यादों के झरोखों से : संसद हमले की वर्षगांठ पर विशेष, आप भी पढ़ें
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| संसद के शहीदों को नमन : फोटो साभार |
13 दिसंबर 2001 को जैश-ए-मोहम्मद के पांच आतंकियों ने संसद पर हमला किया था. इस हमले में दिल्ली पुलिस के पांच जवान, सीआरपीएफ की एक महिला कांस्टेबल और संसद के दो गार्ड शहीद हुए और 16 जवान इस मुठभेड़ में घायल हुए थे. संसद पर हमले की घिनौनी साजिश रचने वाले मुख्य आरोपी अफ़ज़ल गुरु को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया. इसी आरोप में सुप्रीम कोर्ट ने 4 अगस्त 2005 को अफ़जल गुरु को फांसी की सजा सुनाई थी. 9 फ़रवरी, 2013 को अफजल गुरु को नई दिल्ली को तिहाड़ जेल में सुबह 8 बजे फांसी दी गई.
संसद पर हमला : यादों के झरोखों से
सुबह 11.28 बजे - विपक्ष के हंगामे के बाद दोनों सदनों की कार्यवाही स्थगित कर दी गई थी. सदन के स्थगित होते ही तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और विपक्ष की नेता सोनिया गांधी लोकसभा से निकलकर अपने-अपने सरकारी आवास की तरफ निकल चुके थे.
तत्कालीन गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी कुछ मंत्रियों और सांसदों के साथ लोकसभा में ही मौजूद थे. हमेशा की तरह लोकसभा के अंदर मीडिया का भी पूरा जमावड़ा था. सदन स्थगित होने के बाद कुछ सांसद बाहर निकलकर धूप सेंक रहे थे.
संसद पर हमला : यादों के झरोखों से
सुबह 11.28 बजे - विपक्ष के हंगामे के बाद दोनों सदनों की कार्यवाही स्थगित कर दी गई थी. सदन के स्थगित होते ही तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और विपक्ष की नेता सोनिया गांधी लोकसभा से निकलकर अपने-अपने सरकारी आवास की तरफ निकल चुके थे.
तत्कालीन गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी कुछ मंत्रियों और सांसदों के साथ लोकसभा में ही मौजूद थे. हमेशा की तरह लोकसभा के अंदर मीडिया का भी पूरा जमावड़ा था. सदन स्थगित होने के बाद कुछ सांसद बाहर निकलकर धूप सेंक रहे थे.
सुबह 11.29 बजे - संसद का गेट नंबर 11 - उपराष्ट्रपति कृष्णकांत के काफिले में तैनात सुरक्षाकर्मी उनके सदन के बाहर आने का इंजार कर रहे थे. ठीक उसी समय एक सफेद अंबेस्डर कार उपराष्ट्रपति के काफिले की तरफ तेजी से आती हुई दिखाई दी. इस कार की रफ्तार संसद के अंदर आने वाली कारों की तय रफ्तार से कहीं तेज थी. कोई कुछ समझ पाता तभी लोकसभा के सुरक्षाकर्मचारी जगदीश यादव कार के पीछे भागते हुए नजर आये. वह लगातार उस कार को रुकने का इशारा कर रहे थे. जगदीश यादव को कार के पीछे यूं बेतहाशा भागते देख उप राष्ट्रपति के सुरक्षा में तैनात एएसआई चीप राव, नामक चंद और श्याम सिंह भी उस कार को रोकने के लिये उसकी तरफ झपटे.
सुरक्षाकर्मियों को अपनी ओर आते देख कार का चालक फौरन कार को गेट नंबर 1 की तरफ मोड़ा, जहां उप राष्ट्रपति की कार खड़ी थी. तेज रफ्तार और मोड़ के चलते चालक कार पर से नियंत्रण खो देता है और कार सीधे उप राष्ट्रपति की कार से जा टकराई.
सुबह 11.30 बजे, संसद का गेट नंबर 1- टक्कर के बाद कोई कुछ समझ पाता कि उस कार के चारों दरवाजे एक साथ खुलते हैं, और गाड़ी में बैठे पांच आतंकवादी पलक झपकते ही बाहर निकलने के साथ अंधाधुंध फायरिंग शुरु कर देते हैं. पांचों आतंकवादी एके-47 से लैस थे और उनके पीठ पर एक-एक बैग था. यह पहली बार था जब लोकतंत्र की दहलीज पार कर आतंकी अंदर आ गये थे.
संसद भवन गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा था. आतंकवादियों ने अपना सबसे पहला निशाना उन चार सुरक्षाकर्मियों को बनाया जो उनकी कार रोकने की कोशिश कर रहे थे .इसके बावजूद भी संसद में मौजूद बाकी लोगों को इस हमले के बारे में जानकारी नहीं थी. गोलियों की आवाज को अंदर मौजूद मंत्री और सांसद पटाखों की आवाज समझ रहे थे .किसी ने भी नहीं सोचा था कि संसद पर आतंकी हमला हुआ है. इसी बीच एक जोरदार धमाका हुआ जिसके बाद ये साफ हो गया कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मंदिर यानी कि संसद पर हमला हो चुका है.
