जाने क्या मैंने कही जाने क्या तूने सुनी

पंडित जी शाम की सैर पर थे. तभी सामने से एक जुलूस आता दिखा. सब मोदी के समर्थन में नारे लगा रहे थे. मोदी जिंदाबाद, जो आरक्षण ख़त्म करेगा, वह खुद ख़त्म हो जाएगा, जैसे नारे लिखी तख्तियां लगभग सभी हाथों में थीं. उत्सुकतावश पंडित जी ने एक नौजवान को रोका और पूछ लिया, कौन हो भाई तुम लोग और किस बात का जुलूस निकल रहे हो? मोदी जिंदाबाद, नारे का रहस्य क्या है?
कब तक चलेगा ये आरक्षण-आरक्षण का खेल. (साभार) 

नौजवान ने कहा-बाबा, असल में मोदी जी ने आरक्षण कभी भी न ख़त्म करने की बात आज कही है. हमारे लिए यह बेहद अहम बात है. अगर प्रधानमंत्री जी हमारे साथ हैं, तो हमें आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता. अब हमारा हक़ हमें हर हाल में मिलेगा. कोई रोक नहीं पाएगा. पंडित जी ने पूछा-देखने से तुम भले घर के लग रहे हो. जींस, महंगे जूते, ब्रांडेड कमीज और हाथ में आई-फोन बताता है कि तुम्हें किसी आरक्षण की जरूरत नहीं है. नौजवान ने कहा-यह हमारा खानदानी हक है. मेरे बाबा के बाबा अपनी काबिलियत के बूते अंग्रेजी राज में कोतवाल थे. पापा के बाबा आजाद भारत में तहसीलदार बने. मेरे बाबा भी आरक्षण का लाभ पाकर नायब तहसीलदार भर्ती हुए और जिलाधिकारी के पद से रिटायर हुए. मेरे पापा भी भारतीय प्रशासनिक सेवा में अधिकारी हैं. अब मेरी बारी है. पंडित जी ने कहा-इतना सबके बावजूद तुम्हें आरक्षण चाहिए.  भला क्यों? नौजवान बोला-क्यों नहीं मिलना चाहिए मुझे आरक्षण? यह तो मेरा खानदानी हक़ है. अगर थोड़ी सी मेहनत करके मैं आइएएस बन सकता हूँ तो क्यों करूँ मगजमारी. मेरे पास इतना वक्त नहीं है. एक ही जीवन है. उसी में सब कुछ पाना है. जवानी का ज्यादा से ज्यादा समय पढाई में गुजार देंगे तो बाकी काम कब करेंगे? आप ही बताओ? बाकी काम, मतलब? अरे बाबा, हो पूरे बुद्धू. आप नहीं समझोगे. पूरे खानदान की तरक्की का आधार आरक्षण है तो मेरी तरक्की से आप को क्यों परेशानी हो रही है? मोदी जी साथ हैं हमारे, आप तो निकालो और सेहत का ध्यान रखो.
पंडित जी बुदबुदाते हुए आगे बढ़ गए और अपने साथियों से गुस्से का इजहार करते जा रहे थे. बोले-ई मोदी जी हमारे साथी हैं. हमने एक ही स्कूल में पढाई की थी. एक साथ ही आगे बढ़े. कई बार उनकी चाय की दुकान पर बैठकर मैंने भी चुस्कियां ली हैं. कई बार यात्रियों को चाय तक पिलाई है. पर, तब इस बन्दे में कुछ और बात थी. अब जब मैं मास्टर हो गया तो दूरी बन गई हमारे बीच में. वह संघ की शरण में पहुँच गया. फिर कब उत्तर भारत और कब दक्षिण, कुछ पता ही नहीं चलता और मैं ठहरा स्कूल मास्टर. मेरी मुलाकातें काफी कम हो गईं. जब बंदा मुख्यमंत्री बना तो मैं एक बार मिलने गया. पहचान लिया तुरंत. बड़ी आवभगत की थी. तब उसमें ज्यादा चेतना थी. गुजरात के लिए उसकी आँखों में सपना था. पर, अब लगता है कि लालची हो गया. हालाँकि, मेरा मन नहीं मानता. वह पैसे तो एकत्र करेगा तो भला किसके लिए? लेकिन अब चिरकुट टाइप की राजनीति करने पर जुटा हुआ है. अरे भाई, बहुमत की सरकार है. आरक्षण देना है तो आर्थिक आधार पर दो न. कोई नहीं रोकेगा लेकिन कौन समझाए? दिए जा रहे हैं आरक्षण पर आरक्षण. कोई रोकने वाला भी नहीं. ये वोट और चुनाव जो न कराये. कई राज्यों में चुनाव है तो फेंक दिया जनाब ने एक पासा. अब आरक्षण समर्थक फूल के कुप्पा हुए जा रहे हैं. पहले जब भी हम बात करते थे, तो यह बंदा आर्थिक आधार पर आरक्षण की ही वकालत करता है. लेकिन वोट के चक्कर में इसका दिमाग भी गड्ड-मड्ड हो गया है. इसीलिए बहकी-बहकी बातें कर रहा है. कितनी बेहतरीन बात होती कि अब से देश में आर्थिक आधार पर आरक्षण लागू हो जाता. लेकिन सबको दलितों का वोट चाहिए, पिछड़ों का वोट चाहिए, इसलिए चल रहा है नाटक. अगर कोई और होता प्रधानमंत्री तो वह आर्थिक आधार पर आरक्षण के फार्मूले पर काम शुरू कर देता. सर्वोच्च अदालत सरकार के साथ खडी दिख रही है. तभी एक और जुलूस दिखा, जिसमें शामिल नौजवान मोदी जी हमें आर्थिक आधार पर आरक्षण चाहिए. पंडित जी फिर ठमके. पूछताछ शुरू की. पता चला कि इस टोली में लगभग सभी जाति-धर्म के नौजवान थे.
फिर पंडित जी ने मोदी से मिलने का फैसला किया और पहुँच गए दिल्ली. सन्देश मिलने के तुरंत बाद पंडित जी की मुलाक़ात हुई. उन्होंने अपनी सारी भड़ास निकाली और गुस्से में चल पड़े. मोदी जी ने रोका और कहा-ये सब राजनीतिक चुहलबाजी है पंडित जी. आप ठहरे खलिस मास्टर. नहीं समझेंगे. हमें राजनीति में बहुतेरी बार यह सब करना पड़ता है. आरक्षण ख़त्म करना कोई खेल नहीं. यह बर्र का छत्ता है. जो छुएगा, उसे छेद-छेद कर बर्र लाल कर देंगी. राजनीति में ऐसे काम करने की इजाजत नहीं. क्यों ख़त्म करूँ आरक्षण? हमें क्या मिलने जा रहा है? पार्टी का नुकसान अलग से होगा. मोदी जी ने कहा हमने तो नारा दिया था-सबका साथ-सबका विकास. समझे या नहीं. इसका कोई और अर्थ निकालने की कोई जरूरत नहीं है.

Comments

Popular posts from this blog

पढ़ाई बीच में छोड़ दी और कर दिया कमाल, देश के 30 नौजवान फोर्ब्स की सूची में

युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत हो सकती है अगम की कहानी

खतरे में ढेंका, चकिया, जांता, ओखरी