नोटबंदी पर फिर तार-तार हुई विपक्षी एकता, फिलवक्त कांग्रेस अकेली पड़ी

प्रतीकात्मक फोटो : साभार

नोटबंदी पर केंद्र सरकार को घेरने की विपक्ष की एक और कोशिश तार-तार होती दिखाई दे रही है. इसमें तैयारियों और विचार-विमर्श की भी कमी सामने आ रही है. कोई भी साझा कार्यक्रम करने से पहले विपक्ष न तो एक साथ बैठा और न ही कोई रणनीति बन सकी. सीधे कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा संबोधित की जाने वाली संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस का निमंत्रण भेज दिया गया. यह आयोजन मंगलवार को तय है. 

कांग्रेस की ओर से भेजे गए न्योते पर वामदलों व नीतीश कुमार के जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने शिरकत में असमर्थता जताई. शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने भी इसके लिए अनिच्छा व्यक्त की है.

कांग्रेस को उम्मीद थी कि मंगलवार को नोटबंदी के मुद्दे पर नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ हमले में ताकत दिखाई जा सकेगी. इससे पहले संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान भी कांग्रेस के नेतृत्व में कम से कम 14 दलों ने एकजुट होकर प्रदर्शन किया था.

वाम नेता सीताराम येचुरी ने कहा कि संसद के बाहर किसी मंच पर पार्टियों का एक साथ आ जाना संसद के भीतर किसी मुद्दे पर एक साथ आ जाने जैसा सरल नहीं होता. उन्होंने कहा, "सभी विपक्षी दलों को संयुक्त रूप से रणनीति बनाकर देशभर में एकजुट होना चाहिए. मैं किसी पर कोई आरोप नहीं मढ़ना चाहता, लेकिन जो मैं कहना चाहता हूं, वह यह है कि इस तरह का कोई भी एकजुट विपक्षी कदम पहले विचार-विमर्श किए जाने पर ही निर्भर करता है.

जेडीयू के नेता केसी त्यागी ने कहा कि उनकी पार्टी ने अभी तक यह तय नहीं किया है कि इस कदम में भाग लेना है या नहीं, उनके मुताबिक वे पहले यह जानना चाहेंगे कि एजेंडा क्या है. केसी त्यागी का कहना था कि कोई भी 'साझा न्यूनतम कार्यक्रम' तय नहीं किया गया, और वैसे भी सभी विपक्षी दलों का इस मुद्दे पर एक जैसा रुख नहीं है.

उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस नोटबंदी के खिलाफ है, जेडीयू ने नोटबंदी और उसके पीछे की मंशा को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार का समर्थन किया है, लेकिन इसके फलस्वरूप पैदा हुए नकदी संकट से किसानों तथा छोटे व्यापारियों को होने वाली दिक्कतों को भी उठाया है.

उल्लेख जरुरी है कि इससे पहले भी नोटबंदी पर विपक्ष की एकजुटता टूटी थी, जब संसद सत्र के दौरान राहुल गांधी पीएम से मिलने चले गए थे. इसमें किसी और दल का कोई नेता नहीं था न ही राहुल ने किसी को भरोसे में लिया था. तब विपक्षी दलों ने इस पर तगड़ी नाराजगी जताई थी. अब यह दूसरा मौका है जब कांग्रेस को असहज होना पड़ा है.

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