सुबह 11.40 बजे संसद का गेट नंबर 1
अंधाधुंध फयारिंग के बीच एक आतंकवादी दौड़ता हुआ संसद भवन के गेट नंबर 1 की तरफ जाता है. उसका मकसद था कि वह किसी भी तरह संसद के गलियारे में घुस जाये और वहां मौजूद सांसदों को बंधक बना ले या फिर उन्हें नुकसान पहुंचा दे. इससे पहले वह अपने नापाक मंसूबों में कामयाब होता सुरक्षाकर्मियों ने उसे मार गिराया.
खुद को खत्म कर डाला
गेट नंबर 1 पर ही उस आत्मघाती हमलावर ने धमाका कर दरवाजा तोड़ने की सोची थी. पहला आतंकी गिर चुका था लेकिन वह अभी भी जिंदा था. सुरक्षाकर्मियों ने उसे पूरी तरह से निशाने पर ले रखा था लेकिन उसके पास जाने में सुरक्षाकर्मी सोच रहे थे. उन्हें डर था कि कहीं वह खुद को उड़ा ना दे और हुआ भी ऐसा ही, जैसे ही उस घायल आतंकी को यह लगा कि वह चारों तरफ से घिर चुका है, उसने खुद को उड़ा दिया.
सुबह 11.45 बजे संसद भवन का दूसरा हिस्सा
एक आतंकी मर चुका था लेकिन चार आतंकी संसद भवन के अलग-अलग हिस्सों में ताबड़तोड़ फायरिंग कर रहे थे. ऐसा लग रहा था कि वह घंटों मुकबला करने की तैयारी के साथ आये थे. आतंकियों के पास गोलियों और हैंड ग्रेनेड का पूरा जखिरा था जिसे वह अपने शरीर में बांधकर और अपने पीछे रखे बैग में रख कर लाये थे. इस बीच सेना और एनएसजी पहुंच चुकी थी.
लाइव ऑपरेशन
आतंकियों ने इस बात का एहसास दिला दिया था कि वह किस इरादे से अंदर आये हैं. पूछताछ के बाद ये जानकारी सामने आई कि हमले का मास्टर मांइड अफजल गुरू था. उसके आकाओं ने आदेश दिया था कि रास्ते में जो भी शख्स आए उसे गोलियों से भून डालो. इस बीच आतंकी हमले की सूचना सेना और एनएसजी कमांडो की मिल चुकी थी. आतंकियों से निपटने में माहिर दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने मोर्चा संभाल लिया था. मीडिया के जरिये इस हमले की खबर देश और विदेश में फैल चुकी थी.
सुबह 11.55 बजे, संसद का गेट नंबर 5अपने एक साथी के मारे जाने की खबर बाकी बचे आतंकियों को लग चुकी थी. लिहाजा अब वह और भी हमलावर हो गये थे. आतंकवादी चारों तरफ से घिर चुके थे और सुरक्षाकर्मियों ने पूरी तरह से मुकाबले का तैयार थे.
सुरक्षाकर्मियों को अपनी ओर आते देख कार का चालक फौरन कार को गेट नंबर 1 की तरफ मोड़ा, जहां उप राष्ट्रपति की कार खड़ी थी. तेज रफ्तार और मोड़ के चलते चालक कार पर से नियंत्रण खो देता है और कार सीधे उप राष्ट्रपति की कार से जा टकराई.
सुबह 11.30 बजे, संसद का गेट नंबर 1- टक्कर के बाद कोई कुछ समझ पाता कि उस कार के चारों दरवाजे एक साथ खुलते हैं, और गाड़ी में बैठे पांच आतंकवादी पलक झपकते ही बाहर निकलने के साथ अंधाधुंध फायरिंग शुरु कर देते हैं. पांचों आतंकवादी एके-47 से लैस थे और उनके पीठ पर एक-एक बैग था. यह पहली बार था जब लोकतंत्र की दहलीज पार कर आतंकी अंदर आ गये थे.
संसद भवन गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा था. आतंकवादियों ने अपना सबसे पहला निशाना उन चार सुरक्षाकर्मियों को बनाया जो उनकी कार रोकने की कोशिश कर रहे थे .इसके बावजूद भी संसद में मौजूद बाकी लोगों को इस हमले के बारे में जानकारी नहीं थी. गोलियों की आवाज को अंदर मौजूद मंत्री और सांसद पटाखों की आवाज समझ रहे थे .किसी ने भी नहीं सोचा था कि संसद पर आतंकी हमला हुआ है. इसी बीच एक जोरदार धमाका हुआ जिसके बाद ये साफ हो गया कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मंदिर यानी कि संसद पर हमला हो चुका है.
