प्यार और तकरार के बीच से निकलता है ख़ुदकुशी से बचने का रास्ता

दिनेश पाठक

यूपी कैडर के आईपीएस अधिकारी रहे हैं सुरेन्द्र कुमार दास| 2014 बैच का यह नौजवान इन दिनों कानपुर में एसपी के पद पर तैनात था लेकिन अचानक एक दिन कोई जहरीला पदार्थ खा लिया और अस्पताल पहुँच गए| तीन-चार दिन इलाज के बाद उन्होंने दुनिया छोड़ दी और हमेशा के लिए अनंत यात्रा पर निकल पड़े|
बलिया निवासी सुरेन्द्र दास की पत्नी कानपुर में ही डॉक्टर हैं| वे इन दिनों मास्टर्स कर रही हैं| सामान्य परिवार से आते हैं सुरेन्द्र| स्वाभाविक है पढने-लिखने में तेज थे तभी तो भारतीय पुलिस सेवा से जुड़ सके| बड़ी मेहनत और अरमानों से पाई होगी यह कामयाबी सुरेन्द्र ने लेकिन अब अचानक सब कुछ ख़त्म हो गया| जरा, सोचिए कि इस परिवार पर अब क्या गुजर रही होगी| कितने सपने संजो लिए होंगे परिवार के लोगों और रिश्तेदारों ने लेकिन आज सब ख़त्म| यह भी बहुत सामान्य बात है| जब घर का कोई नौजवान कामयाब होता है तो सपने देखना आम है| लेकिन यही नौजवान जब ख़ुदकुशी जैसा कदम उठा ले, जीवन से हार मान ले तो क्या कहा जाए? यह तो तय है कि फिलवक्त इनके जीवन में कोई ऐसी दुनियावी परेशानी तो नहीं आई होगी, जिसका ये आसानी से सामना न कर पाते| यह भी तय है कि कुछ न कुछ ऐसा जरुर चल रहा था जिसने अंदर ही अंदर इन नौजवान को तोड़ दिया| प्रायः ऐसी चीजें केवल और केवल घर के लोग और कुछ दोस्त, अगर पास में हैं तो जान पाते हैं|
यहाँ मामला उलट है| सुरेन्द्र की नौकरी ऐसी कि फुर्सत नहीं कि वे अपना दर्द किसी से साझा कर सकें| उनके पास केवल पत्नी, वह भी व्यस्त| कॉलेज के दोस्तों से हेलो-हाय के अलावा कुछ और कहने-सुनने की फुर्सत नहीं| बैचमेट दूर दूर हैं| तय था कि अगर अंदर ही अंदर उठ रहा गुबार कोई भांप पाता और उसे झकझोर कर बाहर निकालता तो यह हादसा नहीं होता| मैं गारंटी से इसे कह सकता हूँ| ऐसे में हर उस व्यक्ति से लापरवाही हुई है जो सुरेन्द्र से जुड़ा हुआ था| सबने उन्हें बावर्दी दुरुस्त देख खुश रहने की आदत डाल ली और यह नौजवान अंदर ही अंदर घुटता रहा| अगर सुरेन्द्र के माता-पिता साथ होते तो संभव था कि वे आसानी से जान पाते कि असल समस्या क्या थी? इस हादसे को बचाने के लिए सिर्फ रिश्ते के एक ऐसे पिन की जरूरत थी जो तकलीफ़ रुपी इस गुब्बारे को फोड़ देता| सारी हवा बाहर आ जाती और सुरेन्द्र बच जाते| जहरीला पदार्थ नहीं खाते|
सोशल मीडिया पर उनकी पत्नी को आरोपी ठहराया जा रहा है| हो सकता है, यह सच भी हो लेकिन यह भी समझना जरुरी है कि उनकी पत्नी भी अभी पढ़ाई कर रही है| एक यंग आईपीएस अफसर की नौकरी अजीब होती है, वह सुबह उठने से लेकर देर रात दूसरों की समस्याएँ ही सुलझाता दिखता है| उनकी पत्नी भी यंग डॉक्टर हैं तो स्वाभाविक है कि उन्हें भी मेडिकल कॉलेज से लेकर घर तक मैनेज करने का समय कम ही मिलता है| नौकर-चाकर सब थे| फिर भी अगर कुछ नहीं था तो वह धैर्य, एक-दुसरे के लिए समय अन्यथा यही दोनों पति-पत्नी मामले को सुलटा लेते, चाहे वह किसी भी स्तर की परेशानी रही होगी| तय है कि पेशेगत व्यस्तता में दोनों की बातचीत बहुत कम हो रही थी| दोनों इस खतरनाक पल का आंकलन कर ही नहीं पाए| मैं बार-बार कहता हूँ कि बातचीत किसी भी समस्या का समाधान है| किसी भी सूरत में बातचीत बंद नहीं होनी चाहिए| चाहे वह पति-पत्नी हों या रिश्तेदार और पड़ोसी| अगर यह सिलसिला चालू रहेगा तो मन में चल रही घुटन प्यार से या फिर गुस्से से बाहर आ ही जाती है| अब सुरेन्द्र ने तो परिवार को एक ऐसा घाव दिया जो जीवन भर उनके साथ रहेगा लेकिन आपके जीवन में अगर ऐसा कुछ चल रहा है तो तय मान लीजिए कि ऐसे हादसे से बच सकते हैं| बातचीत बंद न करे| अपनों को समय जरुर दें| अगर कुछ भी असामान्य दिखे तो अलर्ट हो जाएँ| इस असामान्य को आप पकड़ तभी पाएँगे / पाएँगी, जब संवादहीनता आपस में नहीं रहेगी| जीवन में प्यार, मोहब्बत, घृणा, गुस्सा सबका स्थान है| सब का कोटा है| इसे हम अपने प्रयासों से कम या ज्यादा कर सकते हैं| और इतने से ही बात बन जाती है| ख़ुदकुशी जैसा कदम मामूली प्रयासों से बचाया जा सकता है| अगर आपके पास भी ऐसा कुछ भी अस्वाभाविक चल रहा है तो कृपया बातचीत शुरू कर दें| नजर रखें| ज्यादा समय कोई न कोई साथ रहे| बात बनेगी|

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