अभी भी जेल में ही रहेंगे आसाराम बापू, फ्राड का मुकदमा भी दर्ज होगा

आसाराम बापू: फ़ाइल फोटो: साभार

नाबालिग से रेप के आरोप में पिछले तीन साल से भी अधिक समय से जेल में बंद आसाराम बापू को सुप्रीम कोर्ट ने बहुत तेज झटका दिया है. अदालत ने मेडिकल आधार पर लगाई गई उनकी अंतरिम ज़मानत याचिका और नियमित ज़मानत याचिका खारिज करते हुए उनके खिलाफ जेल सुपरिंटेंडेंट का फर्ज़ी खत लगाने के मामले में एफआईआर दर्ज कराने का भी आदेश दिया. 
सर्वोच्च अदालत ने आसाराम बापू के रवैये पर नाराज़गी जताते हुए कहा कि वह केस के ट्रायल में जानबूझकर अड़ंगा डाल रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को आसाराम बापू की नियमित ज़मानत याचिका खारिज करते हुए उनके रवैये पर नाराज़गी जताई और कहा कि यह बिल्कुल साफ है कि वह केस की सुनवाई में जानबूझकर अड़ंगे डाल रहे हैं. कोर्ट के मुताबिक केस के जांच अधिकारी को क्रॉस एग्ज़ामिनेशन के लिए 104 बार ट्रायल कोर्ट में बुलाया गया, और ट्रायल के दौरान कई गवाहों पर भी हमले हुए, जिनमें दो की जान चली गई, सो, ऐसे हालात में आसाराम बापू को ज़मानत नहीं दी जा सकती.
कोर्ट ने ज़मानत हासिल करने के लिए जेल सुपरिंटेंडेंट का फर्जी खत दाखिल करने पर सख्त रुख अपनाते हुए राजस्थान सरकार को आसाराम बापू के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर जांच करने के आदेश दिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ज़मानत के लिए सुप्रीम कोर्ट में काल्पनिक पत्र दाखिल करना गंभीर अपराध है, और इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता और न ही बिना शर्त माफी मांग लेने के आधार पर मामले को खत्म किया जा सकता है.
कोर्ट ने कहा कि जांच अधिकारी एफआईआर दर्ज कर जल्द से जल्द जांच पूरी करें और अपराध साबित होने पर कानूनी कारवाई करें. कोर्ट ने फर्जी खत देने के लिए आसाराम बापू पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया. दरअसल, आसाराम बापू की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में 8 नवंबर, 2016 को जोधपुर सेंट्रल जेल के सुपरिंटेंडेंट का पत्र लगाया गया था, जिसमें लिखा था कि आसाराम की तबियत खराब है. बाद में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि यह खत फर्ज़ी है. इसके बाद आसाराम ने भी माना था कि खत सही नहीं है और कोर्ट से बिना शर्त माफी भी मांगी थी.
इससे पहले, सोमवार को ही मेडिकल ग्राउंड पर दाखिल की गई आसाराम बापू की अंतरिम ज़मानत अर्ज़ी को भी कोर्ट ने खारिज कर दिया था, और कहा था कि जांच रिपोर्ट से साफ है कि उनकी मेडिकल हालत ऐसी नहीं है कि उन्हें ज़मानत दिए जाने की ज़रूरत हो. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आसाराम ने खुद ही बिना कोई कारण बताए MRI कराने से इंकार कर दिया है, जिससे साफ है कि उनकी हालत ज़्यादा खराब नहीं है, सो, इन मेडिकल रिपोर्टों को आधार बनाकर ज़मानत नहीं दी जा सकती.
इस मामले में सरकार की ओर से भी कहा गया था कि आसाराम को इस तरह जमानत नहीं दी जा सकती, क्योंकि पहले भी उन्हें जोधपुर के सबसे बड़े अस्पताल में उपचार के लिए भेजा गया था, लेकिन आसाराम ने खुद ही कई टेस्ट कराने से इंकार कर दिया था.
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले से जुड़ी पिछली सुनवाई में जस्टिस आरके अग्रवाल ने सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था, और अब मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस की बेंच कर रही है. इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने एम्स के बोर्ड से 10 दिन में जांच रिपोर्ट मांगी थी और एम्स ने अपनी रिपोर्ट दाखिल कर दी थी. आसाराम पिछले तीन साल से जेल में बंद हैं और पहले भी मेडिकल आधार पर जमानत की मांग कर चुके हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिल पाई थी.

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