सुबह 11.40 बजे संसद का गेट नंबर 1
अंधाधुंध फयारिंग के बीच एक आतंकवादी दौड़ता हुआ संसद भवन के गेट नंबर 1 की तरफ जाता है. उसका मकसद था कि वह किसी भी तरह संसद के गलियारे में घुस जाये और वहां मौजूद सांसदों को बंधक बना ले या फिर उन्हें नुकसान पहुंचा दे. इससे पहले वह अपने नापाक मंसूबों में कामयाब होता सुरक्षाकर्मियों ने उसे मार गिराया.
खुद को खत्म कर डाला
गेट नंबर 1 पर ही उस आत्मघाती हमलावर ने धमाका कर दरवाजा तोड़ने की सोची थी. पहला आतंकी गिर चुका था लेकिन वह अभी भी जिंदा था. सुरक्षाकर्मियों ने उसे पूरी तरह से निशाने पर ले रखा था लेकिन उसके पास जाने में सुरक्षाकर्मी सोच रहे थे. उन्हें डर था कि कहीं वह खुद को उड़ा ना दे और हुआ भी ऐसा ही, जैसे ही उस घायल आतंकी को यह लगा कि वह चारों तरफ से घिर चुका है, उसने खुद को उड़ा दिया.
सुबह 11.45 बजे संसद भवन का दूसरा हिस्सा
एक आतंकी मर चुका था लेकिन चार आतंकी संसद भवन के अलग-अलग हिस्सों में ताबड़तोड़ फायरिंग कर रहे थे. ऐसा लग रहा था कि वह घंटों मुकबला करने की तैयारी के साथ आये थे. आतंकियों के पास गोलियों और हैंड ग्रेनेड का पूरा जखिरा था जिसे वह अपने शरीर में बांधकर और अपने पीछे रखे बैग में रख कर लाये थे. इस बीच सेना और एनएसजी पहुंच चुकी थी.
लाइव ऑपरेशन
आतंकियों ने इस बात का एहसास दिला दिया था कि वह किस इरादे से अंदर आये हैं. पूछताछ के बाद ये जानकारी सामने आई कि हमले का मास्टर मांइड अफजल गुरू था. उसके आकाओं ने आदेश दिया था कि रास्ते में जो भी शख्स आए उसे गोलियों से भून डालो. इस बीच आतंकी हमले की सूचना सेना और एनएसजी कमांडो की मिल चुकी थी. आतंकियों से निपटने में माहिर दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने मोर्चा संभाल लिया था. मीडिया के जरिये इस हमले की खबर देश और विदेश में फैल चुकी थी.
सुबह 11.55 बजे, संसद का गेट नंबर 5अपने एक साथी के मारे जाने की खबर बाकी बचे आतंकियों को लग चुकी थी. लिहाजा अब वह और भी हमलावर हो गये थे. आतंकवादी चारों तरफ से घिर चुके थे और सुरक्षाकर्मियों ने पूरी तरह से मुकाबले का तैयार थे.
दोपहर 12.05 बजे, संसद का गेट नंबर 9
अब सिर्फ तीन आतंकी बचे थे और उन्हें यह पता था कि वह संसद भवन से जिंदा वापस नहीं लौटेंगे इसलिये उन्होंने संसद के अंदर घुसने की एक आखिरी कोशिश की. इस कोशिश के तहत वह गोलियां बरसाते हुए संसद भवन के गेट नंबर 9 की तरफ भागे. मगर मुस्तैद जवानों ने गेट नंबर 9 के पहले ही उन्हें घेर लिया.
दोपहर 12.10 बजे, संसद का गेट नंबर 9
इस समय तक पूरा ऑपरेशन गेट नंबर 9 पर सिमट चुका था. बीच-बीच में आतंकी सुरक्षाकर्मियों पर हथगोले भी फेंक रहे थे. आतंकी चारों तरफ से घिर चुके थे और उनके बचने की कोई उम्मीद नहीं थी. बस क्या था थोड़ी देर में ही तीनों आतंकी एक-एक करके मारे जा चुके थे.
इस समय तक पूरा ऑपरेशन गेट नंबर 9 पर सिमट चुका था. बीच-बीच में आतंकी सुरक्षाकर्मियों पर हथगोले भी फेंक रहे थे. आतंकी चारों तरफ से घिर चुके थे और उनके बचने की कोई उम्मीद नहीं थी. बस क्या था थोड़ी देर में ही तीनों आतंकी एक-एक करके मारे जा चुके थे.
45 मिनट चला अभियान
यह पूरा अभियान 45 मिनट चला था मगर उसके बाद भी 5 घंटे तक संसद भवन से रुक-रुक कर गोलियां चलने की आवाज आ रही थी. सेना, बम निरोधक दस्ता और एनएसजी ने संसद को चारों तरफ से घेर लिया था मगर संसद अब भी सुरक्षित नहीं था क्योंकि जगह जगह ग्रेनेड गिरे हुए थे और वह थोड़ी थोडी देर में ब्लास्ट कर रहे थे. थोड़े ही समय में बम निरोधक दस्ते ने बम को नाकाम कर दिया था, संसद अब पूरी तरह सुरक्षित था.
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