जरा ठहरें! कहीं आप प्रियांक के रास्ते पर तो नहीं चल रहे

दिनेश पाठक

दो दिन पहले मेरी मुलाकात प्रियांक से हुई| वह खुद को पत्रकारिता में ग्रेजुएट बता रहा था| उसका कहना था कि जब डिग्री मिल गई तो मैं नौकरी की तलाश में निकला| मिली भी एक वेबसाइट में, पर मन नहीं लगता था| मुझे एविएशन सेक्टर में जाना था| उस दिशा में कोशिश शुरू की तो एक संस्था में प्रवेश लिया| उस समय तो संस्था वाले एविएशन सेक्टर में नौकरी की पक्की गारंटी दे रहे थे| प्रवेश लिया| यहाँ भी पढ़ाई शुरू कर दी| कोर्स पूरा करने के बाद से भटक रहा हूँ, कहीं नौकरी नहीं मिल रही| 15 से ज्यादा कोशिश कर चुका हूँ, लेकिन कहीं भी नौकरी तो दूर, फ़ाइनल राउंड तक भी नहीं पहुँच पाया| अब मैं निराश हूँ| डिप्रेशन की दवाएँ शुरू हो चुकी हैं| परेशान हूँ, क्या करूँ, कैसे निकलूँ, इस जाल से? घर से पैसे लेने का मन अब नहीं करता और दूसरा विकल्प है नहीं| समझ में नहीं आ रहा|
मैंने प्रियांक से पूछा-एविएशन में जाना था तो पत्रकारिता की पढ़ाई क्यों की? इस नौजवान का बहुत रोचक जवाब था, उसने कहा-चूँकि पत्रकारिता में मैथ आदि कठिन सब्जेक्ट नहीं थे, इसलिए इस कोर्स को कर लिया| इस बच्चे ने पत्रकारिता निजी संस्थान से की है| मतलब ठीक-ठाक फीस भी दी है| एविएशन सेक्टर के लिए भी फीस अच्छी दी| साधारण परिवार से आने वाले प्रियांक ने एविएशन सेक्टर में जाने के इरादे से जो कोर्स किया, वह हॉस्पिटैलिटी का किया, इस वजह से उसे एक बड़े होटल में काम मिला| वहाँ कुछ दिन काम करने के बाद प्रियांक को लगा कि यह काम उचित नहीं है| क्योंकि खाने की ट्रॉली लाना ले जाना आदि काम उसे मिला| प्रियांक होटल में इसलिए गया था कि उसे फ्रंट ऑफिस का कोई काम मिलेगा|
मैंने फिर इस नौजवान से पूछा कि एविएशन सेक्टर में जो 15 प्रयास उसने किए, उसमें फ़ाइनल राउंड तक एक बार भी क्यों नहीं पहुँच पाया? कोई आँकलन? इस बच्चे की साफगोई मुझे पसंद आई| बोला-सर, अंग्रेजी इसकी प्रमुख वजह रही| इसमें उसके हाथ तंग हैं, सो पहले राउंड में ही सभी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया| मुझसे जो हो सकता था, उसकी मदद की| कुछ टास्क देकर 15 दिन बाद उसे फिर से बुलाया है|
लेकिन कुछ बातें ऐसी हैं प्रियांक के मामले में जो सोचने को विवश करती हैं| यह भी बताती हैं कि हमारे देश में अभी भी बड़ी संख्या में काउंसलर और काउंसिलिंग की जरूरत है नौजवानों को| अगर देश नहीं कर पाता है यह काम, तय जान लीजिए, हमारे युवा ऐसे ही इस कॉलेज से उस कॉलेज भटकते हुए भी नौकरी नहीं पाएँगे| इस नौजवान ने पत्रकारिता में स्नातक इसलिए किया क्योंकि यहाँ कोई कठिन सब्जेक्ट नहीं था, जबकि पत्रकारिता की पहली शर्त अंग्रेजी है| आप किसी भी भाषा में पत्रकारिता करने की मंशा रखते हैं तो अंग्रेजी आनी चाहिए| एविएशन सेक्टर, हॉस्पिटैलिटी सेक्टर भी अंग्रेजी की माँग करता है| इसका मतलब यह हुआ कि प्रियांक से दो-दो बार चूक हुई| या यूँ भी कह सकते हैं कि उसने खुद को अँधेरे में रखा और तमाम पैसा, समय बरबाद हुआ|
मेरी ऐसे नौजवानों और उनके मम्मी-पापा से अपील है कि बिना जाने-समझे कोर्स में दाखिला लेने से आर्थिक, मानसिक नुकसान तय है| प्रियांक जैसे नौजवानों से कहना बनता है कि जीवन में कामयाबी का कोई शार्टकट है नहीं| अगर आप चीजों को सीखने से बचोगे तो दिक्कत बनी रहेगी| और आप भटकाव के शिकार रहेंगे| नौकरी नहीं मिलने पर बीमार हो जाएँगे| अपनी कमजोरियों को जानें-पहचानें| जहाँ आप मजबूत हों, उसी में अपना बेस्ट देने की कोशिश करें| अगर ऐसा लगता है कि किसी विषय को सीखने से बात बनेगी, तो उसे सीखिए| उससे पीछा न छुड़ाएं| कामयाबी के लिए ऐसा करना जरुरी है और समय की माँग भी|

जैसे प्रियांक ने पत्रकारिता कोर्स को आसान मानकर किया लेकिन उसे सही जानकारी नहीं थी| एविएशन में जाने के लिए फिर उसने कोर्स किया लेकिन जानकारी का अभाव वहाँ भी दिखता है| दोनों ही पेशों में अंग्रेजी जरूरत है और प्रियांक को अंग्रेजी नहीं आती| इस नौजवान ने मुझसे वायदा किया है कि अगली बार मिलेगा तो अंग्रेजी में सुधार करके| मैंने भी आमीन कहकर उसे रवाना किया है| देखना रोचक होगा कि प्रियांक क्या करता है? लेकिन जो युवा प्रियांक के रास्ते पर चलने जा रहे हैं, वे सावधान हो जाएँ| सोच-समझकर ही कोर्स में दाखिला लें| जीवन में आसान कुछ भी नहीं, इसलिए हर दिन, हर पल को गंभीरता से लें, ध्यान रहे जो पल बीत रहा है, आपके जीवन में दोबारा नहीं आने वाला| अपना बेस्ट दें, इसी में आपकी, परिवार की और देश-समाज की भलाई है|

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