आरक्षण का खेल उन्हें खेलने दीजिए, आप तो अव्वल की तैयारी करिए

दिनेश पाठक

पिछले सप्ताह एक कार्यक्रम में कुछ ऐसे बच्चों से मुलाकात हुई, जिन्होंनें इंजीनियरिंग की परीक्षा दी और उन्हें मनमुताबिक रैंक नहीं मिली| परिणाम स्वरुप कॉलेज भी नहीं मिले मन के अनुरूप| किसी को तकलीफ इस बात की है कि उन्हें आरक्षण ने मारा तो किसी के पास बहाना कि इम्तहान के दिन ही उनकी तबीयत ख़राब हो गई|
मैंने इन सभी स्टूडेंट्स को एक ही बात कही, कि आपकी तैयारी में कोई कमी रह गई थी| न तो समय को कोसें और न ही संक्षिप्त सी बीमारी को| इसे समझने के लिए कुछ और बातें हुईं| 
मसलन, आरक्षण| जब आप ने फॉर्म भरा तब भी आपको पता था कि आरक्षण लागू है अपने देश और प्रदेश में| जब पता है तो निश्चित आपको तैयारी ऐसी करनी होगी, जिससे आपका परिणाम आरक्षण की भेंट न चढ़े| आरक्षण है तो है| उसे सहज स्वीकार करना होगा| तभी आप कुछ ठोस कर पाएंगे| अन्यथा करते रहिए खुद से गिला| ध्यान रखिए, काम करने के सैकड़ों तरीके हैं और न कर पाने के हजार बहाने| ये जो नौजवान परीक्षा के दिन बीमार होने की बात कह रहा था, वह आरक्षण का हक़दार है| फिलाक्त उसे जीवन भर आरक्षण मिलेगा| उसे रोकने की स्थिति किसी की नहीं है| जरा सोचिए, अगर उसकी तैयारी ठीक रही होती तो मामूली बुखार के बावजूद क्या आरक्षित श्रेणी में भी उसे मनचाहा कॉलेज नहीं मिलता, मेरा मानना है कि जरुर मिलता|
किसी भी स्टूडेंट को चाहे वह आरक्षित वर्ग का हो या फिर अनारक्षित, तैयारी अव्वल की ही करनी चाहिए| यह तय है कि तैयारी एक दिन में, एक महीने में नहीं होती| समयबद्ध तरीके से हमें तैयारी करनी होती है| अगर आप ऐसा करते हैं तो कोई कान नहीं कि आपको मंशा के अनुरूप कॉलेज नहीं मिलेगा| जरुर मिलेगा| ऐसा मेरा भरोसा है और यही भरोसा आपका भी होना चाहिए| एक कहानी यहाँ समीचीन लगती है| शायद आपकी मदद भी कर पाएगी यह कहानी| जंगला का राजा शेर होता है| यह हम सब जानते हैं लेकिन जंगल में धेर्ण जानवर रहते हैं| उन्हीं में से एक है हिरन जो तेज भागता भी है| कुलांचे भी भरता है| यह देखना हम सबको अच्छा भी लगता है| लेकिन दोनों से सन्देश लेने का प्रयास करिए तो वह यह है कि दौड़ दोनों लगाते हैं| हिरन खुद को शेर से बचाने के लिए और शेर अपना शिकार करने के लिए| ठीक वही स्थिति हमारे स्टूडेंट्स की है| उन्हें तैयारी करनी ही होगी| वह भी पूरे मनोयोग से| अगर आप आधे-अधूरे मन से तैयारी करते हैं तो आपको लक्ष्य से हर हाल में समझौता करना होगा|
युवाओं के प्रेरणास्रोत डॉ एपीजे अब्दुला कलाम साहब कहते रहे हैं कि छोटा लक्ष्य रखना जुर्म है| क्यों न हम सब अव्वल आने के लिए लड़ें| तैयारी इस बात की हो कि हमें ही एवरेस्ट छूना है यानी नंबर एक आना है| अगर हम ऐसा सोचते हैं, उसी के अनुरूप तैयारी करते हैं तो कहीं कहीं बात बन जाती है| जिन्हें आरक्षण नहीं मिलता, बात उनकी भी बनती है और जिन्हें मिलता है, उनकी शर्तिया बन जाती है| यह तो हम सब जानते हैं कि नंबर एक कोई एक ही आएगा लेकिन उतना ही बड़ा सच यह भी है कि अगर आप नंबर दो आये हो या आपकी 10 वीं रैंक है तो भी आपको मनचाहा कॉलेज मिलेगा| चाहे आप आरक्षित श्रेणी के स्टूडेंट हैं या अनारक्षित श्रेणी के| मैंने वहाँ भी कहा था और यहाँ भी कह रहा हूँ, आरक्षण का खेल राजनेताओं को ही खेलने दीजिए| आप तो केवल और केवल अपने लक्ष्य पर ध्यान दीजिए| लक्ष्य बनाकर समयबद्ध तैयारी करिए| कामयाबी आपके दरवाजे दस्तक देगी| मेरी गारंटी है कि आपको निराश नहीं होना पड़ेगा| मेरी शुभकामनाएँ|

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