सगीर के नाम उसके अब्बा की पाती
प्रिय बेटा सगीर
मैं यह पत्र तुम्हें बड़े अरमान से लिख रहा हूँ. तुम्हारी ख़ुशी के लिए लिख रहा हूँ. तुम्हारी तरक्की के लिए लिख रहा हूँ. मैं बहुत स्वार्थी हूँ. इसलिए तुम्हें आगे बढ़ते हुए देखना चाहता हूँ. बाप हूँ न, ख़ुशी मिलती है जब औलादें तरक्की करती हैं. लेकिन मैं ऐसा देख पा रहा हूँ कि तुम्हारे पास जो भी है, उससे खुश नहीं हो. जो पाना चाहते हो उसके लिए तुम्हें किसी और से शिकायत है. खुद पर भरोसा करो पुत्तर. सब मिलेगा, जो तुम चाहते हो.
मेरे से जो कुछ हो सका, किया तुम्हारे लिए. तुम्हें पढ़ने की आजादी दी. विषय चुनने की आजादी दी. तुमने कहा, तैयारी करनी है, मैंने कहा कर लो. मैं तो तुम्हें और पढ़ाना चाहता था, लेकिन तुम तैयार ही नहीं हुए. तुम्हारी कंपनी के बारे में कोई भी बात करने के पहले मैं नौकरी के बारे में कुछ बताना चाहता हूँ. मेरे पास लगभग 25 साल का तजुर्बा है. और तुम्हारे पास जुम्मा-जुम्मा कुछ महीनो का. असल में नौकरी हम करते हैं. हमें लगता है कि हम बहुत मेहनत कर रहे हैं. पर, हमारी मेहनत का फैसला हमारा बॉस करता है. वह तय करता है कि मेरा काम कैसा है? कोई दूसरा नहीं. मैं खुद भी नहीं. लेकिन नौकरी करते हुए मेरा अपना तजुर्बा यह कहता है कि हर बॉस को बेहतरीन कर्मचारी की जरूरत होती है. ऐसे में अच्छे कर्मचारी की पूछ हर जगह होती है. इस सच से इनकार करना बेवकूफी होगी कि कई बॉस ऐसे भी होते हैं, जो चापलूस कर्मचारियों की फ़ौज अपने आसपास रखते हैं. लेकिन खास बात यह है कि ऐसे बॉस भी अच्छे कर्मचारियों को अपने साथ रखना चाहते हैं.
दुनिया भर की ढेरों कम्पनियों के सर्वे बताते हैं कि हर ऑफिस में बमुश्किल 5-7 फ़ीसदी लोग ही लीडर होते हैं. लगभग इतने ही लोग ऐसे होते हैं, जो लीडर तो नहीं होते लेकिन बेहतरीन फालोवर जरूर होते हैं. और यही दोनों मिलकर कम्पनी चलाते हैं. बाकी लोग केवल और केवल कंपनी की बुराई, अपने बॉस की बुराई, अपने साथियों की बुराई से जो समय बचता है, उसी में कंपनी का काम करते हैं. खास बात यह है कि उन्हें लगता है कि उनकी हरकतों पर किसी की नजर नहीं है या फिर बॉस केबिन में बैठा है तो उसे भला कैसे पता चलेगा. पर, यह सच नहीं होता. केबिन में कोई भी कर्मचारी पहले दिन से नहीं बैठता. कुछ अतिरिक्त मेहनत करने वाला ही वहाँ पहुँच पाता है. ऐसे में सारी चीजें उसकी नजर में होती हैं. आजकल, वैसे भी हर कम्पनी एचआर डिपार्टमेंट पर अब काफी ध्यान देने लगी है. उसका काम ही है ऐसे सिस्टम ईजाद करना कि कर्मचारियों के काम पर सीधी नजर रखी जा सके. कोई भी बॉस मनमर्जी तरीके से अप्रेजल नहीं कर सकता. उसके हाथ काफी हद तक बंधे होते हैं. जबकि, अधिकतर कर्मचारी को यह लगता है कि उसका बॉस जो चाहे, इन्क्रीमेंट दे सकता है. यह आधा सच है, दे भी सकता है और किसी भी सूरत में नहीं दे सकता. असल में बेहतरीन इन्क्रीमेंट भी वह बेहतरीन कर्मचारी या दो-चार चापलूसों को ही दे सकता है. क्योंकि अप्रेजल के समय उसे उसकी सीमा रेखा बता दी जाती है.
