एक्शन, इमोशन, ड्रामा से भरपूर है ये नई फिल्म, देखी क्या आपने
समाजवादी पार्टी चल रही उठापटक पर नजर डालें तो साफ हो जाता है कि यह पूरी कहानी फ़िल्मी है. इसके डायरेक्टर, प्रोड्यूसर राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी मुलायम सिंह यादव ही हैं. बाकी सभी किरदार केवल अपनी भूमिका अदा करते हुए देखे जाते हैं. खलनायक फिल्म में भी प्रायः मरता है. यहाँ भी मरेगा.
फिल्म अपनी पटकथा के मुताबिक चल रही है और यह हैप्पी मोड में ही ख़त्म होती हुई दिखती है. जल्द ही तस्वीर और साफ हो जाएगी. पटकथा मैंने पढ़ी नहीं है लेकिन फिल्म देखने के तजुर्बे के आधार पर कह पा रहा हूँ कि अखिलेश ही पार्टी के सर्वेसर्वा होंगे. मुलायम सिंह खुद मार्गदर्शन करते रहेंगे.
ताजा सीन में सीएम अखिलेश यादव मंगलवार को अपने पिता मुलायम सिंह यादव से लखनऊ में मिले तो उनके प्रतिनिधि के तौर पर रामगोपाल यादव ने चुनाव आयोग की शरण ली. इससे पूर्व साल के पहले दिन एक राष्ट्रीय अधिवेशन के बीच अखिलेश को कार्यकर्ताओं ने अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया. कार्यकर्ताओं ने समाजवादी पार्टी के दफ्तर पर कब्ज़ा भी कर लिया. प्रदेश अध्यक्ष की प्लेट उखाड़ कर फेंक दी और नए प्रदेश अध्यक्ष की तैनाती भी हो गई. उसके पहले मुलायम सिंह सुबह 10.30 बजे विधायकों, पदाधिकारियों की बैठक बुलाते हैं लेकिन अखिलेश ने वही बैठक 9 बजे अपने सरकारी आवास पर बुला ली. वहां रेला लग गया विधायकों, मंत्रियों का. मुलायम के यहाँ सन्नाटा रहा.
पटकथा थोड़ी और आगे बढ़ती है और भरी बैठक से मंत्री आजम खान साहब अखिलेश को उठाकर ले जाते हैं और पिता मुलायम से मिलवाते हैं. घंटे भर बाद सुलह की खबरें फिजा में तैरती हैं. शिवपाल ट्वीट कर सब कुछ सामान्य होने की जानकारी देते हैं. फटाफट अखिलेश, रामगोपाल का निष्कासन रद हो जाता है. वेबसाइट से सब हटा दिया जाता है.
दर्शकों को याद होगा कि उसके पहले मुलायम सिंह ने अलग से प्रत्याशी सूची जारी करने के आरोप में अखिलेश को पहले कारण बताओ नोटिस दिया. रामगोपाल को राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाने के लिए भी नोटिस दिया. फिर जवाब लिए/मिले बिना कुछ ही देर बाद दोनों को मुलायम सिंह ने छह साल के लिए पार्टी से निकाल दिया.
सोमवार सुबह शिवपाल और दोपहर में मुलायम सिंह दिल्ली पहुँच जाते हैं. चुनाव आयोग के सामने चुनाव चिन्ह साइकिल को लेकर दावा करते हैं.
मंगलवार को अखिलेश की ओर से यही दावेदारी करने के लिए रामगोपाल दिल्ली पहुँचते हैं. फिर नुमाया होते हैं मंत्री आजम खान साहब. कहते हैं अभी भी समझौते की राहें खुली हुई हैं और कुछ देर बाद पता चलता है कि मुख्मंत्री अखिलेश यादव अपने पिता से मिलने उनके आवास पहुँच जाते हैं. मुलायम सिंह सुबह दिल्ली में थे. उनकी अखिलेश से फोन पर भी बात हुई थी. बाद में कहा कि अब लखनऊ पहुंचकर ही बात होगी।
अभी तक की फिल्म देखने के बाद मैं पूरी तरह आश्वस्त हूँ कि अखिलेश ही समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो होंगे. चुनाव आयोग में लगी दरख्वास्तें भी वापस ली जाएँगी. मुलायम सिंह स्वास्थ्य कारणों से संरक्षक की भूमिका में रहेंगे. निश्चित तौर पर जिन लोगों को अखिलेश नहीं चाहते, वे पार्टी में नहीं रहेंगे. मुलायम सिंह यादव के बारे में किसी को शक नहीं है, कि वे मंझे हुए राजनीतिज्ञ हैं. इसलिए वे वह सब कुछ करेंगे, जिससे अखिलेश को पार्टी की बागडोर सौंपी जा सके और दूर-दूर तक कोई उन्हें छू न सके.
दर्शकों को याद होगा कि जब से अखिलेश ने सत्ता संभाली है, तब से अब तक वे सार्वजनिक मंचों से केवल और केवल अपने मुलायम पिता की फटकार ही सुनते रहे हैं. उनकी वजह से विपक्ष कभी हमलावर नहीं हो पाया. जब पिछले दिनों बवाल हुआ तब भी मुलायम ने अखिलेश को जी भरकर कोसा और शिवपाल को जी भरकर सराहा. अगर यह कहानी ठीक से न लिखी गई होती तो ऐसा कौन सा कारण था कि पार्टी कार्यालय पर कब्जे के बाद असली समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष, राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कोई मुकदमा तक नहीं लिखवाया. सब कुछ सामान्य तरीके से हो गया. मुलायम इतने कमजोर न तो थे और न ही हैं, अभी भी वे एक बेहतरीन संगठन संचालक हैं, इसीलिए देश भर के कद्दावर नेता उनकी इज्जत करते हैं.
लेकिन मैंने तो उतना ही कहा/लिखा, फिल्म जितना देखा, सुना, समझा. आगे की फिल्म समयाभाव में मैं देख नहीं पाया. आगे-आगे देखिए क्या होता है. मैं महाभारत का संजय नहीं हूँ. सपा सुप्रीमो मुलायम, अखिलेश का सहयोगी भी नहीं. इसलिए आगे की फिल्म जब दिखेगी, तभी मैं बात करूँगा. तब तक आप भी देखो, आगे-आगे होता क्या है?
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