भगवान...भक्त...और अब महीना सख्त

मोदी जी, ये अंदर की बात है...
बीती रात देश के एक उद्योगपति से मुलाकात हुई. उनकी गुजारिश पर नाम नहीं दे रहे हैं. आप यह भी कह सकते हैं कि मैं उनके दबाव में आ गया. यह भी कि अब तक तो कभी दबाव में आये नहीं, फिर रातों-रात ऐसा क्या हुआ कि आप बदल गए ?
मैं सहज स्वीकार करता हूँ कि बदलाव आ गया मेरे में. बीती रात ही यह चमत्कार हुआ है. एक कहावत है-जब जागो तब भिनसार (भोर). खैर, उद्योगपति से मुलाकात की बात कर रहा था. मैंने पूछा-नोटबंदी से आप की सेहत, व्यापार, घर, परिवार आदि पर क्या फर्क पड़ा? बोले-यार तुम पत्रकारों की आदत बहुत खराब है. जब न तब, जहाँ न तहाँ, खबर तलाशते रहते हो. तुम्हारे घर आया हूँ. स्वागत करो. चाय-काफी पिलाओ. फिर खुद ही नोटबंदी पर बहकी-बहकी और खूब अच्छी-अच्छी बातें करने लगे. बोले-मोदी ने जो कारनामा कर दिखाया, रातों-रात छा गए. इससे पहले किसी भी प्रधानमंत्री ने इतना कठोर फैसला आनन-फानन नहीं लिया था. मैं तो बहुत खुश हूँ. इस नोटबंदी का दूरगामी असर पड़ेगा. देश की अर्थव्यवस्था पर. देख लेना. अभी तो कैश लेस भारत की बात कर रहे हैं. यह हो गया तो सोचो अपने देश में चमत्कार हो जाएगा.
मैंने कहा-असली बताओ सर. बोले-असली ही तो बता रहा हूँ. अब देखो न, किसी कर्मचारी को सैलरी दो नम्बर में नहीं देनी पड़ेगी. रिश्वतखोरों से मुक्ति मिल जाएगी. बहुत तंग करते थे. अब ऐसा कुछ नहीं होगा. जय हो मोदी जी की. चाय-बिस्किट के बाद मैंने फिर कुरेदा, तो बोले-देखो, जो भी बात कर रहा हूँ, यह कमरे से बाहर नहीं जानी चाहिए. अब क्या करूँ ? व्यापारी हूँ. जीवन भर भाजपा को ही वोट दिया. अब खुद पर ही उल्टा पड़ रहा है. अभी तक बड़ी से बड़ी समस्या कैश की वजह से निपट जाती थी. अब उसी के लाले पड़े हैं. अपने कारखाने में काम करने वाले आधे से ज्यादा वर्कर वेतन कैश से ही पाते थे.
उन्हें  सुविधा यह थी, कि पूरी रकम उन्हें मिल जाती थी. कोई कटौती नहीं. न पीएफ का झामा और न ही ईएसआई का. ढेरों सरकारी लफड़ों से बचे हुए थे. अपने सीए साहेबान हिसाब-किताब बना लेते थे. अब मुश्किल यह है कि कैश है नहीं. निकाल सकते नहीं. वेतन देना ही पड़ेगा. धंधा मंदा पड़ गया है. इससे निपटने के लिए तय यह हुआ कि कुछ लोगों को बेरोजगार कर दिया जाए. कुछ को थोड़ा इधर-उधर करके बचाने का प्रयास करेंगे. इसमें भी आर्थिक बोझ बढ़ना तय है.
सबसे बड़ा संकट रिश्वतखोरों से निपटने में आने वाला है. मेरी कंपनी हर साल हैण्डसम अमाउंट रिश्वत में दे देती थी. और अपना काम आसानी से हो जाता था. मैंने पूछा-आप गलत करते क्यों हो, जो बात-बात में रिश्वत देनी पड़े. बोले-पत्रकार महोदय, आप से कोई रिश्वत नहीं मांगता न, इसलिए ऐसे सवाल कर रहे हो. यहाँ तो होली-दीवाली जैसे मौकों पर ही लाखों स्वाहा हो जाते हैं. फाइल कितनी भी दुरुस्त हो, अगर रिश्वत नहीं चढ़ी तो उसका फंसना तय है.