अब एक कर्मचारी के रूप में हमें यह तय करना होगा कि हम ऊपर वाली कटेगरी में रहना चाहते हैं या फिर भीड़ में. अगर हम लीडर्स वाली लाइन में रहने की मंशा रखते हैं, तो यह मैटर नहीं करता कि कम्पनी कैसी है, मायने छोटी या बहुत बड़ी. अगर आप खुद को ऊपर से 15 फ़ीसदी में चाहते हो तो कई बार रातें कुर्बान होंगी और कई बार देर रात आकर भी सुबह जल्दी जाने की मजबूरी भी. इन दोनों ही हालातों में अगर आप अपनी सकारात्मक सोच कायम रखते हैं तो आप तरक्की की सीढियां तेजी से चढ़ोगे. अगर नकारात्मक तरीके से लेते हैं, तो यह रफ़्तार बहुत ही धीमी या कहिये कि कई बार ठहर भी जाएगी. यह बात मैं अपने तजुर्बे के आधार पर कह रहा हूँ. तुम जानते हो कि मैंने अपने करियर की शुरुआत बहुत छोटी की थी. और बहुत जल्दी तरक्की की सीढियां चढते हुए आगे बढ़ गया. भरोसा नहीं होगा तुम्हें, मेरे कई साथी आज भी वहीं खड़े हैं, जहाँ से शुरू हुए थे. उन्हें सर्वाधिक शिकायतें भी हैं, अपने बॉस से, कंपनी से, अपने साथियों से. पर, इतनी शिकायतों के बावजूद वे वर्षों से एक ही जगह ठहरे हुए हैं. उनमें इतनी हिम्मत भी नहीं, कि कहीं दूसरी जगह चले जाएँ. एक कहावत हमारे बुजुर्गों ने कही है-ठहरा हुआ पानी जल्दी से गन्दा हो जाता है और बहता हुआ गन्दा पानी बहुत जल्दी साफ. वही बात उन पर भी लागू होती है.
अगर किसी आदमी को सबसे शिकायत है तो सबसे बेहतरीन बात यह है कि वह अपनी पसंद की जगह तलाश ले. मेरा तजुर्बा कहता है कि जिसे नकारात्मक श्रेणी का कर्मचारी शोषण कहता है, उसी काम को सकारात्मक सोच रखने वाला कर्मचारी अवसर के रूप में लेता है. सीनियर्स हमेशा अवसर उसी को देते हैं, जो लपककर उसे करने का जज्बा रखता है. ऐसा ही करते हुए कर्मचारी बॉस की नजर में चढ़ या उतर जाता है. चंद रोज बाद बॉस अपने उन्ही कर्मचारियों पर ज्यादा भरोसा करने लगता है. अगर बॉस के बॉस ने उनसे दो ऐसे साथियों का नाम मांग लिया, जिन्हें तरक्की देकर दूसरी ब्रांच में भेजना हो, तो वे अवसर को छीनने वाले कर्मचारियों को ही मौका देना पसंद करते हैं. जानते हो क्यों? क्योंकि उन्हें भी भविष्य में तरक्की चाहिए होती है. अगर उनका दिया नाम आगे बेहतर नहीं करेगा तो कहीं न कहीं उनकी तरक्की का रास्ता भी रुकेगा.
