कुबूलनामा-एक : उत्तरकाशी की यात्रा में मैं, वो और उनकी अदाएँ

बात थोड़ी पुरानी है| मैं उत्तराखण्ड में उत्तरकाशी जिले के भ्रमण पर था| तभी अचानक मेरी नजर पड़ी| वह इठलाती, बलखाती चली आ रही थी| देख वह भी रही थी मुझे पूरे मनोयोग से और मैं तो खैर अपलक निहारे ही जा रहा था| पलक झपका भी हो तो मुझे याद नहीं| कभी झुरमुटों से हठखेलियाँ तो कभी नृत्य की अनेक मुद्राएँ| वाह क्या कहने...धीरे-धीरे मैं भी चलता रहा और वह भी...कभी लगा कि अब हम करीब हुए कि तब| सोचा यह भी जैसे ही मौका मिलेगा, मिलेंगे, खूब बातें करेंगे| गया भी थोड़ा करीब लेकिन निःशब्द था...जुबान फूटी ही नहीं| सारा समय निहारने में ही चला गया और सांझ हो गई| 
दिनेश पाठक

यह सिलसिला कई दिन तक चला| लुकाछिपी करते हुए मैं वापसी की डगर पर था, पीछे मुड़कर देखा तो वह भी चली आ रही थी| मुझे लगा कि वे मेरे पीछे आ रही हैं लेकिन कुछ ही किलोमीटर चलने के बाद मैंने देखा कि वे अपने जैसी एक और बला की खूबसूरत के साथ कहीं दूसरी ओर जाने लगीं...थोड़ी देर ओझल होने पर मन मेरा भी बेचैन हुआ| यात्रा जैसे-जैसे आगे बढ़ी थोड़ी दूर बाद फिर मुझे वो दिखीं| अंदाज वही| आहा, क्या कहने| फिर हम साथ-साथ चलते रहे| अब उनके चेहरे पर थकावट के भाव थे| थकान तो मुझे भी लगी थी लेकिन उन्हें तनिक देर निहारते ही छूमंतर हो जाती...अपनी थकान| 
ऋषिकेश पहुँचने से पहले अँधेरा हो चला था| देखने की तमाम कोशिशें फेल हो जातीं| कभी कभी सरकारी रौशनी में जरुर मैं निहारने का कभी सफल तो कभी असफल प्रयास करता| मन को कितना भी मना करूँ, मानने को तैयार न होता| जीवन मुश्किलों में फंसता दिखने लगा| मैं उनके मोहफांस में फंस सा गया था। लेकिन कभी पत्नी का चेहरा दिखता तो कभी बच्चों का। बार-बार मैं कभी इधर तो कभी उधर भटकता| फिर मन से कहता नहीं प्यारे, राह से भटको नहीं...तुम्हारी मंजिल यह नहीं है। प्रभु ने जो तुम्हारे लिए तय किया है। वह तुम्हारे पास है। फिर भी मन कई दिन तक बेचैन रहा| बाद में तय किया कि जब मौका मिलेगा, मुलाकात का प्रयास करूँगा| किया भी, कभी ऋषिकेश तो कभी हरिद्वार में मुलाकातों का सिलसिला तेज हो चला था| जैसे जैसे मुलाकातें बढ़ीं वैसे वैसे अत्याचार, अनाचार भी बढ़े। लेकिन भला होनी को कौन टाल सकता है। हम कुछ कर सकते थे लेकिन किया ही नहीं। हमें उनकी परवाह बिल्कुल नहीं थी।
उधर, उनका दिल देखने लायक था। निर्मल बिल्कुल पहले की तरह| न कोई छल न ही कपट| हमने कितना भी अत्याचार किया...अनाचार किया...लेकिन कभी उफ़ तक नहीं किया| हम आज भी बाज नहीं आ रहे| अत्याचार कर ही रहे हैं| मेरे जैसे कई तकलीफ़ देख ही नहीं पाए और असमय दुनिया छोड़ चल पड़े...
हे! गंगा मैया
हमें माफ़ कर देना...
हम आपके लिए कुछ नहीं कर पाए

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