आपकी कहानी इंजीनियर वानी से मिलती-जुलती तो नहीं!

दिनेश पाठक 

गुजरात से हैं वानी| पिछले साल बीटेक किया| कैम्पस से ही नौकरी मिल गई| पांच महीने जॉब किया लेकिन मन नहीं लगा तो छोड़ दिया| फिर एक नौकरी मिली, जिसे ज्वाइन ही नहीं किया| क्योंकि उस दफ्तर का माहौल वानी को ठीक नहीं लगा| अब वानी बेरोजगार हैं और करियर को लेकर कन्फ्यूज भी| पहले फेसबुक और फिर फोन पर वानी ने बताया कि समझ नहीं आ रहा है कि क्या करे, जबकि इच्छा यह है कि उसे अच्छे पैकेज वाली नौकरी मिले और तरक्की भी| जीवन में खुशहाली हो| उसके पास वह सब कुछ हो, जिसका सपना सामान्य युवा देखता है...मतलब, गाड़ी, बंगला, नौकर-चाकर आदि-आदि| वानी की मदद के इरादे से जो कुछ मैंने कहा, बताया, वह हूबहू साझा कर रहा हूँ, जिससे वानी की तरह के कन्फ्यूज युवा वर्ग की कुछ मदद हो सके|
कोई भी अच्छी बात करने से पहले मैंने वानी को कड़वी बात कही| मसलन, अगर उसे पैकेज या दफ्तर पसंद नहीं था तो नौकरी में रहते हुए दूसरी तलाशती| फिर छोड़ती| चलो पहली नौकरी छोड़ दी, कोई नहीं| तुम्हारी ही मेहनत से दूसरी मिली तो वहाँ ज्वाइन करने से पहले ही फैसला कर लिया कि अमुक दफ्तर ख़राब है| और अब बेरोजगार हो| वानी ने कहा...सर गलती हो चुकी है| सॉरी| फिर मैंने कहा-इस गलती से सीख लो| कोई भी संस्था तुम्हारे हिसाब से काम नहीं करेगी| पहले तुम वहाँ काम शुरू करो| काम से ही अपनी पहचान बनाओ| धीरे-धीरे लोग तुमसे प्रभावित होने लगेंगे| फिर कम्पनी में तुम्हारी सुनी भी जाएगी| धीरे-धीरे तरक्की की सीढियां चढ़ते हुए तुम मंजिल तय करोगी| मैंने वानी से कहा कि अगर तुम कर सकती हो तो किसी आईआईटी से एमटेक कर लो, जीवन बदल जाएगा क्योंकि तुम्हारी अभी कोई उम्र नहीं है| नहीं मन है तो इंजीनियरिंग बैकग्राउंड के बच्चे सिविल सर्विसेज में बहुत सेलेक्ट होते हैं, वहाँ भी दिमाग लगा सकती हो|
तीसरी और महत्वपूर्ण बात जो कही वो यह थी..कि जो भी करने का मन कर रहा है, करो| जहाँ पहुंचना है, उसके लिए कोशिश करो| लेकिन सबसे पहले डायरी और पेन उठाओ| अपनी मंजिल लिखो| उसके बाद यह भी दर्ज करो कि यहाँ तक पहुँचने के लिए हमें क्या-क्या करना होगा| कितनी मेहनत, कितना पैसा और कितना समय लगेगा| ऊपर से नीचे के क्रम में सबसे पहले सब लिख लो| खुद को भी ठोंक बजा लो कि जो बयाना ले रही हो, वह निभा पाओगी या बीच में छोड़कर कुछ और करने लगोगी| सब तय करने के बाद इस चार्ट को ग्राफ पेपर पर लिखकर घर में कहीं टांग दो| पूरे टास्क को समय के हिसाब से बाँट दो| फिर मेहनत शुरू करो| रोज का टास्क रोज पूरा होना चाहिए| अन्यथा आप मंजिल से भटक जाओगी| और यही नहीं करने देना है| जितनी मेहनत करनी है, उसे अभी कर लो| मंजिल तय करने के बाद भटकाव का मतलब यह है कि आप अपना जीवन, मम्मी-पापा का पैसा और उससे जरुरी बात अपना कीमती समय बरबाद करते हो|
मेरा उन सभी नौजवानों से एक ही अनुरोध है कि मंजिल कोई भी, आसान नहीं है| कड़ी मेहनत सबके लिए करनी पड़ती है| उससे आप बच नहीं सकते| मम्मी-पापा, दोस्त, काउंसलर, सब केवल आपको रास्ता बता सकते हैं, चलना उस पर आपको ही है| भले ही रास्ता कितना भी कठिन क्यों न हो? हो सकता है कि चलते हुए आपके जूते फट जाएँ| पैरों से खून निकल जाए| फिर भी सफल वही होता है जो विषम हालातों में भी मंजिल तय कर लेता है| फिर रास्ते के सभी दर्द भूल जाते हैं| खुशियाँ आपके दामन में बिखरी हुई दिखती हैं| कई बार इतनी कि आप समेट नहीं पाते| कन्फ्यूज न हों| अगर ऐसी स्थिति आती है तो ऐसे व्यक्ति से मदद माँगें, जो सक्षम हो| कई बार देखने में आया है कि युवा एक-दूसरे को देखते हुए कुछ करने की कोशिश करते हैं| यह गलत है| आप तो खुद से पूछो और उसी के अनुरूप तैयारी करो| मंजिल पर आप ही होंगे, चाहे वह एवरेस्ट ही क्यों न हो| अरुणिमा सिन्हा का नाम तो सुना ही होगा| वही बहादुर बेटी, जिसने दोनों पर गंवाने के बाद भी एवरेस्ट पर देश का झंडा फहराया| 

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