गणेश शंकर विद्यार्थी लेख 29 / माननीय बाबू गंगा प्रसाद वर्मा

गणेश शंकर विद्यार्थी 
गत 23 जून की रात को देश का एक चमकता हुआ सितारा डूब गया-एक स्वार्थ त्यागी, दृढव्रत, सुचरित्र, देश भक्त प्रांतीय नेता की जीवन लीला समाप्त हो गई. 22 मई को राय बहादुर बाबू गंगा प्रसाद स्वास्थ्य कांफ्रेंस में योग देने के लिए नैनीताल गए. आप अपने स्वास्थ्य की ओर सदा उचित ध्यान देते थे और फलतः सदा हृष्ट-पुष्ट रहते थे. इस बात की किसी को भी आशा न थी कि कराल काल इतनी जल्दी आप को ग्रस लेगा. आप की अवस्था अभी पुरे 51 वर्ष की भी नहीं थी.
नैनीताल में ठंडे पानी सा स्नान करने से आप की तबीयत ख़राब हो गई. डॉक्टर लोग ठीक-ठाक निदान न कर सके. अवस्था बिगडती गई. हाल ही में डॉक्टरों ने कहा था कि अब कुछ डर नहीं है. फिर बुखार 104 या 105 डिग्री तक पहुँच गया. 24 जून के लीडर ने समाचार दिया कि वर्मा जी की अवस्था बहुत ख़राब है और वह सन्निपात से पीड़ित हैं. 24 जून को ही यह ह्रदय विदारक समाचार मिला कि रात को 11.30 बजे वर्मा जी का देहांत हो गया. बाबू गंगा प्रसाद उन लोगों में से थे जो हीनावस्था में उत्पन्न होकर भी अपने चरित्रबल से उच्च पद प्राप्त कर लेते हैं, और जो सारे व्यक्तिगत लाभों को तिलांजलि दे अपना सर्वस्व देश सेवा में लगा देते हैं, जो कठिन से कठिन समय में भी विचार-शीलता और धैर्य नहीं छोड़ते. मैट्रिकुलेशन पास किया बिना ही आपने स्कूल छोड़ दिया था और कुछ दिन बाद ही 'हिन्दुस्तानी' नामक उर्दू पत्र निकाला. आगे चलकर आपने अंग्रेजी अर्द्ध साप्ताहिक 'एडवोकेट' निकाला. आप इन दोनों पत्रों का संपादन बड़ी ही योग्यता और बुद्धिमानी से करते रहे. इनके लेख अक्सर दूसरे पत्रों में उद्धृत किये जाते हैं. 1885 में कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन बम्बई में हुआ. उस समय वर्मा जी की अवस्था केवल 22 वर्ष थी और आप उसमें शरीक हुए थे. सरकारी अफसरों की नाराजगी और एंग्लो इंडियनों के कटाक्ष की परवाह न करते हुए आप बराबर कांग्रेस के भक्त बने रहे.
देश में आप एक ऐसे सज्जन थे जो कांग्रेस के सारे अर्थात उन्नीसो अधिवेशनों में उपस्थित रहे. गत वर्ष आप को कांग्रेस का सभापति होने का भी प्रस्ताव किया गया था और यदि आप जीवित रहते तो अवश्य उस आसन की शोभा बढ़ाते. कांग्रेस के इलाहाबाद वाले तीन अधिवेशनों और बनारस वाले अधिवेशन की सफलता के एक कारण आप भी थे. लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन के समय आप ने जिस परिश्रम और योग्यता से कम किया था, उसे देखकर लोग दंग रह गए थे, और मि. रमेश चन्द्र दत्त ऐसे महानुभाव ने उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की थी. यही नहीं, किन्तु लखनऊ की म्युनिसिपैलिटी और संयुक्त प्रदेशीय कांफ्रेंसों में भी आप ने खूब काम किया. 27 वर्ष से बराबर आप म्युनिसिपल बोर्ड में थे, और सफाई इत्यादि के सन्दर्भ में उपयोगी सुधार कराते रहे. लखनऊ का अमीनाबाद पार्क आप के ही परिश्रम का फल है. पार्क खोलते समय श्रीमान वाइसराय लार्ड हार्डिंज ने प्रशंसापूर्वक आप का जिक्र किया था. सर फिरोजशाह मेहता ने बम्बई कारपोरेशन में जैसा मन लगाया, वैसा ही वर्मा जी ने लखनऊ  म्युनिसिपैलिटी में. लखनऊ पीपुल्स एसोसियेशन के आप प्रधान और युक्त प्रदेशीय कांग्रेस कमेटी के उपसभापति थे. आप प्रान्तिक कांफ्रेंस के प्रथम अधिवेशन, राजनीतिक कांफ्रेंस के तृतीय अधिवेशन, औद्योगिक कांफ्रेंस के चतुर्थ अधिवेशन के भी प्रधान सभापति थे.
इसी हैसियत में आप ने सरकार को वर्न सर्कुलर के विषय पर वह युक्तिपूर्ण पत्र लिखा था जिसकी प्रशंसा देश भर में हुई थी. इस सर्कुलर के विषय में एडवोकेट में जो लेख निकले थे वह बहुत पसंद किये गए थे. 1909 में आप प्रांतीय लेजिस्लेटिव कौंसिल के मेंबर हुए. बजट पर आप की वक्त्रित्ताएं बड़े ऊँचे दर्जे की होती थीं. दो-एक को छोड़कर इस समय प्रान्त भर में कोई ऐसा नहीं, जो आप के स्थान की पूर्ति कर सके. हिन्दू यूनिवर्सिटी के संचालकों में आप भी थे. कानपुर आदि अनेक नगरों में आप यूनिवर्सिटी डेपुटेशन के साथ घूमे थे. शोक, कि इस वृहत संस्था की स्थापना आप अपनी आँखों से न देख सके. आप इलाहाबाद यूनिवर्सिटी सीनेट के भी मेम्बर थे. यद्यपि आप उर्दू के अच्छे वक्ता और लेखक थे, तथापि आप हिंदी से भी उदासीन न थे. गुरुकुल कांगड़ी के अंतिम वार्षिकोत्सव के अवसर पर वहां एक विभाग के सभापति हुए थे और इस प्रस्ताव के उत्तर में कि हिन्दू यूनिवर्सिटी में हिंदी को उचित स्थान मिलना चाहिए, आप ने इस प्रस्ताव को हिन्दू यूनिवर्सिटी कमेटी के सामने पेश करने का वचन दिया था.
आप की असामयिक मृत्यु से देश को और इस प्रान्त को जो छति हुई है, वह जल्द पूरी नहीं हो सकती. इससे बढ़कर इस प्रान्त का और क्या दुर्भाग्य हो सकता है कि मिस्टर कृष्ण स्वामी अय्यर, लाला लालचंद, पंडित अयोध्या नाथ, बाबू गंगा प्रसाद वर्मा ऐसे पुरुष रत्न असमय ही काल के ग्रास हो जायँ. वर्मा जी कि वृद्धा माता अभी जीवित हैं. हमारे पास उपयुक्त शब्द नहीं कि इस वीर प्रसू माता के संतोष के लिए कुछ लिख सकें. वर्मा जी की माता, भ्राता और अन्य कुटुम्बियों से इस अवसर पर हमारी हार्दिक सहानुभूति है और परमपिता से प्रार्थना है कि वर्मा जी के सम्बन्धियों को धैर्य और उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें.
नोट-गणेश शंकर विद्यार्थी जी का यह लेख प्रताप में 28 जून 1914 को प्रकाशित हुआ था. (साभार)

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