अख़बारों की सुर्खियाँ : डीपी के तीर : तीन

सुर्खियाँ : जनधन खातों में दूसरों का कैश, तो हो सकती है ऐश
तीर : दिल बहलाने को ग़ालिब ख्याल अच्छा है

सुर्खियाँ : सियासी संतुलन में जातीय छुट्टियाँ...जेब किसकी कटी !
तीर : चुनावी मौसम है भैये. सब कुछ यहीं खोल दोगे क्या ?

सुर्खियाँ : 'फकीरी' के बहाने गरीबों को साधा
तीर : वोट के लिए नेता कुछ भी करेगा, चुनावी सीजन जो है

सुर्खियाँ :घर वापसी नहीं करेंगे नितीश
तीर : ऐसी कसमें ठीक नहीं बाबू, राजनीति और प्यार में कभी भी, कुछ भी संभव

सुर्खियाँ : फोकस आतंकवाद पर, नजरें भारत-पाक पर
तीर : इधर-उधर देखने से नहीं, तेज हमलों से ख़त्म होगा आतंकवाद

सुर्खियाँ : 13860 करोड़ मेरे नहीं -महेश शाह
तीर : तुम्हारे नहीं तो क्या डाक्टर ने खुलासा करने का परचा लिखा था

सुर्खियाँ :आसान हो सकता है क़तर आना-जाना
तीर : जेब में भूजी भांग नहीं, अम्मा चलीं भुनाने

सुर्खियाँ :सड़क पर ज्यादा गोबर किया तो सजा
तीर : मान्यवर ! आप का अपने गोबर पर काबू है क्या

सुर्खियाँ : असेम्बली चुनाव : डेट पर टिकीं पार्टियों की नजरें
तीर : हो भी क्यों न ! डेट जितनी देर से आएगी, माल भी उतना ज्यादा खर्च होगा

सुर्खियाँ : शिवपाल-रामगोपाल की सुलह से होंगे बदलाव
तीर : यहाँ किसी की कोई हैसियत नहीं, नेता जी जो चाहेंगे, वही होगा


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