गणेश शंकर विद्यार्थी लेख 36 / योरप का महायुद्ध

गणेश शंकर विद्यार्थी 
युद्ध की आग आगे ही बढ़ती जाती है, परन्तु उसके समाचार हमें ठीक-ठीक नहीं मिलते, समाचार लन्दन और बम्बई से बहुत छन कर आते हैं, और प्रायः ऐसा होता है कि दूसरे ही दिन उनमें कुछ का प्रतिवाद हो जाता है. समाचार आया कि जर्मनी के 19 क्रूजर नष्ट कर या डुबा दिए गए, पर इधर इंगलैंड के नव सचिव मिस्टर चर्चिल ने दूसरे ही दिन कहा कि अभी कोई ऐसी जहाजी लड़ाई ही नहीं हुई. गत रविवार को वायसराय के पास तार आया कि डागर बैंक के समीप अंग्रेजी बेड़े ने जर्मन बेड़े को भागा दिया. इस समाचार पर ख़ुशी मनाई गई.
शिमला के एक स्कूल में छुट्टी तक कर दी गई. पीछे से पता चला कि डागर बैंक वाला समाचार वैसा ही असत्य है, जैसा दो और एक मिलाकर चार होना. भारत सरकार ने घोषणा की है कि फौजी समाचार उस समय तक प्रकाशित न किये जाएँ, जब तक वह स्वयं उन्हें प्रकट न करें. युद्ध के समाचार लन्दन से आते हैं. लन्दन में इन समाचारों की जाँच के लिए एक विभाग नियत हो गया है. यदि अपने लाभ के लिए सरकार इतना कड़ा बंदोबस्त करती है, तो कोई बुरी बात नहीं, किन्तु इस बात को हम किसी प्रकार अच्छा भी नहीं कह सकते कि इस छान-बीन के बाद भी जो समाचार हम तक पहुंचे वे भी ऐसे हों कि उनका प्रतिवाद दूसरे दिन करना पड़े.
अस्तु, अब हम योरप की स्थिति पर दृष्टि फेंकते हैं. जर्मनी ने एकदम संसार भर को अपना शत्रु बना लिया है. परन्तु जिस तरह और जो कुछ वह चाहता था उससे तो वह एक बार उनमें से अधिकांश को अपना शत्रु अवश्य बनाता, जो आजकल के शत्रु बन रहे हैं. पिछले 40 वर्ष में ही जर्मनी का वैभव इतना बढ़ा कि वह स्थल सेना में तो संसार भर में अद्वितीय हो गया और जहाजी सेना में केवल इंगलैंड से ही पिछड़ा रहा. अपनी पूरी शक्तियों के विकास के लिए जर्मनी को उपनिवेशों तक अच्छे समुद्र तट की सख्त जरूरत है. जर्मनी का जो समुद्र तट है, वह बहुत अच्छा नहीं. अपने बेड़े के लिए उसे समुद्र-तट काटकर उचित स्थान बनाना पड़ा है. पर, इन दोनों में कोई भी बात जर्मनी नहीं कर सकता. इंगलैंड उसके पथ में कांटा है. इस कांटे की नोक को तोड़ डालने की चिंता जर्मनी को आज बहुत दिनों से सता रही है. वह इंगलैंड से कभी का भिड पड़ता, परन्तु वह समझता था कि इंगलैंड के मुकाबले में अभी नीचा ही देखना पड़ेगा. पर, खाली घड़ा भर चला था. योरप के राजनीतिज्ञ सशंकित थे और वे गत वर्ष ही घड़े के छलक पड़ने की आशंका कर रहे थे.
अंत में सर्विया और आस्ट्रिया का बहाना जर्मनी के हाथ लगा, लेकिन जर्मनी करना कुछ चाहता था और हो कुछ गया. यह बात मुश्किल से समझ आती है कि इतना बड़ा राष्ट्र केवल बेवकूफी से संसार भर को अपना शत्रु बना ले. जर्मनी की चाल तो यह थी कि बेल्जियम की राह से फ्रांस पर छापा मारा जाय, पेरिस पर कब्ज़ा हो और फिर अकेले इंगलैंड से निपट लिया जाएगा. जर्मनी ने रूस को तो कुछ समझा ही नहीं, क्योंकि उसका सवाल था कि उस बे-डौल देश का अपनी फ़ौज को शीघ्र ही तैयार कर लेना कठिन है. यहाँ तो चुटकी बजाते काम होता है.  उसका यह सवाल ठीक भी था, क्योंकि युद्ध के इतने दिन बीत जाने पर भी रूस अपनी फ़ौज पूरी तरह नहीं तैयार कर सका है. पर, जर्मनी की इन तदबीरों ने बेल्जियम के लीज नगर के किलों से बुरी तरह ठोकर खाई. जर्मन सेना इन्हीं किलों पर अटक गई. वीर बेल्जियम निवासियों ने उन्हें बेतरह छकाया और अब भी आगे नहीं बढ़ने देते. बेल्जियम ने जर्मन सेना को अपने राज्यों से क्यों न निकल जाने दिया, यहाँ यह प्रश्न हो सकता है. जर्मनी तो उसे अपना मित्र बनाने के लिए तैयार था, पर यह सब मतलब की यारी थी. उस देश में से होकर जर्मनी सेना फ्रांस पर आक्रमण करती और फिर बेल्जियम पर हाथ साफ करती और युद्ध की समाप्ति पर यदि जर्मनी की विजय होती तो हम बेल्जियम और उसके भाई हालैंड दोनों पर जर्मन झंडा फड़फड़ाते  देखते, क्योंकि दोनों देशों के बड़े ही अच्छे और मौके के समुद्र तट पर जर्मनी की लालच से भारी निगाहें बहुत दिनों से पड़ रही हैं.
