महाराणा प्रताप और अकबर फिर आमने-सामने, पढ़कर चौंकेंगे आप!

महाराणा प्रताप की प्रतीकात्मक फोटो: साभार
हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप की वीरता और शौर्य के किस्से बच्चे-बच्चे की जुबान पर हैं. मध्यकालीन इतिहास के इस सबसे चर्चित युद्ध में मेवाड़ के राणा महाराणा प्रताप और मानसिंह के नेतृत्व वाली अकबर की विशाल सेना का आमना-सामना हुआ था. 1576 में हुए इस भीषण युद्ध का नतीजा अब यानी 441 साल बाद निकलने जा रहा है. 
सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो राजस्थान सरकार इस युद्ध में महाराणा प्रताप को विजयी घोषित कर देगी. सरकार के इसके पीछे अपने तर्क हैं. जयपुर से भाजपा विधायक मोहनलाल गुप्ता ने सुझाव दिया है कि यूनिवर्सिटी की किताबों में फेरबदल कर ‘हल्दीघाटी के संग्राम’ में अकबर की जगह महाराणा प्रताप को विजेता दिखाया जाए.
महाराणा प्रताप की जीत के दावे इतिहासकार डॉ. चन्द्रशेखर शर्मा के शोध के आधार पर किए गए हैं. यूनिवर्सिटी के इतिहास विभाग के अध्यक्ष के जी शर्मा भी इस मांग से सहमत हैं. उनका कहना है कि उन्होंने खुद इस विषय पर रिसर्च की है और पाया है कि महाराणा प्रताप और अकबर के बीच का युद्ध ड्रॉ रहा था. 
बहरहाल ये मामला सिर्फ मांग तक सीमित नहीं रहा है. यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर राजेश्वर सिंह ने इस प्रस्ताव को हिस्ट्री बोर्ड ऑफ स्टडीज के पास भेज दिया है. बोर्ड जांच करेगा और फिर अकैडमिक काउंसिल को अप्रूवल के लिए भेजेगा. अगर अप्रूवल मिला तो किताबों में बदलाव कर हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर की फौज की बजाय महाराणा प्रताप को विजेता घोषित कर दिया जाएगा. 
वैसे अकबर से बीजेपी की खुन्नस नई नहीं हैं. हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर दिल्ली के अकबर रोड का नाम बदलकर महाराणा प्रताप रोड रखने का सुझाव दे चुके हैं. खुद राजस्थान सरकार भी पिछले साल किताबों में अकबर का द ग्रेट टाइटल छीनकर महाराणा प्रताप को दे चुकी है.
महाराणा प्रताप के शारीरिक सौष्ठव की वजह से उन्हें भारत के सबसे मजबूत लड़ाके का तमगा मिला था. वे 7 फीट 5 इंच लंबे थे और 80 किलोग्राम के भाले के साथ-साथ 208 किलोग्राम की दो तलवारें भी साथ लेकर चलते थे. इसके अलावा वह 72 किलोग्राम का कवच भी पहना करते थे.
महाराणा प्रताप का उनके साम्राज्य का राजा बनना भी सरल नहीं था. उनकी सौतेली मां अकबर के हाथों राजा उदय सिंह की हार के बाद कुंवर जगमाल को राजगद्दी पर बिठाना चाहती थीं. अकबर ने चितौड़ और मेवाड़ किले पर भी कब्जा कर लिया था और राजपूत राजघराने ने उदयपुर में शरण ली थी. उस दौरान लंबी बहस हुईं और महाराणा प्रताप के हाथ में कमान थमा दी गई.
मुगलों से लड़ने के पहले प्रताप को उनकी घरेलू समस्याओं से ही निबटना पड़ा था. उनके राजगद्दी पर बैठने से पहले ही सारे राजपूत राजा मुगलों के समक्ष घुटने टेक चुके थे. अकबर ने भी महाराणा प्रताप से सीधे युद्ध में उलझने से पहले 6 संधि वार्ताओं का प्रस्ताव भेजा था.
पांचवी संधि प्रस्ताव के बाद महाराणा ने अपने पुत्र अमर सिंह को अकबर के दरबार में भेजा था. वे खुद वहां नहीं गए थे और इसी बात को अकबर ने नाफरमानी मानते हुए प्रताप पर हमला कर दिया.
महाराणा प्रताप के युद्ध कौशल के लिए 1576 के हल्दीघाटी युद्ध को हमेशा याद किया जाता है. उनके पास मुगलों की तुलना में आधे सिपाही थे और उनके पास मुगलों की तुलना में आधुनिक हथियार भी नहीं थे लेकिन वे डटे रहे और मुगलों के दांत खट्टे कर दिए.
हल्दीघाटी की जंग 18 जून साल 1576 में चार घंटों के लिए चली. मुगलों की हालत इस जंग में पतली हो गई थी तभी उन्हें शक्ति सिंह के रूप में महाराणा का भेदिया भाई मिल गया. शक्ति सिंह ने मुगलों के समक्ष महाराणा की सारी सैन्य रणनीति और खुफिया रास्तों का खुलासा कर दिया.
इस पूरे युद्ध में राजपूतों की सेना मुगलों पर बीस पड़ रही थी और उनकी रणनीति सफल हो रही थी. महाराणा ने मुगलों के सेनापति मान सिंह (हाथी पर सवार) के ऊपर अपने घोड़े से हमला किया. इस हमले में हाथी से टकराने की वजह से उन्हें और चेतक को गहरी चोटें आईं. उनका घोड़ा चेतक युद्ध में उनका अहम साथी था. 
महाराणा बेहोशी की मुद्रा में चले गए. प्रताप के सेनापति मान सिंह झाला ने इस स्थिति से उन्हें निकालने के लिए अपने कपड़ों से उनके कपड़े बदल दिए ताकि मुगलों को चकमा दिया जा सके. 
चेतक महाराणा को लेकर वहां से सरपट दौड़ा लेकिन वह बुरी तरह घायल था. उसने एक अंतिम और ऐतिहासिक छलांग लगाई और महाराणा को लेकर हल्दीघाटी दर्रा पार कर गया. हालांकि, चेतक को इतनी चोटें आईं थीं कि वह नहीं बच सका.
इस युद्ध के बाद मेवाड़, चित्तौड़, गोगुंडा, कुंभलगढ़ और उदयपुर पर मुगलों का कब्जा हो गया. सारे राजपूत राजा मुगलों के अधीन हो गए और महाराणा को दर-बदर भटकने के लिए छोड़ दिया गया.
महाराणा प्रताप हल्दीघाटी के युद्ध में पीछे जरूर हटे थे लेकिन उन्होंने मुगलों के सामने घुटने नहीं टेके. वे फिर से अपनी शक्ति जुटाने लगे. अगले तीन सालों में उन्होंने बामा शाह द्वारा दिए गए धन से 40 हजार सैनिकों की सेना तैयार की और मुगलों से अपना अधिकांश साम्राज्य फिर से छीन लिया.
महाराणा प्रताप के अदम्य साहस, जिजीविषा और कभी हार न मानने वाले रवैये की वजह से उन्हें भारतीय इतिहास में सम्मानपूर्वक देखा और पढ़ा जाता है. आज भी महाराणा प्रताप का जिक्र समस्त भारतीयों के लिए गर्व का विषय है.

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