अब जहाँ तक रही बात, तुम्हारी कम्पनी की, तो मैं निश्चित तौर पर कह सकता हूँ, कि यह एक बेहतरीन कंपनी है. फिर भी, अगर तुम्हें पसंद नहीं आ रही, तो बाहर जाने के रास्ते हरदम खुले हैं. यहाँ अपना बेहतरीन देते हुए अवसर की तलाश जारी रखो. जैसे ही मिले, निकल लो. तुम्हें ठीक उसी तरह कोई नहीं रोक पायेगा, जैसे बहता हुआ पानी रोकना कठिन होता है. अपनी सकारात्मक सोच के सहारे ही आप जीवन में हर वह चीज हासिल कर पाओगे, जो आप चाहते हो. गुस्सा करके, खुद को तकलीफ पहुंचा कर, माँ-पापा-भाई-बहन से गुस्सा करके तो आप खुद का ही नुकसान करोगे. किसी दूसरे का नहीं. मेरी तुमसे इल्तजा है कि सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ो. सोचो तुम कितने भाग्यशाली हो, तुम्हारे पास एक नौकरी है. ढेरों नौजवान सडकों पर मारे-मारे घूम रहा है, बेरोजगार. मुझे लगता है कि तुमसे काबिल नौजवान भी बेरोजगार हैं. तुम भाग्यशाली हो तुम्हारा परिवार तुम्हारे साथ है. जरा सोचो, उस नौजवान के बारे में-जिसका इस दुनिया में कोई नहीं. सोचो उन लोगों के बारे में जो कई बार बिना खाए भूखे पेट सो जाते हैं. तुम्हें पता नहीं होगा कि इस देश में हर साल लगभग छह लाख लोग भूख से मर जाते हैं, इनमें ज्यादा संख्या मासूमों की है. पूरी दुनिया में यह संख्या 18 लाख है. तुम्हें यह सोचने की कतई जरूरत नहीं है कि तुम्हारे पास क्या नहीं है, तुम खाली यह सोचो कि तुम्हारे पास क्या-क्या है. तय मान लो, अगर पैसे से खुशियाँ आ रही होतीं तो अनिल-मुकेश अम्बानी कभी अलग नहीं होते. मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि तुम्हारे पास खुश रहने के एक लाख बहाने हैं और दुखी होने के चंद कारण. पलड़ा ख़ुशी का भारी है..फिर दुखी क्यों मेरे लाल. खुश रहो. मस्त रहो. सेहत का ख्याल रखो. जीवन को जियो. जिंदगी बहुत खूबसूरत है. इसे दुखों में गंवाने का कोई औचित्य नहीं.
प्रख्यात कवि मैथिलि शरण गुप्त की इस कविता को जरूर पढो. जितनी बार पढ़ता हूँ, कुछ नया पाता हूँ-
मैं यह पत्र तुम्हें बड़े अरमान से लिख रहा हूँ. तुम्हारी ख़ुशी के लिए लिख रहा हूँ. तुम्हारी तरक्की के लिए लिख रहा हूँ. मैं बहुत स्वार्थी हूँ. इसलिए तुम्हें आगे बढ़ते हुए देखना चाहता हूँ. बाप हूँ न, ख़ुशी मिलती है जब औलादें तरक्की करती हैं. लेकिन मैं ऐसा देख पा रहा हूँ कि तुम्हारे पास जो भी है, उससे खुश नहीं हो. जो पाना चाहते हो उसके लिए तुम्हें किसी और से शिकायत है. खुद पर भरोसा करो पुत्तर. सब मिलेगा, जो तुम चाहते हो.
मेरे से जो कुछ हो सका, किया तुम्हारे लिए. तुम्हें पढ़ने की आजादी दी. विषय चुनने की आजादी दी. तुमने कहा, तैयारी करनी है, मैंने कहा कर लो. मैं तो तुम्हें और पढ़ाना चाहता था, लेकिन तुम तैयार ही नहीं हुए. तुम्हारी कंपनी के बारे में कोई भी बात करने के पहले मैं नौकरी के बारे में कुछ बताना चाहता हूँ. मेरे पास लगभग 25 साल का तजुर्बा है. और तुम्हारे पास जुम्मा-जुम्मा कुछ महीनो का. असल में नौकरी हम करते हैं. हमें लगता है कि हम बहुत मेहनत कर रहे हैं. पर, हमारी मेहनत का फैसला हमारा बॉस करता है. वह तय करता है कि मेरा काम कैसा है? कोई दूसरा नहीं. मैं खुद भी नहीं. लेकिन नौकरी करते हुए मेरा अपना तजुर्बा यह कहता है कि हर बॉस को बेहतरीन कर्मचारी की जरूरत होती है. ऐसे में अच्छे कर्मचारी की पूछ हर जगह होती है. इस सच से इनकार करना बेवकूफी होगी कि कई बॉस ऐसे भी होते हैं, जो चापलूस कर्मचारियों की फ़ौज अपने आसपास रखते हैं. लेकिन खास बात यह है कि ऐसे बॉस भी अच्छे कर्मचारियों को अपने साथ रखना चाहते हैं.
