गणेश शंकर विद्यार्थी लेख 40 / कौंसिल में युद्ध की चर्चा

गणेश शंकर विद्यार्थी 
सम्राट जार्ज का सन्देश -आठ तारीख को देहली में बड़ी कौंसिल की बैठक हुई थी. श्रीमान वायसराय ने एक बड़ी लम्बी वक्तृता दी. वक्तृता के आरम्भ ही में उन्होंने मेम्बरों को वह सन्देश सुनाया, जिसे श्रीमान सम्राट जार्ज ने इस समय भारत को भेजने की कृपा की है. निःसंदेह सम्राट के शब्द बड़े ही मीठे और बहुत ही उत्साहवर्द्धक हैं. ऐसे भयंकर समय में भारत के गरीब और अमीर-सभी श्रेणी के आदमियों की एक स्वर से प्रकट होने वाली साम्राज्य की हितैषिता ने सम्राट के हृदय पर बड़ा ही गहरा प्रभाव डाला है. 
वे अपने सन्देश में कहते हैं-"इस विपत्ति में सबसे आगे बढ़कर आने वाली भारतीय पुकार ने मेरे ह्रदय को हिला दिया है और उस प्रेम और भक्ति को सर्वोच्च दर्जे तक पहुंचा दिया, जो-मैं अच्छी तरह जानता हूँ-मुझे और मेरी भारतीय प्रजा को एक साथ बांधती है. 1912 की फरवरी में इंगलैंड लौटने पर अंग्रेज जाति के नाम पर भारत की हितैषिता और सौहार्द का जो कृपा पूर्ण सन्देश मुझे मिला था, उसी का फल मैं आप देख रहा हूँ और आप के दिए हुए इस विश्वास को भी पूरा उतरता हुआ देखता हूँ कि ग्रेट-ब्रिटेन और भारत अविच्छन्नीय सम्बन्ध से बंधे हुए हैं. " इस सन्देश से हर भारतीय को ख़ुशी होगी. हमें ख़ुशी है कि सम्राट ने अपने प्रति भारत के प्रेम और भक्ति को सराहा, हमें ख़ुशी है कि उन्होंने भारत के सन्देश को 'कृपापूर्ण सन्देश' के साथ ही 'हितैषिता और सौहार्द' के भाव से भरा हुआ कहा, और आशा है कि काली घटा की प्रकाशमान उज्जवल कोर की तरह वर्तमान रण घटा भी किसी उज्ज्वलता से शून्य नहीं है. और इसीलिए कोई आश्चर्य नहीं, कि तूफान की समाप्ति के बाद संसार देखे, कि हितैषिता और सौहार्द, प्रेम और भक्ति, पारस्परिक आवश्यकता और पारस्परिक सम्बन्ध रात के अंधकार में भटकने, तथा दिन की तपिश में झुलसने वाले प्राणियों को प्रभाव का शुभ, सरल और मनोहर सन्देश पहुँचावे.  
नोट-गणेश शंकर विद्यार्थी का यह लेख 23 सितम्बर 1914 को 'प्रताप' में प्रकाशित हुआ था. (साभार)

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