलाव को शरीर राजी नहीं होगा. होगा, चचा, जरूर होगा. जब तय हो जाय तो मुझे बताना. मैं आप के साथ चलूँगा और नई ड्रेस बनवाएंगे. बदलाव हमेशा बेहतरी के लिए होता है. आप चिंता मत करो. सब ठीक हो जाएगा. अपने मोदी जी बदलाव करके ही प्रधानमंत्री बन गए. देखो, उन्हें कैसे-कैसे कपड़े पहनते हैं. आप को तो याद होगा कुछ दिन पहले उनका एक कोट विवादों में आया था. कहा जा रहा था कि उसमें सोने के धागे से मोदी-मोदी लिखा हुआ था. राम जाने सच क्या था, लेकिन चर्चा हुई, फिर उन्होंने उसे धारण भी नहीं किया. बाद में किसी व्यापारी ने उसे नीलामी में खरीद लिया.
मोदी जी कोई जवान थोड़े न हैं, लेकिन आज यूथ आइकान बने हुए हैं. पूरी दुनिया में घूम-घूम कर सन्देश दे रहे हैं. भारत का नाम रोशन कर रहे हैं. उनकी वाली सदरी आज फैशन में है. व्यापारी माल काट रहे हैं मोदी टाइप सदरी बना-बेचकर. आप तो बंद करो फिक्र. वो एक गाना भी तो है-कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना....आप तो संगठन के अंतिम आदेश की प्रतीक्षा करो. फिर बनाएंगे नया ड्रेस अपने चचा के लिए. और देखना कैसे मोहल्ले में हम आप के बदलाव की ब्रांडिंग करेंगे. एक तरीका और भी है कि जब संगठन का आदेश आएगा, तब आएगा. तब तक चलकर एक बढ़िया चटख रंग वाला पैंट कमीज बनवाते हैं आप के लिए. कोई पूछे तो बताना होली के लिए बनवाया है. दो-चार दिन पहन कर घूमियेगा. फिर लोग देखने के आदती हो जाएंगे. खाली-मूली परेशान घूम रहे हैं. हम तो इसी बदलाव के सहारे आप को दिल्ली और नागपुर में प्रभावी भूमिका में देखना चाहते हैं. संकोच बंद करो और मस्ती से बदलावों का स्वागत करो मेरे प्यारे चचा. वन्देमातरम. 

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