सपा का चुनावी दंगल: बाप जीते या बेटा, कार्यकर्ताओं का हारना तय


चुनावी मोड़ पर खड़े उत्तर प्रदेश में चल रहे सपा की सियासी लड़ाई में जीत पिता की हो या पुत्र की, हारेंगे कार्यकर्ता. क्योंकि जो भी झगड़ा बीते कई महीनों से सड़कों पर चल रहा है, इसे घर के अंदर ही निपट जाना चाहिए था.
दुनिया का दस्तूर है. इतिहास गवाह है कि जब भी परिवार का झगड़ा सड़क पर आया, दूसरों ने फायदा उठाया. यहाँ भी वही होता दिखाई दे रहा है.  जानकार अभी भी मानकर चल रहे हैं कि सब कुछ ठीक हो जाएगा. लेकिन जो नुकसान सपा उठा चुकी है, उसकी भरपाई कैसे होगी? मुलायम सिंह के कहने से बात नहीं बनेगी कि पार्टी टूटने नहीं देंगे.
अगर यह पार्टी टूटेगी, तो इसके लिए वे भी जिम्मेदार होंगे. शायद सबसे ज्यादा जिम्मेदार. वे चाहते तो बेटे को पार्टी सौंपते, संरक्षक की भूमिका में सम्मान से रहते. वैसे भी उन्हें मानना पड़ेगा कि अब उम्र हो चली है. अब के मुलायम इतने कठोर नहीं हैं कि एक दिन में 11 सभाएं कर सकें. स्वाभाविक है कि समय के साथ उन्हें भी चलना चाहिए.
मुलायम या अखिलेश ने जो प्रत्याशी घोषित किये हैं, उनमें से कोई भी प्रचार काम मन से नहीं कर पा रहा है. सब कन्फ्यूज हैं. क्योंकि दोनों की सूची में एक बड़ी संख्या ऐसी है, जो दोनों की लिस्ट में है. वैसे जानकार अभी भी मान रहे हैं कि सब कुछ वैसा ही चल रहा है, जैसा मुलायम खुद चाहते हैं. क्योंकि पार्टी में अब वे खुद, शिवपाल और इक्का-दुक्का लोग ही बचे हैं. बाकी पार्टी तो अखिलेश के पास पहले ही जा चुकी है.

अब देखना रोचक होगा कि साइकिल निशान बचता है या नहीं. अगर आयोग इसे जब्त करता है तो फिलहाल फायदे में अखिलेश ही रहने वाले हैं. क्योंकि वे नए उत्साह के साथ अपनी शर्तों पर चुनाव लड़ेंगे. मुलायम के दोनों हाथ में लड्डू है. वे जीतें या बेटा. संभव है कि कुछ ऐसी स्क्रिप्ट उन्होंने लिखी हो. ऐसा होगा तो मुलायम सिंह को केवल शिवपाल के लिए जगह तलाशनी होगी. क्योंकि अखिलेश के जीतने पर तो किसी सूरत में शिवपाल को जगह नहीं मिलेगी. 

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