दुनिया भर की ढेरों कम्पनियों के सर्वे बताते हैं कि हर ऑफिस में बमुश्किल 5-7 फ़ीसदी लोग ही लीडर होते हैं. लगभग इतने ही लोग ऐसे होते हैं, जो लीडर तो नहीं होते लेकिन बेहतरीन फालोवर जरूर होते हैं. और यही दोनों मिलकर कम्पनी चलाते हैं. बाकी लोग केवल और केवल कंपनी की बुराई, अपने बॉस की बुराई, अपने साथियों की बुराई से जो समय बचता है, उसी में कंपनी का काम करते हैं. खास बात यह है कि उन्हें लगता है कि उनकी हरकतों पर किसी की नजर नहीं है या फिर बॉस केबिन में बैठा है तो उसे भला कैसे पता चलेगा. पर, यह सच नहीं होता. केबिन में कोई भी कर्मचारी पहले दिन से नहीं बैठता. कुछ अतिरिक्त मेहनत करने वाला ही वहाँ पहुँच पाता है. ऐसे में सारी चीजें उसकी नजर में होती हैं. आजकल, वैसे भी हर कम्पनी एचआर डिपार्टमेंट पर अब काफी ध्यान देने लगी है. उसका काम ही है ऐसे सिस्टम ईजाद करना कि कर्मचारियों के काम पर सीधी नजर रखी जा सके. कोई भी बॉस मनमर्जी तरीके से अप्रेजल नहीं कर सकता. उसके हाथ काफी हद तक बंधे होते हैं. जबकि, अधिकतर कर्मचारी को यह लगता है कि उसका बॉस जो चाहे, इन्क्रीमेंट दे सकता है. यह आधा सच है, दे भी सकता है और किसी भी सूरत में नहीं दे सकता. असल में बेहतरीन इन्क्रीमेंट भी वह बेहतरीन कर्मचारी या दो-चार चापलूसों को ही दे सकता है. क्योंकि अप्रेजल के समय उसे उसकी सीमा रेखा बता दी जाती है.
अब एक कर्मचारी के रूप में हमें यह तय करना होगा कि हम ऊपर वाली कटेगरी में रहना चाहते हैं या फिर भीड़ में. अगर हम लीडर्स वाली लाइन में रहने की मंशा रखते हैं, तो यह मैटर नहीं करता कि कम्पनी कैसी है, मायने छोटी या बहुत बड़ी. अगर आप खुद को ऊपर से 15 फ़ीसदी में चाहते हो तो कई बार रातें कुर्बान होंगी और कई बार देर रात आकर भी सुबह जल्दी जाने की मजबूरी भी. इन दोनों ही हालातों में अगर आप अपनी सकारात्मक सोच कायम रखते हैं तो आप तरक्की की सीढियां तेजी से चढ़ोगे. अगर नकारात्मक तरीके से लेते हैं, तो यह रफ़्तार बहुत ही धीमी या कहिये कि कई बार ठहर भी जाएगी. यह बात मैं अपने तजुर्बे के आधार पर कह रहा हूँ. तुम जानते हो कि मैंने अपने करियर की शुरुआत बहुत छोटी की थी. और बहुत जल्दी तरक्की की सीढियां चढते हुए आगे बढ़ गया. भरोसा नहीं होगा तुम्हें, मेरे कई साथी आज भी वहीं खड़े हैं, जहाँ से शुरू हुए थे. उन्हें सर्वाधिक शिकायतें भी हैं, अपने बॉस से, कंपनी से, अपने साथियों से. पर, इतनी शिकायतों के बावजूद वे वर्षों से एक ही जगह ठहरे हुए हैं. उनमें इतनी हिम्मत भी नहीं, कि कहीं दूसरी जगह चले जाएँ. एक कहावत हमारे बुजुर्गों ने कही है-ठहरा हुआ पानी जल्दी से गन्दा हो जाता है और बहता हुआ गन्दा पानी बहुत जल्दी साफ. वही बात उन पर भी लागू होती है.
अगर किसी आदमी को सबसे शिकायत है तो सबसे बेहतरीन बात यह है कि वह अपनी पसंद की जगह तलाश ले. मेरा तजुर्बा कहता है कि जिसे नकारात्मक श्रेणी का कर्मचारी शोषण कहता है, उसी काम को सकारात्मक सोच रखने वाला कर्मचारी अवसर के रूप में लेता है. सीनियर्स हमेशा अवसर उसी को देते हैं, जो लपककर उसे करने का जज्बा रखता है. ऐसा ही करते हुए कर्मचारी बॉस की नजर में चढ़ या उतर जाता है. चंद रोज बाद बॉस अपने उन्ही कर्मचारियों पर ज्यादा भरोसा करने लगता है. अगर बॉस के बॉस ने उनसे दो ऐसे साथियों का नाम मांग लिया, जिन्हें तरक्की देकर दूसरी ब्रांच में भेजना हो, तो वे अवसर को छीनने वाले कर्मचारियों को ही मौका देना पसंद करते हैं. जानते हो क्यों? क्योंकि उन्हें भी भविष्य में तरक्की चाहिए होती है. अगर उनका दिया नाम आगे बेहतर नहीं करेगा तो कहीं न कहीं उनकी तरक्की का रास्ता भी रुकेगा.
