बड़ा सवाल:धुंध की जाँच में कौन सी रिपोर्ट देंगे ये अफसर

दिल्ली में धुंध के शोर के बीच लखनऊ और आसपास भी वही माहौल बन गया है. खबरों के मुताबिक मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इस धुंध से बेहद चिंतित हैं और जाँच के आदेश दिए हैं. अब अफसरों का दल इस धुंध के कारणों की जाँच करेगा. शायद धुंध छंटने के बाद तक. फिर चुनाव आ जाएंगे. तब इस जाँच और रिपोर्ट दोनों का मतलब नहीं रह जाएगा.
दिल्ली में तो पूरी की पूरी सरकार धुंध के पीछे पड़ गई है. निर्माण कार्य रोकने समेत और भी कई उपाय दिल्ली सरकार ने किये हैं. मेरी समझ में यह बिल्कुल नहीं आ रहा कि धुंध की कौन सी जाँच अधिकारी करेंगे. क्या इनके लिए कमाई का कोई और रास्ता खुल रहा है. ये अफसर हर साल आने वाली बाढ़ रोक नहीं पाते. पहाड़ों पर आपदा रोक नहीं पाते. जंगलों की कटान रोक नहीं पाते. बेतहाशा खनन इनकी और पूरी सरकार की देख-रेख में हे होता आया है. आगे भी यह सिलसिला बने रहने का कम से कम हर आम आदमी को पूरा विश्वास है. अरे भाई, इसे समझने के क्यों चूक हो रही है कि ये सब केवल कमाई के लिए किये जाने वाले उपाय हैं. जब तक जल, जंगल, जमीन नहीं बचाओगे, तब तक हमें कौन बचाएगा. मुझे लगता है कि इन अफसरों ने नेताओं को अपनी जेब में रख लिया है, तभी तो मनमाने आदेश करवा लेते हैं मंत्री, मुख्यमंत्री तक से.
असल में, इस पूरे मामले को समझने के लिए हमें प्रकृति को थोड़ा ही सही, समझना होगा. जब हमारे पर्यावरणविद दुनिया भर में चीख-चीख कर कह रहे हैं. अब नहीं संभले तो संकट बढ़ता ही जाएगा. पर, हम नहीं सुधरेंगे, की कसम हमने खा ली है. सामान्य सी बात है. हमें पहली-दूसरी क्लास में ही पढ़ा था. जीवन को सुचारू तरीके से चलाने के लिए शुद्ध हवा-पानी हर हाल में चाहिए. हवा में जहर घोलने का काम हम जी-तोड़ के कर रहे हैं. कोई कंजूसी इस मामले में पूरा समाज नहीं कर रहा. लाखों पेड़ रोज तरक्की के नाम पर कुर्बान हो रहे हैं और उनके बदले करोड़ों पेड़ कागजों में लग भी रहे हैं. पर उन्हें पनपते कोई नहीं देख पा रहा. जानकार कहते हैं कि शुद्ध हवा के लिए 33 फीसद हरियाली होनी चाहिए. पर, इस उत्तर प्रदेश में तो दो फीसद भी जंगल या हरियाली नहीं है. सरकारी दस्तावेजों से सबसे हरा-भरा चित्रकूट है. जहाँ गर्मी के दिनों में पीने के पानी तक का संकट होता है. क्या इन्सान और क्या पशु. सब परेशान ही नजर आते हैं. मंदाकिनी का गर्मी में और बुरा हाल होता है. जबकि वन विभाग की खासी टीम इस राज्य में भी तैनात है. हाँ, अफसरों के घरों और क्यारियों से लेकर ड्राइंग रूम तक में हरियाली छाई मिल जाएगी. अभी मुख्यमंत्री के खास प्रयासों से इतने पौधे लगा दिए जंगलात महकमे ने एक ही दिन में कि रिकार्ड बन गया. उसका प्रमाणपत्र भी आ गया. सड़कों पर दूर-दूर तक मुख्यमंत्री के गुणगान के बोर्ड भी लग गए, पर वह हरियाली कहीं नहीं दिख रही.
हम इस देश के 125 करोड़ लोगों ने भी प्रकृति के साथ रोज ही अन्याय किया और कर रहे हैं. विज्ञानी चाहे जीता चीख-चिल्ला लें, हम नहीं सुधरने वाले. हमने कसम खा ली है. प्रधानमंत्री और उनके सिपहसालार जो मर्जी हो कर लें, पर हम नहीं सुधरेंगे. कुछ तो जिम्मेदारी हमारी भी है. अगर हम देशवासी वर्ष में एक पेड़ भी लगाने का बीड़ा उठा लें तो भी बात कुछ हद तक बनेगी. हम पटाखे जरुर फोड़ेंगे. छोटी दीवाली से शुरू होकर पूरे त्योहारी सीजन में यह काम हम लगातार करेंगे. नए साल के स्वागत के बाद ही हम बंद होते हैं. फिर हमें शिकायत है कि धुंध के लिए सरकार कुछ करती नहीं. हम अपने घर की गन्दगी सामने वाली नाली में डालेंगे, फिर आरोप लगाएंगे कि नगर निगम कुछ नहीं करता. खुले में शौच की परम्परा हम ढेर सारी कोशिशों के बाद भी बंद नहीं कर पा रहे हैं, फिर हमें गिला भी है कि सरकार कुछ करती ही नहीं. मैं किसी भी सूरत में सरकारी तंत्र को क्लीनचिट देने का दुस्साहस नहीं कर पा रहा हूँ, पर खुद को कोसने से रोक भी नहीं पा रहा हूँ. गायत्री परिवार के प्रमुख आचार्य श्रीराम शर्मा जी की एक लाइन यहाँ अहम् है. वे कहते थे-हम सुधरेंगे, जग सुधरेगा. पर, हमने तो सब कुछ सरकारों पर छोड़ रखा है. इसीलिए अफसरों की मौज है. अगर हम अपने कर्तव्य और अधिकार के प्रति सजग रहें तो कोई कारण नहीं कि हमारे सामने कोई भी बड़ा संकट आएगा. और अगर कभी ऐसा हुआ भी तो हम निपट लेंगे मिलकर. पर, अब भी नहीं चेते, तो आने वाली पीढ़ियाँ साँस लेने को भी तरसेंगी.


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