आप भी जानिए अभिनेता ओमपुरी के बारें में अनकही, अनसुनी कुछ बातें

दुनिया से विदा हो गया ओमपुरी नाम का यह फ़िल्मी सितारा :फोटो साभार

बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता ओम पुरी के निधन के बाद उनके चाहने वाले उन्हें अपने-अपने तरीके से याद कर रहे हैं. पूरा बालीवुड ट्विटर पर उमड़ पड़ा है. पर, कुछ ऐसे लोग भी हैं जो उन्हें अलग तरीके से याद कर रहे हैं. उनकी अनकही, अनसुनी कहानियां भी सामने आ रही हैं.

ओमपुरी का शुक्रवार सुबह मुंबई में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. अपने दमदार अभिनय और संवाद अदायगी के लिए जाने जाते थे. ओमपुरी ने लगभग तीन दशक से दर्शकों को अपना दीवाना बनाया हुआ था. लेकिन कम लोगों को पता होगा कि उन्हें अपनी पहली नौकरी में सिर्फ 5 रुपये मिलते थे. सात साल की उम्र में चाय की दुकान में काम करने से लेकर भारतीय सिनेमा में मशहूर कलाकार के दर्जे तक पहुंचने वाले ओमपुरी की यात्रा बेहद कठिन परिस्थितियों से भरी रही है.
सन 1950 में पंजाब के अम्बाला में जन्मे इस महान कलाकार का शुरुआती जीवन अत्यंत गरीबी में बीता और उनके पिता को दो जून की रोटी कमाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ती थी. ओम पुरी की पूर्व पत्नी नंदिता सी पुरी द्वारा लिखी गई किताब ‘अनलाइकली हीरो:ओमपुरी’ में कहा गया है कि टेकचंद (ओमपुरी के पिता) बहुत ही तुनकमिजाज और गुस्सैल स्वभाव के थे और लगभग हर छह महीने में उनकी नौकरी चली जाती थी. उन्हें नई नौकरी ढूंढ़ने में दो महीने लगते थे और फिर छह महीने बाद वह नौकरी भी चली जाती. वे गरीबी के दिन थे जब परिवार को अस्तित्व बनाए रखने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती.

रेलवे स्टोर में चोरी के आरोप में पिता के गिरफ्तार होने के बाद ओमपुरी एक चाय की दुकान में हेल्पर के रूप में काम करने लगे. ओमपुरी और उनके भाई वेद द्वारा कुछ धन जुटाने के लिए छोटा मोटा काम शुरू करने से पहले उनका परिवार बहुत दिनों तक पड़ोसियों के रहमो करम पर जीवित रहा. ओम पुरी ने खुद एक इंटरव्यू में बताया था कि 7 साल की उम्र में वह चाय की दुकान पर ग्लास धोते थे. उस दौरान उन्हें इस काम के लिए 5 रुपये प्रति माह मिला करते थे. उन्होंने यह भी बताया कि उनके पिता को एक झूठे केस में तीन महीने जेल काटनी पड़ी थी.

ओमपुरी का रुझान शुरू से ही रंगमंच की ओर था. 1970 के दशक में वे पंजाब कला मंच नामक नाट्य संस्था से जुड़ गएल. गभग तीन वर्ष तक पंजाब कला मंच से जुड़े रहने के बाद उन्होंने दिल्ली में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में दाखिला ले लिया. इसके बाद अभिनेता बनने का सपना लेकर उन्होंने पुणे फिल्म संस्थान में दाखिला ले लिया.

1976 में पुणे फिल्म संस्थान से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद ओमपुरी ने लगभग डेढ़ वर्ष तक एक स्टूडियो में अभिनय की शिक्षा भी दी. बाद में ओमपुरी ने अपने निजी थिएटर ग्रुप "मजमा" की स्थापना की. ओमपुरी ने अपने सिने करियर की शुरुआत विजय तेंदुलकर के मराठी नाटक पर बनी फिल्म घासीराम कोतवाल के साथ की थी. ओम पुरी ने एक बार दावा किया था कि उन्हें अपने बेहतरीन काम के लिए मूंगफली दी गई थी.

साल 1980 में प्रदर्शित फिल्म 'आक्रोश' ओम पुरी के सिने करियर की पहली हिट फिल्म साबित हुई. गोविन्द निहलानी निर्देशित इस फिल्म में ओम पुरी ने एक ऐसे व्यक्ति का किरदार निभाया जिस पर पत्नी की हत्या का आरोप लगाया जाता है. फिल्म में अपने दमदार अभिनय के लिये ओमपुरी सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए.

1980 के दशक में अमरीश पुरी, नसीरुद्दीन शाह, शबाना आजमी और स्मिता पाटिल के साथ ओम पुरी उन मुख्य एक्टर्स में शुमार हो गए थे जिन्होंने उस समय की कही जाने वाली आर्ट फिल्मों में काम किया था. ओम पुरी को फिल्म आरोहण (1982) और अर्ध सत्य (1983) के लिए बेस्ट एक्टर का नेशनल अवार्ड भी मिला था.

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