मुझे बहुत डर लगता है, नाकामयाब हो गया तो...

दिनेश पाठक

एक सप्ताह पहले का वाकया है| मेरे फोन की घंटी बजती और कट जाती| फिर बजती, कट जाती| ऐसा कई बार हुआ तो मैंने उस नंबर पर फोन किया| तत्काल फोन उठ गया और आवाज सुनकर मुझे ऐसा महसूस हुआ कि यह कोई नौजवान है, जो कुछ कहना चाहता है| भर्राई हुई आवाज में उसने अपना नाम विजय बताया| बोला-मुझे ढेर सारी बातें करनी हैं| सवाल पूछने हैं|
मैंने कहा-बोलो| विजय ने कहा-मैं अर्थशास्त्र, सांख्यिकी विषय के साथ बीए की पढ़ाई कर रहा हूँ| पापा चाहते हैं कि मैं एमबीए कर लूँ| मैं कन्फ्यूज्ड हूँ| मैंने प्रतिप्रश्न किया-तुम्हारा मन क्या कह रहा है और कन्फ्यूज्ड क्यों हो? बोला-मैं एसएससी की तैयारी करना चाहता हूँ| कभी मन करता है कि फिल्मों में चला जाऊं| एनएसडी से जाकर कोर्स कर लूँ| लेकिन डर लगता है कि कहीं नाकामयाब हो गया तो...बात करते करते थोड़ा सहज हुआ| फिर बोला-सर, अपनी अंग्रेजी भी बहुत कमजोर है| इसके लिए क्या करूँ? मैंने कहा-यह तो बहुत आसान है| सीबीएसई बोर्ड की कक्षा छह से इंटर तक की ग्रामर की किताबें लेकर तैयारी शुरू करो| छह महीने में अंग्रेजी ठीक हो जाएगी| मेरा दूसरा सुझाव था कि एक अंग्रेजी का अख़बार बोल कर पढने की आदत डाल लो| विजय ने कहा-यह तो सब ठीक है सर, लेकिन कुछ ज्यादा नहीं बता दिया आपने? मैंने कहा बिल्कुल नहीं| अभी ग्रेजुएशन कर रहे हो| कमजोरी पता चल गई है फिर उसे दूर करने के लिए मेहनत तो करनी ही होगी|
बोला-हाँ वो तो है लेकिन मैं गाँव में रहता हूँ| आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है| पापा से बोलूँगा कि कक्षा छह से 12वीं तक अंग्रेजी की किताब खरीदनी है तो यह भी संभव है कि वे सवाल पूछ लें कि अब इन किताबों की क्या जरूरत है? मैंने कहा-बता देना पूरी बात| आखिर पापा हैं दुश्मन तो नहीं| फिर भी न मानें तो मेरी बात करा देना, मैं मना लूँगा उन्हें| वे मेरी सुनेंगे और इन किताबों के लिए पैसे भी दे देंगे लेकिन पढ़ना तो विजय को ही पढ़ेगा| दो दिन पहले विजय का फोन था-हिन्दू अखबार खरीदना शुरू कर दिया है| मैंने ख़ुशी जताई तो बोला-सर, जान सांसत में पड़ गई है| यह अंग्रेजी तो लगता है कि गले की फ़ांस बन गई| मैंने फिर उसे धीरज बँधाया और कहा कि मत परेशान हो| मेहनत करो सब ठीक हो जाएगा अंग्रेजी भी, पापा भी और विजय वह सब कुछ हासिल कर पाएगा, जो वह चाहता है| हँसने लगा और बोला-सर, यह सब इतना आसान नहीं है, जितना आसानी से आप बता रहे हो| कचूमर निकल जाएगी पढ़ते-पढ़ते| मैंने भी सहमति दी और जोड़ दिया कि बिना मेहनत के कुछ होता भी नहीं है प्यारे| जीवन में कुछ भी हासिल करना है तो मेहनत ही करनी होगी| दूसरा कोई विकल्प नहीं है|

मेरा मानना है कि विजय ने अब तक की पढ़ाई जैसे-तैसे कर ली| उसे यह पता है कि बिना अंग्रेजी के न तो एसएससी होने वाली है और न ही एमबीए| बातचीत में लगा कि सामान्य ज्ञान भी बेहद कमजोर है| परिवार का पूरा सपोर्ट होने के बावजूद उसे खुद पर भरोसा नहीं है| शायद तभी वह मेरा नंबर बार-बार डायल करता और काट देता| जब मैंने मिला लिया तो वह खुश हो गया| अगर आप कुछ इस तरह की समस्या से जूझ रहे हैं तो मेरा सुझाव है कि शार्टकट अपनाने से बचें| खूब पढ़ें| बड़ा सोचें| खुद के प्रति ईमानदार हों| माता-पिता के प्रति भी ईमानदारी जरुरी है| पैसे आसानी से कभी भी कहीं भी नहीं आते| बड़ा सोचने वाला कोई भी व्यक्ति उसी के अनुरूप मेहनत करता है| मेरा मानना है कि अगर पापा कहीं से एमबीए करने का सुझाव दे रहे हैं तो आप अपनी ओर से पापा को भारतीय प्रबंध संस्थान का सुझाव दे सकते हैं| अगर आप से कोई एसएससी क्लीयर करने को कह रहा है और आप ऐसा करने की हिम्मत, ताकत, ज्ञान रखते हैं तो मेरी गारंटी है कि सिविल सर्विसेज भी आप निकाल लेंगे| ध्यान रखिए, अगर आप सिविल सर्विसेज की तैयारी करेंगे तो एसएससी अपने आप ही निकल जाएगी| बहानेबाजों को यह दुनिया बार-बार निराश करती है और मेहनतकश को सलाम| तय आपको करना है...

Comments

Popular posts from this blog

सावधान! कहीं आपका बच्चा तो गुमशुम नहीं रहता?

हाय सर, बाई द वे आई एम रिया!

खतरे में ढेंका, चकिया, जांता, ओखरी