कुबूलनामा-तीन : प्यार हो तो काली साड़ी विद पीला बॉर्डर जैसा, नहीं तो न हो

एकदम टटका कॉलेज से निकला था| उम्र अल्हड़ थी| जीवन की ऊँच-नीच से वाकिफ़ नहीं था| जो दोस्त कहें वही सही| कुछ सीनियर्स के साथ बैठकी चल रही थी| वे अक्सर काली साड़ी विद पीला बॉर्डर की बातें करते| समझ नहीं आ रहा था कुछौ|
दिनेश पाठक

पूछ बैठे तो पड़ा कंटाप| कान झन्ना गया| फिर वे लोग बोले-जानते हो जीवन चलाने के लिए लाल-नीली-पीली की बड़ी भूमिका है| ख़ास बात यह है कि इसे पाने के लिए काली साड़ी विद पीला बॉर्डर से दोस्ती करनी पड़ेगी| मैंने कहा-भैया...काली माई से भला दोस्ती कैसे हो पाएगी| उ तो नाराज हो जाएँ तो किसी की भी वाट लगा दें| दूसरी ओर कान पर फिर पड़ा एक जोरदार...लाल हो गया गाल भी और कान भी| कच्ची उम्र थी| भैया लोग थे| मारते भी थे और प्यार भी पूरी दमदारी से करते थे| पैसे की कोई कमी नहीं| किसी की हिम्मत नहीं कि मेरी ओर आँख उठाकर भी देख ले| कॉलेज में लड़कियां भी रंज करती थीं|
भैया लोगों के इस गिरोह में थोड़े दिन की बैठकी के बाद पता चला कि इन सबकी काली-पीली से ही दोस्ती है| प्यार में पूरी ईमानदारी यहीं मैंने देखी| हर आदमी अपने प्यार पर कुर्बान होने को राजी| लेकिन दूसरी के सम्मान में ठेस पहुंचाने का इरादा बिल्कुल नहीं| कहीं गलती से कुछ ऊँच-नीच हो गई तो धड़ाम-धड़ाम गोली चलते बहुत बार मैंने देखा| जब गोलियाँ चलतीं तो चील-कौए भी रास्ता बदल लेते|
ई सब लोग अपने प्यार को दिलोजान से चाहते थे या यूँ कहें कि चाहते हैं अभी भी| यह और बात है कि लिखने-पढ़ने के पेशे में आने के कारण अपना उठना-बैठना अब कम ही होता है इन लोगों के साथ| उ का है न, ये लोग जब भी बात करेंगे काली साड़ी विद पीला बॉर्डर| जितनी लम्बी साड़ी, इन्हें उतनी ही ख़ुशी| कहीं से कोई बात होगी तो हजार, दो हजार मीटर की साड़ी तो मामूली बात है इनके लिए| ख़ास बात यह है कि इनका ध्यान जाता उसी ओर है जहाँ का रंग एकदम चटख हो| अगर कहीं गाँव की पगडण्डी पर या शहर की गलियों में फटी-पुरानी काली साड़ी में कोई दिख जाए तो ये लोग उधर देखते तक नहीं| इन्हें तो बस पीले बॉर्डर के साथ काली साड़ी वाली लकदक ही चाहिए| इन सबका भरोसा इस बात में है कि जहाँ कहीं पीले बॉर्डर विद काली साड़ी वाली इनकी प्रेयसी या प्रेयसियाँ हैं, वहाँ लाल-नीली और अन्य रंगों की साड़ियों की कोई कमी नहीं है| 22-23 साल का था तब इन लोगों ने प्यार किया था काली साड़ी वालियों से और आज तक इनका प्यार बदस्तूर है| भले ही मेरे भैया लोग इंजीनियर बन गए, अफसर बन गए, ठेकेदार बन गए या फिर इन सबसे आगे जाकर नेता, विधायक, सांसद, मंत्री बन गए लेकिन ये काली साड़ी विद पीला बॉर्डर उनके जीवन से अलग नहीं हुआ| इनका यह जेस्चर मुझे भा गया| भगवन ने सब कुछ दिया| पैसा, नाम, शोहरत, गाड़ी-घोड़ा लेकिन ये तनिक नहीं बदले| इन लोगों की इस ईमानदारी पर बहुतों को रंज हो सकता है लेकिन मुझे तो गर्व है| प्यार जिससे कर लिया, उसके साथ ही जीवन भर डटे हुए हैं|
राय तो भैया लोगों ने मुझे भी दी थी..लेकिन मैं ये काली-पीली के चक्कर में पड़ना नहीं चाहता था| लेकिन अब लगता है कि अगर काली साड़ी विद पीला बॉर्डर से दोस्ती उस जमाने में मैंने भी कर ली होती तो आज कलम घिसने का काम तो न ही करना पड़ता| और ये लाल, पीली, हरी, नीली, गोल्ड या गोल्डन, सिल्वर या फिर कुछ और वालियाँ अपने आसपास सुगंध फैला रही होतीं और तय मैं कर रहा होता कि मुझे किसके साथ सिनेमा जाना है और किसके साथ विदेश| अफ़सोस मुझे है|

मैं सर्पीली, सपाट, गड्ढा युक्त सड़क बनाने वाले अपने सभी ठेकेदार, इंजीनियर, नेता भाइयों से प्रेरित महसूस कर रहा हूँ| उम्मीद करता हूँ कि आप सब मुझे माफ़ कर देंगे| मुझे बिल्कुल नहीं पता था कि इस पीली बॉर्डर वाली साड़ी में इतनी ताकत है| और हाँ, कुबूलनामा की यह कड़ी न चल रही होती तो मैं कतई आपकी कहानी आमजन के सामने नहीं लाता| नमस्ते|   

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