अब इन्हें नहीं मिलेगी छूट, एयरपोर्ट पर सुरक्षा जाँच कराना होगा, सुप्रीम कोर्ट ने रद किया 11 साल पुराना फैसला
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सर्वोच्च अदालत की फ़ैल फोटो : साभार |
चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और एल नागेश्वर राव की बेंच ने कहा कि जजों से उम्मीद की जाती है कि वे संवैधानिक सिद्धांतों पर आधारित उद्देश्य परक और कानून में बताए गए मानकों को लागू करेंगे. कानून के शासन पर आधारित लोकतंत्र में सरकार विधायिका के प्रति जवाबदेह है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्याय फैसला करने वाले किसी व्यक्ति की समझ पर निर्भर नहीं करता.
राजस्थान हाईकोर्ट ने श्रीनगर एयरपोर्ट पर सुरक्षा चूक के एक मामले में खुद नोटिस लेते हुए सुनवाई शुरू की थी। हाई कोर्ट ने 13 मई, 2005 को सरकार को आदेश दिया था कि वह हवाई अड्डों में सुरक्षा जांच से छूट देने वाली सूची में हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीशों को भी शामिल करे.
इतना ही नहीं, अदालत ने सरकार को नेशनल सिक्योरिटी पालिसी पर भी विचार करने का आदेश दिया था. भारत सरकार ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी और सुप्रीम कोर्ट ने शुरुआत में ही 20 जनवरी 2006 को हाईकोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी थी. हालांकि इस बीच सरकार ने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों को सुरक्षा जांच से छूट की सूची में शामिल कर लिया है.
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को हाई कोर्ट का आदेश रद्द करते हुए कहा, हाई कोर्ट ने ऐसा आदेश पारित कर अपनी न्यायिक पुनरीक्षण शक्तियों (पावर अॉफ रिविजन) का अतिक्रमण किया है. सुरक्षा का मुद्दा उन सरकारी एजेंसियों को तय करने दिया जाना चाहिए, जिनका ये दायित्व है. खुफिया सूचना जमा कर आंतरिक और बाहरी खतरे का आकलन करते हुए सुरक्षा नीति तय करने में न्यायपालिका की विशेषज्ञता नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय सुरक्षा नीति बनाने के आदेश को भी न्यायिक समीक्षा के अधिकार का अतिक्रमण करार दिया.
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