मुमताज मार्केट में आग और झूठ-मूठ का बवाल

लखनऊ के घनी आबादी वाले अमीनाबाद बाजार में बने मुमताज मार्केट में लगी आग के बाद सरकारी सिस्टम में बवाल मचा हुआ है. चारों ओर हटो-बचो का खेल जारी है. मानो ऐसी आग पहली दफा लगी हो. अरे भाई किसे नहीं पता है कि अमीनाबाद में ढेरों अवैध निर्माण हैं. सबकी देखरेख सरकारी तंत्र ही करता है. कुछ बच गया तो नेतानगरी जिंदाबाद. बाकी अपने व्यापारी भाई तो हैं ही बवाल काटने के लिए. जरा सा उनकी ओर कोई आँख उठाकर देख भर ले. फिर दिखावा क्यों कर रहे हैं व्यापारी, अधिकारी, नेता और जो कोई भी अमीनाबाद का शुभचिंतक हो.
कुछ यूँ ही दिखता है अमीनाबाद बाजार-साभार 

पंडित जी पिछले तीन-चार दिन से ऐसी खबरें पढ़-पढ़ कर आज सुबह-सुबह चिढ गए. बोले-सब जान-बूझ कर पहले गड़बड़ करते हैं फिर धरे जाने पर बवाल करते हैं, आखिर क्यों हालत पैदा होती है ऐसी? विचार इस बात पर होना चाहिए. और केवल हादसे के सप्ताह भर बाद तक नहीं, समस्या के समाधान तक. मसलन, अतिक्रमण देखना हो तो अमीनाबाद बेहतरीन उदहारण हो सकता है. बिजली का जंजाल देखना हो तो उसका भी सर्वोत्तम नमूना इस बाजार में दिखना आम है. इतनी पुरानी बाजार होने के बावजूद आज बड़े-बड़े सूरमा वहां तक जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते. पता नहीं किस दुकान, काम्प्लेक्स में गुम हो जाएँ. भीड़ जो इतनी है. कोई बड़ी बात नहीं कि कपड़ों के ढेर के पीछे कोई दिन भर रह जाए आराम से. आग लगने पर पानी के सोते ढूढ़े नहीं मिलते. हर बार पानी की मारामारी का सामना करते हैं बेचारे फायर सर्विस वाले. फिर अख़बार के लोग कहेंगे कि वे देर से पहुंचे, उनके पास तो पानी ही नहीं था...आदि-आदि. अरे भैया, जब सारी समस्या जानते हो तो एक बार मिल बैठो सब के सब. नगर निगम, विकास प्राधिकरण, जिला प्रशासन, पुलिस, जलकल, फायर सर्विस, बिजली और सबसे बड़े वाले व्यापारी बंधु. तय कर लो कि आज सभागार से बाहर तभी निकलेंगे जब समस्या का समाधान खोज लेंगे. जरूरत पड़े तो नेता जी को बैठा लिया जाना चाहिए. इस बैठक का इरादा सिर्फ और सिर्फ अमीनाबाद की भलाई हो, और कुछ भी नहीं.
मैं यह भी नहीं कह रहा हूँ कि फुटपाथ वालों की रोजी-रोटी छीन लो. दो सबको, लेकिन अमीनाबाद का हित सबसे ऊपर हो. बाकी का बाद में.  अब जब ऐसा करने के लिए बैठेंगे तो सबसे पहले पटरी खाली करानी होगी. यहाँ के दुकानदारों को कही न कही जगह देनी होगी. फिर पूरी की पूरी सड़क घेरे अपने ही शरीर को शोरूम में तब्दील करने वालों के लिए भी कुछ न कुछ करना होगा. अपने प्यारे व्यापारी बंधुओं को भी कुछ त्याग करना होगा. मसलन गाड़ी पार्किंग में खड़ा करना होगा. दुकान के सामने के दुकानदारी का लालच बंद करना होगा. पूरी दुनिया तरक्की कर रही है लेकिन अमीनाबाद जाकर कई बार लगता है कि हम पीछे जा रहे हैं, खास तौर से जब बिजली के तारों का मकडजाल दिखता है, वह भी हजारों कि संख्या में. मैं भरोसे से कह सकता हूँ कि अगर कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे के तार से जोड़ ले तो पता करना बहुत मुश्किल होगा. लेकिन बिजली वाले भाई साहब लोग इसे ठीक नहीं करना चाहते, क्योंकि इसमें इनका हित छिपा है. नगर निगम, पुलिस पटरी वालों के साथ हैं. मोहल्ले के कुछ प्रभावी लोग भी इनके साथ मिले हुए हैं. हित इन सबका भी प्रभावित होगा.
सबसे बड़े घाघ तो प्राधिकरण वाले हैं जिन्हें निरहुआ के मकान में पीछे की ओर खुल रही खिड़की तो दिखती है लेकिन बड़ी-बड़ी इमारतें नहीं. जहाँ, पार्किंग की जगह दुकानें बन जाती हैं, दुकानों की जगह मकान और मकान की जगह काम्प्लेक्स. इन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं कि आग लगेगी तो फायर टेंडर कैसे पहुंचेंगे. लोगों की जान कैसे बचेगी, इन्हें तो बस अपनी जेब से मतलब. बाकी जमाना जाए भाड़ में. क्योंकि इन्हें पता है कि कुछ भी हो जाए, जाँच होगी, रिपोर्ट फाइल होगी, और फिर सब कुछ ठीक हो जाएगा. क्योंकि फैसला लेने वाले के सामने तब तक अनगिनत दूसरी समस्याएं आ खड़ी होंगी. और यह फाइल दब जाएगी. एक बार कार्रवाई भी हो गई तो अधिकतम निलंबन होगा. कुछ दिन बाद बहाल होना तय है. नहीं भी हो पाया, कोई बड़ी बात हो गई तो वकील साहेबान जिंदाबाद. ऐसे में किसी के मन में भय नहीं. केवल पैसे की भूख खूब है. मौजूदा इस तंत्र को हर वक्त पैसा ही चाहिए. बड़े से बड़े जुर्म को ये माफ़ कर देंगे या फिर करा देंगे. अगर ऐसा न होता, तो अमीनाबाद अब तक ठीक हो गया होता. क्योंकि न तो पहली बार आग लगी है और न ही पहली बार दमकल की गाड़ियाँ फंसी हैं. पानी के सोते भी पहली बार नहीं दगा दिए हैं. सब कुछ बहुत पुरानी बातें हैं. कुछ भी नया नहीं. पंडित जी उठे और जिलाधिकारी के दफ्तर की ओर पहुँच गए-बोले, सुना है तुम अमीनाबाद को लेकर वाकई गंभीर हो. अगर इस बात में दम है तो आगे बढ़ो, और एक ही शॉट में इसे ठीक करो. बेहतरीन बात होगी कि मुख्यमंत्री को भरोसे में ले लेना. नहीं तो पागल कर देंगे तुम्हारे अपने लोग. मुझे सुझाव देना था सो दे दिया. तुम भी न तो लखनऊ के लिए नए हो और न ही इस सिस्टम के लिए. लेकिन एक बात तय मानो, अगर तुमने कुछ भी बेहतरीन कर दिया अमीनाबाद के लिए तो आने वाली पीढियां तुम्हें दुआएं देंगी.

Comments

Popular posts from this blog

पढ़ाई बीच में छोड़ दी और कर दिया कमाल, देश के 30 नौजवान फोर्ब्स की सूची में

युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत हो सकती है अगम की कहानी

खतरे में ढेंका, चकिया, जांता, ओखरी