बेल्जियम की वीरता और उसका स्वाधीनता प्रेम सराहनीय है. तनिक सा देश! केवल 75 लाख की आबादी और 11, 400 वर्ग मील का रकबा! परन्तु उसके वीर निवासियों का इतना साहस, कि अपने से कहीं अधिक उन जर्मन सैनिकों को खूब छका रहे हैं, जिनको योरप अजब समझ रहा था. परन्तु जर्मन सेना लीज नगर पर कब्ज़ा कर चुकी है. इस समय वह लीज के किलों पर आक्रमण कर रही है, लेकिन फ्रांसीसी सेना बेल्जियम में पहुँच गई है और वहाँ से शीघ्र ही दूसरे महायुद्ध के समाचार आने ही वाले हैं. इधर इंगलैंड भी बेल्जियम की सहायता के लिए तैयार है. शंधि की शर्तों के अनुसार और साथ ही आत्मरक्षा के ख्याल से भी. आत्मरक्षा का ख्याल इसलिए है यदि जर्मनी का कब्ज़ा बेल्जियम पर हो गया तो फिर इंगलैंड की खैर नहीं.  बेल्जियम का समुद्र तट ठीक इंगलैंड के सामने है और जर्मनी के जहाज इंगलैंड की छाती पर दाल दला करेंगे. युद्ध छिड़ते ही, इंगलैंड के निवासी जिस प्रकार अपना भेदभाव छोड़कर शत्रु का सामना करने के लिए तैयार हो गए, वह पूरे औपन्यासिक ढंग का है और उसका प्रभाव ऐसे व्यक्ति पर नहीं पड़ सकता, जो ह्रदय शून्य हो. किचनर इंगलैंड के युद्ध सचिव हो गए हैं. वे अब 5 लाख युवकों की सेना तैयार कर रहे हैं. जेलिका जमाजी सेना के अधिपति हैं. वही अभी जर्मनी के कैसर से उपाधियाँ पा और उसके मेहमान रह चुके हैं. फ्रेंच स्थल सेना के अध्यक्ष हैं. वे भी मतभेद के कारण सेना से अलग हो चुके थे. घर में लड़ने-भिड़ने के बाद भी अंग्रेज बाहर वालों के लिए पांडव और कौरव मिलकर 105 हैं, वही उनके वैभव का भेद है, पर इस भेद का ज्ञान किसी खुदा और परयन्त्र आदि को लाभ नहीं पहुंचा सकता.
रूस तैयारी कर रहा है और इंगलैंड की विजय के लिए प्रार्थना भी. स्वीडन और नार्वे अलग रहेंगे. इटली रमखुदैया में पड़ा था, पर अब तो मालूम होता है कि यदि जरूरत पड़ी, तो वह इंगलैंड का साथ देगा और अपने मित्र कैसर की गर्दन नापेगा. आस्ट्रिया-बूढ़े आस्ट्रिया-को सर्विया और मांटीनिग्रो मिलकर तंग कर रहे हैं. उधर टर्की फ़ौज तैयार कर और रुपये उधार ले रहा है. सबसे पिछला समाचार यह है कि इंगलैंड और आस्ट्रिया में भी युद्ध छिड़ गया. इस समय इंगलैंड, रूस और फ्रांस की जर्मनी और आस्ट्रिया से लड़ाई है, जर्मनी की इंगलैंड, रूस, फ्रांस और बेल्जियम से, और आस्ट्रिया की इंगलैंड, रूस, फ्रांस, सर्विया और मांटीनिग्रो से. अच्छा गोरखधंधा है.
नोट-गणेश शंकर विद्यार्थी का यह लेख 'प्रताप'में 16 अगस्त, 1914 को प्रकाशित हुआ था. (साभार)

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