गणेश शंकर विद्यार्थी लेख 73 : पंजाब में अशांति

गणेश शंकर विद्यार्थी जी 
हमें कभी यह ख्याल भी न हुआ था, कि पंजाब से जिन छोटी-छोटी डकैतियों के समाचार आ रहे हैं, उनमें अत्याचार और अशांति कूट-कूट कर भरी हुई है. डकैतियां बंगाल में हुईं और समझा गया, कि उसी प्रकार की डकैतियां पंजाब में भी हुईं.

उस समय भी इन पंजाबी डकैतियों की भीषणता पर ध्यान नहीं गया, जबकि नए गला-घोंटू क़ानून के पास होने पर पंजाब के एक प्रसिद्ध पत्र ने आराम की साँस लेते हुए क़ानून का सादर स्वागत किया. क्योंकि समझा गया कि पराधीनता की इस भूमि में अपनी ही मौत के मरसिए भी गाये जा सकते हैं.
परन्तु, अब जो बातें सामने आ रही हैं, उसका ठोसपन और उसकी कठोरता हमें इस बात को मानने के लिए विवश करती है कि इन डकैतियों की आड़ में पंजाब के मुल्तान विभाग के हिन्दुओं पर बड़े-बड़े अत्याचार हुए हैं. उन अत्याचारों का वर्णन पढ़कर ह्रदय दहल जाता है. और भाषित होता है कि मानो उन दिनों मुल्तान विभाग में किसी राजा का राज ही न था. फरवरी में बदमाश मुसलमानों के दल के दल लूट-मार के लिए निकल पड़े.
केवल आठ-दस दिन के भीतर ही लगभग तीस गहरे डाके पड़े. आधे मार्च तक डाके पड़े. हिन्दुओं के घर लूटे गए. उनका सामान नष्ट किया गया. वे मारे-पीटे गए और उनकी स्त्रियों की इज्जत जबरदस्ती खाक में मिलाई गई. इन डकैतियों में कम से कम पांच सौ आदमी शरीक थे. लगभग 70-80 हजार रुपये का माल इधर का उधर हो गया.
डाकुओं में एक विशेषता थी, वे खुल्लम-खुल्ला कहते थे कि अब अंग्रेजी राज उठ गया. जर्मन कैसर का राज है. हम उसी की प्रजा हैं. और उसने हमें मनमाना लूटमार करने की आज्ञा दी है. अंत में इन उत्पातों और अत्याचारों से पंजाब सरकार का आसन डोला. नए गला-घोटू कानून के अनुसार मुल्तान में विशेष अदालत बैठी.
दल के दल लोग पकड़े गए और अदालत के सामने पेश किये गए. जैसे गिरोह के गिरोह वे पकडे गए थे, हम देखते हैं कि वैसे ही गिरोह के गिरोह वे छूटते भी जाते हैं.
वाकरपुर की डकैती के दोष में 139 आदमी पकड़े गए, और 136 छोड़ दिए गए. तीन को ही सजा हुई. इस बेला डकैती के दोष में पकड़े हुए 92 आदमियों में से केवल एक को दण्ड मिला. इस प्रकार के फैसलों का बड़ा बुरा असर हुआ है. यह कहा ही नहीं जा सकता कि डाके नहीं पड़े और अमानुषिक अत्याचार नहीं हुए. फिर इन्हीं उपद्रवियों के दोष में इक्के-दुक्के आदमियों को दण्डित करना क्या बदमाशों की टोलियों को बदमाशी करने के लिए अधिक उत्तेजना और प्रलोभन देना नहीं है.
और क्या न्याय की यह गति अत्याचार पीड़ित लोगों को हाथ पकड़कर भंवर में धकेल देने और उन्हें रक्षा और न्याय से निराश कर देने के बराबर नहीं है. हम यह नहीं चाहते कि केवल आतंक ज़माने के लिए बहुत से आदमियों को दण्ड दे दिया जाए, चाहे उन आदमियों में बहुत से निर्दोष ही क्यों न हों. जो निर्दोष हों, उन्हें इज्जत के साथ छुटकारा मिले. हम इस बात को स्वीकार करने के लिए भी तैयार हैं.
