संसद का शीतकालीन सत्र : काम के न काज के, नौ मन अनाज के
अगर पूरे कामकाज का हिसाब लगाएं तो प्रश्न काल में लोकसभा में 11 प्रतिशत सवालों के जवाब दिए गए तो राज्यसभा में 0.6 प्रतिशत सवालों का जवाब दिया गया. सत्र के दौरान लोकसभा में आयकर संशोधन बिल बिना किसी बहस के पास हो गया लेकिन राज्यसभा में इसे पेश ही नहीं किया गया. दोनों सदनों में सिर्फ दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों वाला विधेयक ही पास हो सका. दोनों सदनों में इतना कम काम होने पर लोकसभा की स्पीकर सुमित्रा महाजन और राज्यसभा के चेयरमैन हामिद अंसारी ने दुख प्रकट किया.
शीतकालीन सत्र 16 नवंबर से शुरू हुआ था. घंटों का हिसाब लगाया जाए तो लोकसभा ने हंगामे की वजह से 92 घंटे खोए और सिर्फ 19 घंटे काम किया. वहीं राज्यसभा ने 86 घंटे खोए और 22 घंटे काम किया. दूसरे शब्दों में लोकसभा ने एक घंटे काम के बदले पांच घंटे गंवाए गए वहीं राज्यसभा में एक घंटे के बदले चार घंटे का समय बर्बाद हुआ.
दोनों सदनों में हंगामे की वजह नोटबंदी रही. विपक्ष पीएम नरेंद्र मोदी के संसद में ना रहने को भी मुद्दा बना रहा था. इसके अलावा मोदी को माफी मांगने के लिए भी कहा गया. दरअसल, पीएम ने एक कार्यक्रम में भाषण दिया था जिसमें उन्होंने विपक्ष पर निशाना साधते हुए कहा था कि वे लोग इसलिए परेशान हैं क्योंकि उन्हें नोटबंदी से पहले वक्त नहीं दिया. राहुल गांधी समेत बाकी नेता भी कहते रहे कि पीएम रैलियों में तो बोलते हैं लेकिन संसद में नहीं. इसकी सफाई भी पीएम ने एक रैली में ही दी. गुजरात में रैली के दौरान पीएम ने कहा कि उन्हें संसद में बोलने नहीं दिया जाता इसलिए वह जनसभा में बोलते हैं.
सत्र में एक देश एक कर के लिए वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से संबंधित तीन बिलों को लाया तक नहीं जा सका. साल 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद संसद सत्र में कामकाज के घंटे में हुई उल्लेखनीय वृद्घि को वर्तमान शीत सत्र से पूरी तरह से धो कर रख दिया.
शीतकालीन सत्र 16 नवंबर से शुरू हुआ था. घंटों का हिसाब लगाया जाए तो लोकसभा ने हंगामे की वजह से 92 घंटे खोए और सिर्फ 19 घंटे काम किया. वहीं राज्यसभा ने 86 घंटे खोए और 22 घंटे काम किया. दूसरे शब्दों में लोकसभा ने एक घंटे काम के बदले पांच घंटे गंवाए गए वहीं राज्यसभा में एक घंटे के बदले चार घंटे का समय बर्बाद हुआ.
दोनों सदनों में हंगामे की वजह नोटबंदी रही. विपक्ष पीएम नरेंद्र मोदी के संसद में ना रहने को भी मुद्दा बना रहा था. इसके अलावा मोदी को माफी मांगने के लिए भी कहा गया. दरअसल, पीएम ने एक कार्यक्रम में भाषण दिया था जिसमें उन्होंने विपक्ष पर निशाना साधते हुए कहा था कि वे लोग इसलिए परेशान हैं क्योंकि उन्हें नोटबंदी से पहले वक्त नहीं दिया. राहुल गांधी समेत बाकी नेता भी कहते रहे कि पीएम रैलियों में तो बोलते हैं लेकिन संसद में नहीं. इसकी सफाई भी पीएम ने एक रैली में ही दी. गुजरात में रैली के दौरान पीएम ने कहा कि उन्हें संसद में बोलने नहीं दिया जाता इसलिए वह जनसभा में बोलते हैं.
सत्र में एक देश एक कर के लिए वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से संबंधित तीन बिलों को लाया तक नहीं जा सका. साल 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद संसद सत्र में कामकाज के घंटे में हुई उल्लेखनीय वृद्घि को वर्तमान शीत सत्र से पूरी तरह से धो कर रख दिया.
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