राहुल और प्रधानमंत्री को संसद में बोलने से रोक कौन रहा ? कोई बताएगा क्या
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प्रतीकात्मक फोटो |
मेरे मन में कुछ सवाल बीते कई दिनों से रह-रह कर आ रहे हैं. समझ नहीं पा रहा हूँ कि इनके जवाब कहाँ तलाश करूँ. देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और कांग्रेस उपाध्यक्ष, सांसद राहुल गांधी, दोनों ही कहते सुने जा रहे हैं कि उन्हें संसद में बोलने नहीं दिया जा रहा है. इसलिए दोनों ही हस्तियाँ संसद के बाहर जनता की अदालत में अपनी बात रख रही हैं.
हमारी संसदीय परम्परा बहुत बेहतरीन है. इसके तय नियम-कानून हैं. संसद का कोई भी सदस्य इन नियमों के हवाले से अपनी बात रख सकता है. फिर बात जब प्रधानमंत्री की हो या राहुल गांधी की हो तो एकदम अलग इसलिए हो जाती है कि दोनों जब भी संसद में बोलना चाहेंगे, तो उनके दल के लोग तो रोकने की हिम्मत जुटा नहीं पाएंगे और दूसरे दलों की आदत में है शोर करना, तो वे करते रहेंगे. दोनों के बोलने का मार्ग प्रशस्त करने की जिम्मेदारी लोकसभा अध्यक्ष और उनके दल की है. कागजी खानापूर्ति में दोनों कमजोर नहीं पड़ने वाले, फिर बहानेबाजी क्यों ?
आठ नवम्बर को देश में हजार, पांच सौ के नोट बंद हुए हैं. 16 नवम्बर से संसद आहूत है. इन 29 दिनों का हासिल-हिसाब है-शोर, शोर और केवल शोर. हंगामा. सदन की कार्यवाही वाधित होना. मुझे ऐसा लगता है कि दोनों ही पक्ष नहीं चाहते कि संसद चले. अगर ऐसा न होता तो लोकसभा अध्यक्ष बात-बात में कार्यवाही रोकती नहीं. स्थगित करने का हुकुम न सुनातीं. बल्कि, दोनों ही पक्षों को कहती कि उनके लिए अमुक समय तय है, वे अपनी बात रखें.
संसद चलाने के लिए लोकसभा अध्यक्ष को असीमित शक्तियां दी गई हैं. लोकसभा चले, यह उनका दायित्व भी है. फिर गड़बड़ी कर कौन रहा है? मेरा मानना है कि संसद में काबिल लोगों की कमी हो गई है. देश की सबसे बड़ी इस पंचायत में कुछ भी बोलने के लिए पढ़ना पड़ेगा. सांसदों के पास किताबें पलटने की फुर्सत नहीं है. सबसे आसान है गिरोहबंद होकर शोर करना. पहले से तय कार्यक्रम के तहत विपक्ष के लोग भी यही गिरोहबंदी करते देखे जाते हैं. जब भाजपा विपक्ष में थी तो वह भी यही करती थी जो आज कांग्रेस और बाकी दल करते हुए देखे जा रहे हैं.
अगर विपक्ष चाहता है कि संसद चले और उसके सवालों का जवाब सरकार दे तो वे संसद में शांति से बैठ क्यों नहीं रहे? मोदी जी गुजरात जाते हैं, बहराइच जाते हैं, दोनों जगह शिकायत करते हैं कि नोटबंदी पर उन्हें बोलने नहीं दिया जा रहा संसद में, इसलिए वे सीधे अपनी प्यारी जनता के पास आ गए हैं. राहुल भी यही बात जगह-जगह दोहराते नजर आते हैं.
बुधवार को भी राहुल ने संसद परिसर में ही पत्रकारों से कहा कि उनके पास मोदी जी के व्यक्तिगत भ्रष्टाचार की जानकारी है. बोलेंगे तो गुब्बारा फूट जाएगा. मैं कहता हूँ, बोल देना चाहिए राहुल जी को. क्योंकि कोई भी बवाल होने के लिए वे जिम्मेदार नहीं होंगे. देश में उनकी सरकार अब कम ही है. कानून-व्यवस्था राज्य का विषय है. ये तो बन्दर घुड़की हुई. आप तो विपक्ष में हैं. शोर आप का अधिकार है. आप बोलेंगे तो आप के दल का कोई सदस्य वैसे ही नहीं बोलेगा. भ्रष्टाचार किसी का क्यों छिपाना ?
संसद अब आज और कल ही चलनी है, इसके बाद शीतकालीन सत्र का समापन हो जाएगा. इस दो दिन में एक दिन प्रधानमंत्री को और दूसरा दिन राहुल गाँधी को देना चाहिए, जिससे दोनों को जनता के दरबार में न जाना पड़े. इससे बड़ी बेइज्जती कुछ हो नहीं सकती कि प्रधानमंत्री संसद में बोलने को तड़प रहे और उनके खिलाफ संसद में ही आग उगलने को तैयार राहुल, की संसद में ही सुनवाई नहीं हो रही. ये ठीक नहीं सुमित्रा ताई. अब आप ही कुछ करो. दो ही दिन तो बचे हैं...
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