कासगंज: यहाँ से जिस पार्टी का विधायक, सरकार उसी की
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प्रतीकात्मक फोटो: साभार |
जी हाँ, यूपी कासगंज विधानसभा सीट का सच यह भी है. यहाँ मतदान हो चुका है. यहां की लड़ाई इसी कारण से दिलचस्प है. पिछले चार दशकों में जिस भी पार्टी का उम्मीदवार यहां से जीता, सरकार उसी की बनी.
2007 में कासगंज से बीएसपी की टिकट पर जीते हसरत उल्लाह शेरवानी इस बार समाजवादी पार्टी की साइकिल पर सवार हैं. तब 'हाथी' का ज़ोर चला था और प्रदेश में मायावती की सरकार बनी थी.इनको लगता है कि ये अखिलेश के लिए भी खुशकिस्मत साबित होंगे.
कासगंज के आंकड़े भी इस संयोग को पुख्ता करते हैं. 1974 से अब तक यहां जिस पार्टी की उम्मीदवार जीता, सरकार उसी की बनी. हालाँकि, वर्ष 1996 में ऐसा नहीं हुआ. कल्याण सिंह यहाँ से जीते जरूर और बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी भी बनी लेकिन गठजोड़ की राजनीति के तहत तब एसपी-बीएसपी की सरकार बनी.
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- 1974, 1980, 1985 में कांग्रेस के उम्मीदवार मनपाल सिंह जीते और कांगेस की सरकार बनी.
- 1977 में इमरजेंसी के बाद जनता पार्टी की लहर में नेतराम सिंह जीते.
- 1989 में जनता पार्टी के गोवर्धन सिंह जीते और मुलायम सिंह यादव सीएम बने.
- 1991 में नेतराम सिंह जीते और बीजेपी की सरकार बनी.
- 2002 में एसपी के मनपाल सिंह जीते और पार्टी की सरकार बनी.
- 2007 में बीएसपी से हसरत उल्लाह जीते और मायावती की सरकार बनी.
- 2012 में मनपाल फिर जीते और सपा की सरकार बनी.
सपा की टक्कर में इस बार बीजेपी के देवेन्द्र राजपूत भी हैं और बीएसपी के अजय चतुर्वेदी भी. अजय चतुर्वेदी दावा करते हैं कि 'हम जीतेंगे और बीएसपी की सरकार बनेगी'.
जबकि देवेन्द्र राजपूत का दावा भी जीत का है. 65 हज़ार लोध, 42 हज़ार ब्राह्मण, 40 हज़ार दलित, 38 हज़ार ठाकुर, 36 हज़ार वैश्य और 35 हज़ार मुसलमान मतदाताओं के वोट वाला कासगंज हर पार्टी को जीत की उम्मीद का एक समीकरण देता है.
कासगंज को लेकर दिलचस्पी ऐसी है कि लोग कहते हैं काश इस सीट का नतीजा पहले आ जाता तो 11 मार्च को प्रदेश में किसकी सरकार बनेगी, इसका अंदाज़ा मिल जाता.
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