नितीश की सफल कहानी दोहराने का प्रयास करने को तैयार अखिलेश !

क्या बिहार की कहानी दोहरा पाएंगे अखिलेश: फोटो साभार

चुनावी मुहाने पर खड़े यूपी की तस्वीर अब धीरे-धीरे साफ होने लगी है. समाजवादी पार्टी का झगड़ा निपटने के बाद अब जो सूरत बनती हुई दिख रही है, उससे भाजपा और बसपा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. अब यह भी लगभग तय हो गया है कि भाजपा मोदी तो बसपा मायावती और तीसरा गुट अखिलेश यादव के नाम पर चुनाव लड़ेगा. ऐसे में लड़ाई के रोचक होने की उम्मीद ज्यादा है. कई आकलन टूट सकते हैं. कोई भी नया आंकलन सामने आ सकता है. 
हालाँकि, अभी मुलायम सिंह यादव की तस्वीर आम आदमी की नजर में साफ होना बाकी है. वे अखिलेश के पक्ष में चुनाव प्रचार करेंगे या फिर अलग से अपने प्रत्याशी उतारेंगे. जानकारों की मानें तो पूरा का पूरा खेल ही उन्होंने तय किया है, ऐसे में ज्यादा उम्मीद इस बात की है कि वे अखिलेश के पक्ष में चुनाव प्रचार कर सकते हैं. अपने समर्थकों को भी वे बेटे के पक्ष में जुटने को कह सकते हैं. इस बात की आशंका कतई नहीं है कि वे अलग से प्रत्याशी उतारेंगे. हाँ, उनकी लिस्ट के कुछ प्रत्याशियों के टिकट जरुर कट सकते हैं. क्योंकि कांग्रेस, लोकदल और अन्य छोटे दलों से समझौते की स्थिति में सीटों की क़ुरबानी तो देनी ही होगी. 
उधर, लखनऊ में मंगलवार को अखिलेश ने कहा कि गठबंधन का ऐलान एक-दो दिन में हो जाएगा. कांग्रेस के प्रवक्ता मीम अफजल ने भी कहा कि यूपी के हित के लिए कांग्रेस सपा से गठबंधन को राजी है. अखिलेश यादव ने कहा कि वे दिल्ली नहीं जा रहे हैं और जल्द ही लखनऊ में गठबंधन का ऐलान होगा. इसमें एक-दो दिन का समय लग सकता है. 
यूपी के सीएम अखिलेश यादव ने कहा कि नेताजी मेरे पिता हैं और मैं इसे बदल नहीं सकता. अखिलेश ने कहा कि ये लड़ाई मेरे लिए जरूरी थी लेकिन ये मेरे लिए खुशी की बात नहीं है. वो मेरे पिता हैं. हमारी-उनकी लिस्ट 90 फीसदी कॉमन थी. चुनाव में समय बहुत कम है. हमें लोगों के बीच जाना है. इससे पहले, सोमवार को चुनाव आयोग का फैसला आने के बाद अखिलेश यादव अपने पिता मुलायम सिंह से मिले और मीटिंग की तस्वीर ट्वीट करते हुए कहा कि साइकिल और पार्टी आगे बढ़ती रहेगी.
पिछले कई हफ्तों से सपा में कब्जे के लिए पिता-पुत्र की लड़ाई में आखिरकार सोमवार को चुनाव आयोग का फैसला आ गया. आयोग ने सपा को अखिलेश के हाथों में सौंप दिया. फैसला लेने से पहले चुनाव आयोग पूरे दिन इस मुद्दे पर मंथन करता रहा. चुनाव आयोग ने फैसला लेने से पहले 'साइकिल' फ्रीज करने के कानूनी पहलुओं पर भी विचार किया. लेकिन, साइकिल को फ्रीज करने में सबसे बड़ा कानूनी पेंच यह था कि समाजवादी पार्टी में टूट नहीं हुई था.
अखिलेश के हाथ में सपा की कमान आते ही अब यूपी में महागठबंधन की संभावनाएं भी प्रबल हो गई हैं. तमाम दलों ने बीजेपी के खिलाफ अखिलेश की अगुवाई में चुनाव में उतरने का ऐलान किया है. कांग्रेस के साथ गठबंधन की बात पहले से ही चर्चा में थी. सूत्रों के अनुसार, बीजेपी को रोकने के लिए कांग्रेस, सपा, जेडीयू, आरजेडी समेत यूपी की कई छोटी पार्टियों को साथ लेकर महागठबंधन बनाने पर भी करीब-करीब आम सहमति बन गई है. हालांकि अभी तक इसकी औपचारिक ऐलान नहीं किया गया है.
पार्टियों के बीच सहमति के मुताबिक उत्तर प्रदेश के कुल 403 विधानसभा सीटों में से समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस को 103 सीटें दी हैं, जिस पर कांग्रेस ने भी लगभग हामी भर दी है. इससे पहले ये फॉर्मूला बिहार में एनडीए ने विधानसभा चुनाव के दौरान अपनाया था. वहीं आरएलडी को 20 सीटें सपा ने दी है लेकिन अजीत सिंह 28 सीटों की मांग कर रहे हैं और बातचीत जारी है.
कांग्रेस दबदबे वाले इलाके अमेठी, रायबरेली और सुल्तानपुर में सपा 11 सीटें कांग्रेस को देने के लिए राजी हो गई, क्योंकि यहां गांधी परिवार की पकड़ है. महागठबंधन में कांग्रेस, सपा, आरएलडी, जेडीयू, आरजेडी, संजय निषाद की निषाद पार्टी, महान दल, पीस पार्टी और अपना दल (कृष्ण पटेल की अगुवाई वाली पार्टी) शामिल हैं.
दरअसल, बीजेपी को रोकने के लिए अखिलेश यादव ने ये महागठबंधन का दांव चला है. खबरों की मानें तो खुद अखिलेश की अगुवाई वाली समाजवादी पार्टी 403 सीटों में से 275 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. बाकी 128 सीटों पर कांग्रेस, आएलडी समेत बाकी महागठबंधन के घटक दल अपने-अपने उम्मीदवार उतारेंगे.



Comments

Popular posts from this blog

खतरे में ढेंका, चकिया, जांता, ओखरी

सावधान! कहीं आपका बच्चा तो गुमशुम नहीं रहता?

गूलर की पुकार-कोई मेरी बात राजा तक पहुंचा दो