विधान सभा चुनाव 2017:उत्तर प्रदेश में सियासी बयार तेज

उत्तर प्रदेश में सियासी बयार तेज हो चली है. नित नए समीकरण बनते-बिगड़ते देखे जा रहे हैं. भाजपा जहाँ परिवर्तन यात्राओं के जरिए मतदाताओं को रिझाने की शुरुआत कर चुकी है तो सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी ने भी विकास यात्रा की शुरुआत कर दी है. बहुजन समाज पार्टी अपने ढेरों साथियों के इधर-उधर भाग जाने के बावजूद मैदान में डटी हुई है. बसपा सुप्रीमो मायावती अकेले ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव तक को ख़ारिज करती हुई दिखती हैं.
इस बीच सोमवार को कांग्रेस रणनीतिकार प्रशांत किशोर की मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की मुलाकात ने राज्य में महागठबंधन को और बल दिया है. यद्यपि, कांग्रेसी महागठबंधन को ख़ारिज कर रहे हैं और प्रशांत किशोर की मुलाकात को भी वह तवज्जो नहीं दे रहे हैं. पीके इससे पहले भी एक मुलाकात मुलायम सिंह यादव से कर चुके हैं. पर, जानकार मानकर चल रहे हैं कि देर-सवेर कांग्रेस इस गठबंधन में शामिल होगी. जानकारों का यह भी दावा है कि मसला केवल सीटों का फंसा है. कांग्रेस जीतनी सीटें चाहती है, उतना मिलने में मुश्किल हो रही है. पर बात आगे-पीछे बन जाएगी. दो दिन पहले हुए समाजवादी पार्टी के 25 साला जलसे में जुटे समाजवादी नेताओं ने भी यही मंशा जाहिर की थी. रालोद नेता चौधरी अजित सिंह, जदयू के शरद यादव और आरएलडी चीफ लालू यादव भी महागठबंधन की बात कर चुके हैं. कांग्रेसी भले ही इस भावी गठबंधन को अभी नहीं स्वीकार करें लेकिन जमीनी हकीकत से वे भी वाकिफ हैं. उत्तर प्रदेश में चुनाव अभी भी जातीय आधार पर ही होंगे. इसीलिए विकास की बातें करने वाले सभी दल अभी से जातीय गोटें बिछा रहे हैं. इसका असर भाषणों से लेकर पोस्टर-बैनर तक में दिख रहा है. मुद्दे ऐसे ही उठाये जा रहे हैं, जिससे जातीय वोट उनके पक्ष में गिरें. इस काम में भाजपा, बसपा, सपा, कांग्रेस सब लगे हैं. पहले तीन दलों के पास तो जातिगत आधार वोट हैं लेकिन कांग्रेस के पास अब यह वोट इतना नहीं जिससे वह कोई ठोस मुकाम हासिल कर सके. ऐसे में उसे महागठबंधन का हिस्सा बनने से कुछ न कुछ फायदा जरुर मिलेगा.
अगर यह गठबंधन बनता है तो निश्चित उत्तर प्रदेश का चुनाव त्रिकोणीय होगा. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की राह लोकसभा चुनाव की तरह आसान नहीं रह जाएगी. इसके पहले माना जा रहा था कि लड़ाई भाजपा और बसपा में होगी. क्योंकि समाजवादी पार्टी उठापटक की शिकार हो गई थी. अब सपा अपनी अंदरूनी लड़ाई से उबर चुकी है या कहिये कि मुलायम सिंह यादव ने बेटे अखिलेश को मजबूती देने के इरादे से जो फिल्म लिखी थी, वह परदे पर हूबहू चल रही है. ऐसे में अब इस दल के नेतृत्व में जो भी गठबंधन बनेगा, वह चुनाव में मजबूती से लड़ेगा. परिणाम किसके पक्ष में जायेगा, यह कहना अभी बहुत जल्दी होगी. वैसे भी यहाँ का मतदाता अंतिम समय में ही वोट का फैसला करता है. मुसलमान वोट अब किसी एक का तो नहीं ही रह गया. अगर कोई ऐसा दावा करता है तो यह उसकी नादानी ही कही जाएगी.  बहरहाल, सरकार कोई बनाए, यह चुनाव निश्चित ही रोचक सभी के लिए होगा. जैसे-जैसे समय करीब आएगा, वैसे-वैसे नए रंग देखने को मिलेंगे.

Comments

Popular posts from this blog

खतरे में ढेंका, चकिया, जांता, ओखरी

सावधान! कहीं आपका बच्चा तो गुमशुम नहीं रहता?

गूलर की पुकार-कोई मेरी बात राजा तक पहुंचा दो