एक बार जो मिला वो इन्हीं का हो गया
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प्रेरणादायी व्यक्तित्व के स्वामी : श्री रूप नारायण पाण्डेय |
श्री रूप नारायण पाण्डेय. उम्र 54 साल. जो मिलता है, इन्हीं का हो जाता है. मुस्कराहट इनकी जागीर है. इसी के सहारे ये सबको अपना बना लेते हैं. इनसे मेरी मुलाकात तीन दिन पहले पंजाब नेशनल बैंक की गोमतीनगर विस्तार शाखा में हुई. शाम का समय था. इन दिनों बैंकों में वैसे ही मारा-मारी चल रही है. डरते-डराते शाम का समय इसलिए चुना कि भीड़ कम होगी. पत्नी का पैसा जमा कराने के इरादे से जब बैंक पहुंचा तो सामने पाण्डेय जी मिल गए. जोर से नमस्ते साहब की आवाज आई. मैं एक अनजाने शख्स से जोरदार नमस्कार से खुश हुआ.
हालाँकि, बैंक में भीड़ कम थी. पर्ची भरकर मैंने अपनी बेगम को दिया. वे जमा काउंटर पर लाइन में खड़ी हो गई. मेरे पास काम नहीं बचा तो मैं ब्रांच मैनेजर के पास पहुंचा और उनकी अनुमति से एक कुर्सी पर आसीन हो गया. तनिक देर बाद पाण्डेय जी आये. चाय पूछा. मैंने मना किया तो बोले-क्या साहब. चाय कौन मना करने की चीज है. शाखा प्रबंधक श्री प्रेम शंकर मिश्र ने कहा-मैडम भी हैं. चाय उनके लिए भी मंगवाएं. मैंने यह कहकर मना किया कि मैडम चाय नहीं लेती. पाण्डेय जी ने कहा-कैसे नहीं लेंगी. मैं उन्हें चाय पिलाऊंगा और यह कहते हुए पाण्डेय जी ने चाय वाले को हुकुम सुना दिया.
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मैं असमंजस में था. क्योंकि मेरी पत्नी वाकई बाहर चाय नहीं लेतीं. तनिक देर में ही मेरी पत्नी भी पैसे जमा करने के बाद बगल कुर्सी पर आसीन हो गईं. मेरी और शाखा प्रबंधक की चाय तो पाण्डेय जी ने अपने किसी आदमी से दिलवा दी और मैडम के चाय का कप लेकर खुद सामने खड़े हो गए. वे चाय के लिए मना करतीं उससे पहले उन्होंने कहा-यह चाय खास तौर से आप के लिए मंगवाई है. खुद दे रहा हूँ. साहब बोल रहे थे कि आप चाय नहीं पीतीं. मैंने उनसे दावा कर दिया है कि मुझे मैडम मना नहीं करेंगी. और ठीक वही हुआ. मैडम ने यह कहते हुए चाय की प्याली अपने हाथ में ले लीं, कि आप को मना करना वाकई कठिन है. एक तो आप का प्यार भरा आग्रह दूसरे उम्र. मैं मना कर कैसे सकती हूँ. मैं खुश हो गया. क्योंकि चाय लेकर मेरी बेगम ने एक बुजुर्ग बैंक कर्मचारी को खुश कर दिया था. उस समय उनके चहरे पर गर्व के भाव थे. उन्होंने तत्काल सारी बात एक सुर से कह डाली, जो भी चाय को लेकर हमारे बीच हुई थी. मैं बैंक से निकल आया. रात में सोने से पहले मैं अपनी दिनचर्या पर एक नजर दौड़ाने का प्रयास करता हूँ. मुझे लगा कि ऐसे भले इंसान के बारे में कुछ न कुछ लिखा जाना चाहिए.
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इसी इरादे से आज मैं फिर बैंक पहुंचा. आदतन पाण्डेय जी का सलाम मिला. मैंने उनकी एक तस्वीर खिंची और जब बताया कि आज मैं केवल आप से मिलने आया हूँ तो वे खुश हो गए. मैंने उन्हें शाखा प्रबंधक के केबिन में बैठाकर बातचीत की. कानपूर देहात के मूल निवासी पाण्डेय जी ने सन 86 में चालक के रूप में पंजाब नेशनल बैंक की नौकरी शुरू की थी. पांच साल बाद रिटायर होने वाले हैं. खुश मिजाज पाण्डेय जी की बेटी ससुराल में खुश है. बेटा बैंक की ही तैयारी में जुटा है. लखनऊ में अपना छोटा सा घर है. सुबह-शाम मंदिर में समय गुजरने वाले पाण्डेय जी अभी दफ्तरी के पद पर काम कर रहे हैं. वे इससे पहले बंथरा, अमीनाबाद और गोमतीनगर शाखाओं में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के रूप में भी कार्यरत रहे हैं. ख़ुशी और चहरे पर मुस्कान का राज पूछने पर पाण्डेय जी बोले-साहब, जीवन एक संघर्ष है. गुस्सा इसलिए नहीं करता कि उसका फायदा कोई नहीं मिलता. कोई खास इच्छा-बोले, मैं खुश हूँ. बस चाहता हूँ कि पंजाब नेशनल बैंक का हमारा परिवार खुश रहे. हमारी शाखा में आया कोई भी ग्राहक निराश न लौटे. शाखा प्रबंधक श्री मिश्र भी पाण्डेय जी के कायल हैं. हालाँकि, दोनों लोगों का साथ कुछ ही दिन का है. वे कहते हैं-कर्तव्यनिष्ठ और बेहद खुशमिजाज हैं पाण्डेय जी. मैं भी उनसे सहमत हूँ और इच्छा है कि रूप नारायण पाण्डेय जी ऐसे ही खुश और स्वस्थ रहें. लोगों की मदद करते रहें.
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