कुबूलनामा-दो : मैं उनके प्यार में क्या फँसा, वो तो हमें दुनिया से उठाने आ गईं


मेरा प्यार कोई बीस साल पुराना है| मैं दोस्तों के साथ अपने घर के बगल वाले चौराहे पर नुक्कड़ वाली दुकान पर खड़ा था| वहीँ पहली दफा देखा| मेरे दोनों दोस्त भी कनखियों से देख रहे थे| ऐसा मैंने कई दिन तक लगातार देखा|
फिर मैं कॉलेज चला गया| वापस लौटा तो मुझे पता चला कि दोनों से उनकी गहरी दोस्ती हो गई| इतनी कि पूछो नहीं| धीरे-धीरे यह बात आम हो चली थी| पूरा मोहल्ला जान गया इनकी दोस्ती को या कहिए प्यार को। लेकिन ये बेशर्म की तरह हँसते हुए सबकी बातें हंसी में उड़ाते रहे| मोहल्ले वालों को चिंता थी कि कहीं उनकी औलाद को भी ये न बिगाड़ दें इसलिए प्रायः ये अपने घरों से निकलते और चौराहे पर ही जमा हो जाते| हँसते-मुस्कुराते इनके दिन कट रहे थे| 
दिनेश पाठक

धीरे-धीरे मुझ पर इनका असर होने लगा और मैं खुद भी एक के फेर में आ गया| गजब का तीखापन| बरबस मैं खिंचता चला गया| देखते ही देखते मैं उसके आगोश में था| मुझे अपनी सुध-बुध नहीं थी| जो चर्चा मेरे दोस्तों के बारे में हो रही थी, अब मेरे बारे में भी शुरू हो गई| सब हमें घृणा की दृष्टि से देखने लगे लेकिन कोई सामने आकर कुछ इसलिए नहीं बोलता था कि कहीं हम उनके साथ कोई बदसलूकी न कर दें|
धीरे-धीरे इस दोस्ती का असर नकारात्मक रूप से मेरे घर-परिवार पर भी पड़ने लगा| मेरी सेहत पर भी लेकिन मैं बेपरवाह था| मुझे अच्छी बातें भी ख़राब लगतीं| प्यार-मोहब्बत के इसी झाले में मेरी शादी भी हो गई| लोगों ने यह मान लिया कि शायद मैं सुधर जाऊं। इसके फरेब से निकल भागूँ। उनका सोचना भी सही था। असल में बला की खूबसूरत हैं मेरी पत्नी| लेकिन दो के चक्कर में आए दिन झगड़े होने लगे| तीन-चार बार तो पत्नी गुस्से में मायके भी गईं, यह कहते हुए कि तुम्हारे जीवन में या तो मैं रहूंगी या वो नाशपीटी...हर बार मैं ससुराल जाता, कसमें खाता फिर मनाकर ले आता और दोबारा पेंग बढ़ाने में मुझे आनंद आने लगता| वस्तुतः मैं दोनों के साथ जीना चाहता था। एक की जुदाई क्षण भर को भी बर्दाश्त न होती| मैं बेचैन होता| कई बार ऐसा हुआ कि दिन जैसे-तैसे कट गया लेकिन शाम होते ही बेचैनी का आलम यह की तबीयत बिगड़ने की नौबत|
हम तीनों के साथ होने पर मेरी समस्या तो ख़त्म हो जाती लेकिन पत्नी की बढ़ जाती| अब मेरा यह चरित्र कुख्यात हो गया| ससुराल से लेकर मोहल्ले, रिश्तेदारी में मुझ पर लोग थू थू करने लगे| लेकिन मुझे उनकी परवाह नहीं थी| मुझे तो पत्नी भी चाहिए थी और प्रेमिका भी| तीन दिन पुरानी बात है| मेरी तबीयत ख़राब हुई| तब भी हम तीनों साथ थे लेकिन पत्नी उस दिन गुस्से में नहीं थी| देखते ही देखते कुछ ऐसा हुआ कि मुझे बिल्कुल नहीं पता चला| जब उठा तो खुद को अस्पताल के बिस्तर पर पाया|
होश आने पर मेरी पत्नी तो मेरी नज़रों के सामने थीं लेकिन वो नहीं| मुझे डॉक्टरों ने बताया कि मुझे जीवन चाहिए तो पत्नी के साथ रहना होगा और मौत चाहिए तो वो...बिस्तर पर लेटे-लेटे सोच रहा हूँ कि तुमने मुझसे दोस्ती इसलिए की थी कि मुझे इस दुनिया से उठा ले जाओ| थू तुम्हारी ऐसी दोस्ती पर...मुझे अफ़सोस है कि तुम्हें पहचाने में मुझसे चूक हुई| मैंने पत्नी से कह दिया है कि अगर दूर-दूर तक भी कहीं दिख जाए तो आने न देना मेरे करीब| मैं भी इस बात का ख्याल रखूँगा....
मैं सरकारों से भी गुजारिश करूँगा कि इनसे हमें बचा लो| ये जहाँ कहीं दिखें, गिरफ्तार कर काल कोठरी में डाल दो| इनकी कमाई पर मिल रहे टैक्स से बनाई हुई सड़क, नाली, खडंजा हमें नहीं चाहिए| बख्स दो सर| बख्श दो|
हे! पान मसाला/ अफीम/स्मैक की पुड़िया मुझे माफ़ करना| मेरा जीवन तो बरबाद कर दिया लेकिन अब हमारी अगली पीढ़ी को तो बरबाद होने से बचा लो...मैं जानता हूँ कि न तुम सुधारोगी न ही पैसे की लालची सरकारें, इसलिए तुम्हारी तो मौजा ही मौजा है। पर मैं शांत नहीं बैठूँगा...

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