अब जहाँ तक रही बात, तुम्हारी कम्पनी की, तो मैं निश्चित तौर पर कह सकता हूँ, कि यह एक बेहतरीन कंपनी है. फिर भी, अगर तुम्हें पसंद नहीं आ रही, तो बाहर जाने के रास्ते हरदम खुले हैं. यहाँ अपना बेहतरीन देते हुए अवसर की तलाश जारी रखो. जैसे ही मिले, निकल लो. तुम्हें ठीक उसी तरह कोई नहीं रोक पायेगा, जैसे बहता हुआ पानी रोकना कठिन होता है. अपनी सकारात्मक सोच के सहारे ही आप जीवन में हर वह चीज हासिल कर पाओगे, जो आप चाहते हो. गुस्सा करके, खुद को तकलीफ पहुंचा कर, माँ-पापा-भाई-बहन से गुस्सा करके तो आप खुद का ही नुकसान करोगे. किसी दूसरे का नहीं. मेरी तुमसे इल्तजा है कि सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ो. सोचो तुम कितने भाग्यशाली हो, तुम्हारे पास एक नौकरी है. ढेरों नौजवान सडकों पर मारे-मारे घूम रहा है, बेरोजगार. मुझे लगता है कि तुमसे काबिल नौजवान भी बेरोजगार हैं. तुम भाग्यशाली हो तुम्हारा परिवार तुम्हारे साथ है. जरा सोचो, उस नौजवान के बारे में-जिसका इस दुनिया में कोई नहीं. सोचो उन लोगों के बारे में जो कई बार बिना खाए भूखे पेट सो जाते हैं. तुम्हें पता नहीं होगा कि इस देश में हर साल लगभग छह लाख लोग भूख से मर जाते हैं, इनमें ज्यादा संख्या मासूमों की है. पूरी दुनिया में यह संख्या 18 लाख है. तुम्हें यह सोचने की कतई जरूरत नहीं है कि तुम्हारे पास क्या नहीं है, तुम खाली यह सोचो कि तुम्हारे पास क्या-क्या है. तय मान लो, अगर पैसे से खुशियाँ आ रही होतीं तो अनिल-मुकेश अम्बानी कभी अलग नहीं होते. मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि तुम्हारे पास खुश रहने के एक लाख बहाने हैं और दुखी होने के चंद कारण. पलड़ा ख़ुशी का भारी है..फिर दुखी क्यों मेरे लाल. खुश रहो. मस्त रहो. सेहत का ख्याल रखो. जीवन को जियो. जिंदगी बहुत खूबसूरत है. इसे दुखों में गंवाने का कोई औचित्य नहीं.
प्रख्यात कवि मैथिलि शरण गुप्त की इस कविता को जरूर पढो. जितनी बार पढ़ता हूँ, कुछ नया पाता हूँ-
नर हो न निराश करो मन को
कुछ काम करो कुछ काम करो, जग में रहके निज नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो, समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को, नर हो न निराश करो मन को ।
संभलो कि सुयोग न जाए चला, कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना, पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलम्बन को, नर हो न निराश करो मन को ।
जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ, फिर जा सकता वह सत्व कहाँ
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो, उठके अमरत्व विधान करो
दवरूप रहो भव कानन को, नर हो न निराश करो मन को ।
निज गौरव का नित ज्ञान रहे, हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे
सब जाय अभी पर मान रहे, मरणोत्तर गुंजित गान रहे
कुछ हो न तजो निज साधन को, नर हो न निराश करो मन को ।
संभलो कि सुयोग न जाए चला, कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना, पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलम्बन को, नर हो न निराश करो मन को ।
जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ, फिर जा सकता वह सत्व कहाँ
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो, उठके अमरत्व विधान करो
दवरूप रहो भव कानन को, नर हो न निराश करो मन को ।
निज गौरव का नित ज्ञान रहे, हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे
सब जाय अभी पर मान रहे, मरणोत्तर गुंजित गान रहे
कुछ हो न तजो निज साधन को, नर हो न निराश करो मन को ।
प्यार सहित
अब्बा
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