नए सेना प्रमुख के नियुक्ति की असली वजह जानना चाहेंगे आप !

नवनियुक्त सेनाध्यक्ष विपिन रावत : फ़ाइल फोटो :साभार

बीते शनिवार सेनाध्यक्ष बनाए गए विपिन रावत प्रधानमंत्री की निजी पसंद हैं. वे पिछले साल उस समय पीएम की निगाहों में आये जब नागा आतंकियों के खिलाफ उनके नेतृत्व में म्यांमार में सफल सर्जिकल स्ट्राइक की गई. हाल ही में पाक अधिकृत कश्मीर में की गई सर्जिकल स्टाइक में भी उनकी भूमिका महत्वपूर्ण बताई जा रही है. उल्लेख जरुरी है कि रावत की नियुक्ति को विपक्ष ने गलत बताया है. जबकि सरकार का कहना है कि जो तीन नाम सेनाध्यक्ष के लिए योग्य बताए जा रहे हैं, वे तीनों नाम प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली समिति को भेजे गए थे.
बताया जाता है कि रावत चीन, पाकिस्तान सीमा के विशेषज्ञ तो वे हैं ही, पूर्वोत्तर में घुसपैठ रोधी अभियानों में दस साल तक कार्य करने का अनुभव है. पिछले साल जून में जब मणिपुर में नगा आतंकियों ने 18 सैनिकों को मार गिराया था तो तीन दिन के भीतर ही रावत के नेतृत्व में म्यांमार में घुसकर नगा आतंकी शिविरों को नष्ट किया गया जिसमें 38 नगा आतंकी मारे गए थे. यह सुझाव रावत का था और मंजूरी पीएम ने दी थी. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की देखरेख में यह पहली सर्जिकल स्ट्राइक हुई थी.

रक्षा मंत्रालय ने सेनाध्यक्ष की नियुक्ति के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली नियुक्ति समिति को तीन नाम भेजे थे. जिनमें लेफ्टिनेंट जनरल प्रवीन बख्शी के बाद दूसरा नाम बिपिन रावत का था जबकि तीसरा नाम पी. एम. हैरिश का था. रक्षा मंत्रालय ने साफ किया है कि वही तीन नाम भेजे गए थे जो सेनाध्यक्ष बनने के योग्य थे, इसलिए इसमें कनिष्ठ-वरिष्ठ कोई मुद्दा नहीं है. नियुक्ति समिति को अधिकार है कि तीनों के व्यापक अनुभवों को देखते हुए किसी एक का चयन कर सकती है. यह जरूरी नहीं है कि हर बार पहले नंबर पर रखे गए अफसर का ही चयन हो.

रावत 1978 में भारतीय सेना में शामिल हुए और अपने लंबे करियर में उन्होंने पाकिस्तान सीमा के साथ-साथ चीन सीमा पर भी लंबे समय तक कार्य किया है. वे नियंत्रण रेखा की चुनौतियों की गहरी समझ रखते हैं. साथ ही चीन से लगी वास्तविक नियंत्रण रेखा के हर खतरे से भी वे वाकिफ हैं. इसलिए माना जा रहा है कि वे दोनों सीमाओं की चुनौतियों से निपटने में सफल रहेंगे.

सितंबर के आखिरी सप्ताह में जब पाक अधिकृत कश्मीर में सर्जिकल स्ट्राइक की गई तब भी पर्दे के पीछे कमान रावत के हाथ में थी. उस समय तक वे उप सेना प्रमुख बन चुके थे. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के निर्देशन में उन्होंने म्यांमार स्ट्राइक का अनुभव लेते हुए एक और सफल सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया. तभी उनके सेना प्रमुख बनने की राह साफ हो गई थी.

मूलत उत्तराखंड के गढ़वाल के निवासी बिपिन रावत के पिता एल. एस. रावत भी सेना मे लेफ्टिनेंट जनरल रहे. वे डिप्टी आर्मी चीफ तक पहुंचे। डिप्टी आर्मी चीफ सेना में करीब-करीब तीसरे नंबर की पोस्ट होती है लेकिन कई डिप्टी चीफ होते हैं. लेकिन बिपिन रावत वाइस आर्मी चीफ पहले ही बन गए थे और अब तो आर्मी चीफ हो गए हैं. रावत की यह पारिवारिक पृष्ठभूमि सैनिकों, अफसरों का मनोबल बढ़ाने वाली साबित होगी.

Comments

Popular posts from this blog

हाय सर, बाई द वे आई एम रिया!

खतरे में ढेंका, चकिया, जांता, ओखरी

सावधान! कहीं आपका बच्चा तो गुमशुम नहीं रहता?