गणेश शंकर विद्यार्थी लेख 37 / युद्ध

गणेश शंकर विद्यार्थी 
युद्ध की गति की भयंकरता बढती जा रही है. अभी तक लीज के किले सुरक्षित हैं, परन्तु बेल्जियम भर में जर्मन सैनिक भरे हुए हैं. अभी तक वह भयंकर लड़ाई नहीं हुई है, जिनके होने की आशंका पल-पल पर की जा रही है. अंग्रेजी सेना फ्रांस में पहुँच गई है, वहाँ उसका और उसके जनरल फ्रेंच का ऐसी धूम-धाम से स्वागत हुआ कि क्या किसी राजा का होता.
इंगलैंड में फौजी तैयारी जोर-शोर के साथ हो रही है. 50 हजार से अधिक नए आदमी फ़ौज में भर्ती हो चुके हैं. अभी तक तो इधर-उधर से युद्ध के कुछ समाचार मिल भी जाते थे, पर अब यह बात जाती रहेगी. सेनाओं के साथ जो संवाददाता थे, वे हटा दिए गए हैं और अब सभी समाचार सरकार द्वारा ही मिल सकेंगे. खबर फ़ैल गई थी कि जर्मनी में खाद्य पदार्थों का बे-तरह टोटा पड़ने वाला है, किन्तु एक सरकारी तार ही से पता चलता है कि जर्मनी की फसलें बहुत अच्छी हैं और उसके पास इस समय एक वर्ष तक के लिए भोजन है. पेरिस का एक समाचार कहता है कि किसी लड़ाई में जर्मनी के युवराज बे-तरह जख्मी हुए हैं. वे अस्पताल में पड़े हैं और उनके पिता कैसर उन्हें देखने गए थे. हम समझते हैं कि कोई भी यां न चाहेगा कि युवराज अच्छे न हो जायँ. आस्ट्रिया और सेर्विया में तो एक मार्के की लड़ाई हो गई. आस्ट्रिया की हर बे-तरह हुई. उसकी तीन रेजिमेंट नष्ट हो गईं, 14 तोपें और बहुत सा सामान हाथ से निकल गया. जापान और टर्की की गति पर इस समय संसार भर की दृष्टि है. जापान की धमकी की तिथि 23 तारीख तक है. इसके बाद या तो जर्मनी चुपचाप उसका कहना मन लेगा या फिर उसके शत्रुओं की संख्या में एक की वृद्धि और होगी.
टर्की का जो व्यवहार दो जर्मन जहाजों के साथ रहा है, उससे जर्मनी की सभी विरोधी शक्तियां अप्रसन्न हुई हैं. उधर टर्की का फौजी तैयारी करना, रुपया उधर लेना और इम्पीरियल आटोमन बैंक में एक मास का मोराटोरियम कर देना सबको खटक रहा है. उसे शीघ्र ही अपनी स्थिति की घोषणा करनी पड़ेगी. यदि उसने टाल-टूल की, तो ग्रीस उस पर धावा बोल देगा और कहीं भाग्य का मारा वह जर्मनी का पक्ष ले बैठा, तो जीत होने पर रूस उसे हड़प कर जाएगा. और सबसे अधिक मुसलमान प्रजा रखने वाला इंगलैंड भी उस अवस्था में अपनी मुसलमान प्रजा का मन किसी तरह न रख सकेगा. ब्राजील ने भी खूब ही मौका ताका है. उसके एक प्रान्त साओ पालो के प्रेसिडेंट केम्पोस और उसकी स्त्री के साथ जर्मन सिपाहियों ने बड़ा ही बुरा व्यवहार किया था, उन्हें बंदूकों के दस्तों से पीटा और बड़े अपमान के साथ जर्मनी की सरहद से बाहर निकल दिया. बस, इसी बात को उठाकर उसने जर्मनी से कहा कि अपने इस व्यवहार का कारण बतलाइए और दोषियों को सजा दीजिये. ब्राजील के रूप में जर्मनी का एक शत्रु और बढ़ रहा है.
नोट-गणेश शंकर विद्यार्थी का यह लेख 'प्रताप' में 23 अगस्त 1914 को प्रकाशित हुआ था. (साभार)  

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