विशेष अदालत के छोड़े हुए ढेर के ढेर अभियुक्त निर्दोष ही होंगे, परन्तु क्या यह पुलिस के लिए कलंक की बात नहीं है. वह इतने निर्दोष आदमियों को पकड़ कर कठघरे में बंद कर दे, साथ ही, यह भी पुलिस और देश के न्याय के लिए कलंक की बात नहीं है कि डाके मारे सैकड़ों आदमी और अत्याचार करे सैकड़ों आदमी, पर दण्ड के समय सैकड़ों में से 10-10, पांच-पांच का भी पता न लगे.
मुल्तान विभाग के हिन्दू न्याय की इस गति से संतुष्ट नहीं है. और वे संतुष्ट हो भी कैसे सकते थे ? वे बदमाशों को छूटे हुए और उन्हें मूछों पर ताव देते हुए देखकर अपनी जान, माल और इज्जत को अभी तक बड़े भारी खतरे में समझते हैं. उनकी दुर्दशा और करुण क्रंदन ने पंजाब हिन्दू सभा को चेताया है.
सभा ने पंजाब सरकार के पास मेमोरियल भेजा है. उसका एक डेपुटेशन भी पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर से मुलाकात से हिन्दुओं का दुखड़ा रोने के लिए आठ जून को शिमला पहुंचेगा. हमें आशा है कि सरकार का पूरा ध्यान इस अराजकता की ओर जाएगा. यह अराजकता अन्य सब प्रकार की अराजकताओं से बढ़कर है. क्योंकि इससे गरीब प्रजा के ठीक ह्रदय स्थल पर चोट लगती है.
और अपनी रक्षा के लिए सरकार का हाथ आगे बढ़ते हुए न देखकर गरीब प्रजा का छोटा ह्रदय शीघ्र ही यह समझ बैठता है कि सरकार कमजोर पड़ गई है. इस भाव को किसी प्रकार उदय न होने तथा उन तक न्याय और सुशासन की ज्योति पहुँचने देने के लिए, जिनकी उन्हें आवश्यकता है. हमें आशा है कि अधिकारीगण तनिक भी सुस्ती न करेंगे.
इस विषय में दो बातें विचारणीय हैं. पहली या कि कहा गया है कि मुल्तान के इन बदमाश मुसलमानों ने इसलिए उत्पात किया कि उन्हें अन्न की तंगी थी और हिन्दुओं के घरों में अन्न भरा हुआ था. पर, अन्न की तंगी में टर्की के सुल्तान और कैसर की दुहाई देने की क्या आवश्यकता थी और उस समय जबकि यह अन्न हिन्दुओं के यहाँ से उठकर मुसलमान गुंडों के यहाँ पहुंचा तो भुखमरे उत्पातियों को इन गुंडों के घरों पर टूट पड़ने में कौन सा नैतिक बंधन बाधक बना था.
दूसरी बात यह है कि कुछ लोग इन सब उत्पातों को हिन्दू मुस्लिम प्रश्न का रंग दे रहे हैं. यह उनकी भूल है. हिन्दू भूल सकते हैं यदि इन उत्पातों में वे मुसलमानियत को छिपी देखते हैं. क्योंकि उत्पात और इस्लाम एक वस्तु नहीं है और बदमाशी केवल मुसलमानों  के ही बाटे में अन्हीं पड़ी. कितने ही हिन्दू भी पक्के बदमाश देखे जाते हैं. मुसलमान भूल करेंगे यदि वे अपनी जाति के प्रेम के कारण मुल्तान के बदमाश मुसलमानों का पस्ख लें.
क्योंकि बदमाशी ऐसी वस्तु नहीं, जिसका कोई समझदार नागरिक पक्ष लेना अपनी नागरिकता के लिए कल्याणकारक समझे. कोई मना नहीं करता कि निर्दोषों का पक्ष न लो. परन्तु, यदि दोषियों का पक्ष लोगे तो तुम न्याय की गर्दन पर छूरी ही न फेरोगे, अपनी आत्मा और उन्नति का भी हनन कर डालोगे. दोषी को दण्ड मिले, चाहे वह कोई हो. और निर्दोषों का बाल भी बांका न हो, चाहे वह कोई हो. इस बात को दृष्टि के सामने रखकर आगे बढ़ने वाले संदेह से भरे हुए चित भी एक दिन एक-दूसरे का सानंद आलिंगन करेंगे. अन्यथा अन्याय का पक्ष मोम के ह्रदय को भी पत्थर बना देता है.
नोट-गणेश शंकर विद्यार्थी जी का यह लेख 7 जून 1915 को प्रताप में प्रकाशित हुआ था.

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