जानिए क्यों किया गया जयललिता का दोबारा अंतिम संस्कार !
तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं जयललिता को 'मोक्ष' दिलाने के इरादे से उनके परिवारीजनों ने दोबारा अंतिम संस्कार की रस्म अदायगी की. पार्टी ने निधन के बाद दफना दिया था. कहा जा रहा है कि यह सब केवल राजनीतिक विरासत पाने और संपत्ति के लिए हो रहा है.
रिश्तेदारों ने मंगलवार को श्रीरंगपटना में कावेरी नदी के किनारे उनका हिंदू रीति-रिवाज से अंतिम संस्कार किया। मुख्य पुजारी रंगनाथ लंगर ने दाह संस्कार की रस्में पूरी करवाईं. संस्कार में जया के शव की जगह एक गुड़िया को उनकी प्रतिकृति मानते हुए रखा गया. उन्होंने कहा, 'इस संस्कार से जया को मोक्ष की प्राप्ति होगी. संस्कार से जुड़े कुछ और कर्म अभी शेष हैं, जो अगले पांच दिन तक पूरे किए जाएंगे.'
जयललिता के सौतेले भाई वरदराजू मुख्य तौर पर इन रस्मों में शामिल रहे. वे बोले, 'पार्टी को जयललिता की मान्यताओं का सम्मान करना चाहिए था। उन्होंने सवाल किया कि क्या मेरी बहन नास्तिक थीं? क्या वह हिंदू त्योहारों और मान्यताओं को नहीं मानती थीं? क्यों उनकी पार्टी ने उन्हें दफनाने का निश्चय किया? उनके अंतिम संस्कार से हम लोगों को दूर क्यों रखा गया?' जयललिता के मैसूर और मेलूकोटे वाले भतीजों ने भी रस्मों में हिस्सा लेकर दुख व्यक्त किया.
उल्लेखनीय है कि किसी रिश्तेदार के बजाय जयललिता की करीबी दोस्त शशिकला ने उनके अंतिम संस्कार की आखिरी रस्में पूरी कीं थीं. ऐसा कर के शशिकला ने संभवत: यह संदेश देने का प्रयास किया था कि जयललिता की राजनीतिक विरासत पर उनका अधिकार है.
जयललिता के करीबी लोगों के मुताबिक, 'अम्मा' किसी जाति और धार्मिक पहचान से परे थीं, इसलिए पेरियार, अन्ना दुरई और एमजीआर जैसे ज्यादातर बड़े द्रविड़ नेताओं की तरह उनके पार्थिव शरीर को भी दफनाए जाने का फैसला किया गया. बड़े द्रविड़ नेताओं को दफनाए जाने की एक वजह यह भी थी कि वे घोषित तौर पर नास्तिक थे. नास्तिकता द्रविड़ आंदोलन की एक अहम पहचान थी, जिसने ब्राह्मणवाद को खारिज किया. द्रविड़ नेता सैद्धांतिक रूप से ईश्वर और अन्य प्रतीकों में यकीन नहीं रखते. इस तरह द्रविड़ आंदोलन के बड़े नेताओं को दफनाए जाने की परंपरा को जयललिता ने आगे बढ़ाया.
इसे सियासी वजह भी माना गया. दफनाए जाने के बाद नेता अपने समर्थकों के बीच एक स्मारक के तौर पर हमेशा मौजूद रहते हैं. सियासी नजरिए से देखें तो जयललिता की समाधि एक राजनीतिक प्रतीक बन जाएगी. उनके जन्मदिवस, पुण्यतिथि और पार्टी की स्थापना दिवस के मौके पर समर्थक उनके समाधि स्थल पर जाया करेंगे. ऐसे में उनकी छवि के साथ जुड़े रहने से पार्टी को राजनीतिक फायदा भी होगा.
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