अम्बानी-अडानी भी अपने काम ऐसे ही कराते हैं, पर उन्होंने तरीका अलग निकाला है. उनके पास अलग महकमा है इसी काम के लिए. वे किसी को नाराज भी नहीं करते. पार्टी फंड से लेकर कैश तक में सबका ध्यान रखते हैं. रिश्वत का एक ऐसा तंत्र बन गया है कि उसे तोड़ने में मोदी जी को भी तीन-चार बार प्रधानमंत्री बनना पड़ेगा. ये बेईमान कैश का भी कोई तोड़ जरुर निकाल लेंगे.
उन्होंने कहा-दिक्कतें तो हैं, लेकिन किसी से सार्वजानिक रूप से कह नहीं सकता. दर्द उतना ही इधर भी है, जितना आप की ओर. पर, भाई तुम पत्रकार हो. लिख सकते हो. मैं व्यापारी हूँ, न अफसर से पंगा कर सकता, न ही नेता से, न ही तुम्हारे जैसे किसी पत्रकार से. और यही मेरी या मेरे जैसे कई व्यापारियों की बड़ी समस्या है. क्योंकि इन सभी समस्याओं से हम जैसे लोग इसी कैश के सहारे निपट लेते थे. अब मुश्किल तो है.
मेरी कई कम्पनियाँ है. कुल मिलाकर कोई 10 बैंक खाते हैं. सबसे एक बार में 50 हजार निकाल लें तो पांच लाख से ज्यादा नहीं होता. इतनी रिश्वत तो कई बार इनकम टैक्स और ट्रेड टैक्स वाले एक ही फाइल में ले लेते हैं. हर महीने लगभग इतना ही रुपया नगद वेतन के रूप में जाता है. आ रहा है वेतन देने का समय. परेशान हूँ, क्या करूँ, कैसे करूँ, लेकिन कुछ न तो कह सकता हूँ और न ही सुन सकता हूँ.
मैंने कहा तब तो वाकई बहुत दिक्कत है. बोले-हाँ, है तो. अब देखते हैं. मैंने कहा कि अनुमति दीजिए तो इसे लिख मारूं. आखिर सरकार तक बात पहुंचनी तो चाहिए. बोले-किसे नहीं पता है. पर, मोदी जी को क्या कहूं, आगे-पीछे कोई है तो है नहीं. बस ले लिया फैसला. ऐसा थोड़े न करते हैं. सब ठप पड़ जाएगा. कभी इस नोटबंदी का सकारात्मक असर भी आएगा जरूर लेकिन तब तक न जाने कितने तबाह हो जाएंगे.
लेकिन हाथ जोड़कर गुजारिश करूँगा कि इस विषय को यहीं छोड़ दो. मैंने पहले भी कहा था कि मसला कमरे से बाहर नहीं जाना चाहिए. लेकिन तुम फिर...मैंने कहा-अच्छा आप का नाम नहीं देंगे. स्टोरी बढ़िया है. पढ़ी भी जाएगी, इसलिए लिख देता हूँ. बोले-देख लो. नाम-पहचान छिपा लोगे तो मेरी भी इज्जत रह जाएगी और तुम्हारी स्टोरी भी बन जाएगी. मैंने कहा-यह हुई न बात. तब तक श्रीमती जी चीखीं-ये सुबह-सुबह कम्बल के नीचे तुम क्या बुदबुदा रहे हो. टाइम देखो कितना हो गया है, और ये श्रीमान की नींद खुलने का नाम नहीं ले रही. सपने में ही सही, किस्सा रोचक लगा. इसलिए तुरंत लिख मारा. शेयर अब आप से कर रहा हूँ. कैश लेस भारत के सपने के बीच इन्टरनेट देवता ने दगा दे दिया था. 

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